क्या बेवक़ूफ़ होते हैं नए साल पर फतवा देने वाले मौलाना ? इसके पीछे क्या है उनकी दलील ?
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क्या बेवक़ूफ़ होते हैं नए साल पर फतवा देने वाले मौलाना ? इसके पीछे क्या है उनकी दलील ?

Fatwa on new year celebration: दुनिया नए साल का आगमन की ख़ुशी में जश्न की तैयारी कर रही है. ठीक इसी वक़्त भारत के कुछ मौलान मुसलमानों से अपील कर रहे हैं कि वो नए साल का जश्न न मनाएं. ये एक गैर- इस्लामिक अमल है.. आखिर मौलानाओं के इस अपील के पीछे क्या होता है उनका तर्क.. आइये समझने की कोशिश करते हैं..

क्या बेवक़ूफ़ होते हैं नए साल पर फतवा देने वाले मौलाना ? इसके पीछे क्या है उनकी दलील ?

अबू धाबी/ नई दिल्ली: इस वक़्त पूरी दुनिया पुराने साल 2024 की विदाई और नए साल 2025 की आमद की ख़ुशी में जश्न की तैयारी के मूड में है.. खासकर, अरब जैसे मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश भी नए साल के जश्न की तैयारी में जुटा है. दुबई जैसे शहर दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाने के लिए किसी दुलहन की तरह सजकर तैयार है.. 

संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में, अल वथबा, दुबिया और शारजाह में शेख जायद महोत्सव मानाने का ऐलान किया गया है. दुबई में नए साल की पूर्व संध्या 36 रणनीतिक स्थानों पर 45 से ज्यादा आतिशबाजी प्रदर्शनों का आयोजन किया जाएगा.. 

वहीँ, हर साल की तरह इस साल भी भारत में नए साल के पहले कुछ मौलाना और मुफ़्ती नमूदार हो गए हैं, जिन्होंने नए साल का जश्न मनाने को गैर- इस्लामी बताते हुए इसे हराम करार दे दिया है..

इस दिन बधाई देना गैर-इस्लामिक है: मौलाना शहाबुद्दीन रजवी
उत्तर प्रदेश के बरेली में  ऑल इंडिया मुस्लिम जमात (AIMJ) के कौमी सदर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने एक बयान जारी कर कहा है कि नए साल का जश्न इस्लामी रीति-रिवाजों और प्रथाओं के मुताबिक नहीं है, क्योंकि यह ईसाई कैलेंडर की शुरुआत है. इसलिए मुसलमान पुरुषों और महिलाओं के लिए नए साल का जश्न मनाना या इस दिन बधाई देना गैर- इस्लामिक है. युवा मुसलमानों को ऐसे उत्सवों में शामिल होने से बचना चाहिए. " 

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नए साल के मौके पर जश्न मनाना गैर-इस्लामी तहजीब: मौलाना कारी इस्हाक 
इससे पहले सहारनपुर में जमीयत दावतुल मुसलमीन के चीफ मौलाना कारी इस्हाक गोरा ने इतवार को मुस्लिम समुदाय के लोगों से नए साल का जश्न न मनाने की इल्तिजा की है. मौलाना ने कहा कि मजहबे इस्लाम में नए साल पर जश्न मनाने की इजाजत नहीं है. सभी मुसलमानों से अपील है कि वे इस मौके पर पार्टी, म्यूजिक, डांस और आतिशबाजी और फिजूलखर्ची जैसी खुराफात से बचने की कोशिश करें. उन्होंने आगे कहा कि नए साल के मौके पर जश्न मनाना गैर-इस्लामी तहजीब है.

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इस तरह की घोषणाएं अशांति फैलाने की कोशिश: नकवी 
नए साल पर मौलानानों के बयान पर सभी दलों के नेताओं ने तीखी आलोचना की और अलग-अलग राय दी है. वरिष्ठ भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने फतवे को खारिज करते हुए कहा, "फतवा बनाने वाली एक फर्जी फैक्ट्री बिना किसी रोक-टोक के चल रही है. ये फतवे उसी तरह जारी किए जा रहे हैं, जैसे ठेले पर सब्जियां बेची जाती हैं. इस तरह की घोषणाएं अशांति फैलाने की कोशिश मात्र हैं. हालांकि, समाज सतर्क है और इन विध्वंसकारी चालों के प्रति जागरूक है." भाजपा नेता दानिश आजाद अंसारी ने  कहा, "हमें एक समाज के रूप में प्रगति और विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यह हमारी प्राथमिकता और सोच होनी चाहिए." 

क्या ये मौलाना पढ़ते भी हैं: शिवसेना
शिवसेना यूबीटी नेता आनंद दुबे ने मौलवी के निर्देश के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, "क्या ये मौलाना पढ़ते भी हैं या सिर्फ ज्ञान रखने का दावा करते हैं? पूरी दुनिया नया साल मनाती है, फिर भी वे इसके खिलाफ बोलते हैं. किसी खास धर्म को मनाने से रोकना नासमझी है. इन मौलानाओं में समझ की कमी है और उन्हें अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए वापस मदरसों में भेज देना चाहिए. गिरिराज सिंह जैसे नेता और कुछ भाजपा सदस्य इन मौलानाओं जैसी ही विभाजनकारी भाषा बोलते हैं, जो जहरीली है." 

यह घोषणा इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप है: अबू आज़मी
हालांकि, सपा नेता अबू आज़मी ने अलग नजरिया ज़ाहिर करते हुए कहा, "मैं नया साल नहीं मनाता. मैं सिर्फ भारत के कल्याण, सभी के खुश रहने और हमारी इकॉनमी के एक ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने के लिए प्रार्थना करता हूं. शराब पीना, पार्टी करना और अन्य गैर-इस्लामिक गतिविधियाँ ऐसी चीजें नहीं हैं, जिनका हम समर्थन करते हैं. यह फतवा एक खास समिति के लिए है, पूरे देश के लिए नहीं, और यह इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप है. "

क्या मौलाना ने जो कहा, वो फतवा है ? 
इस्लाम में फतवा किसी गंभीर धार्मिक मसले पर इस्लामिक दृष्टिकोण से दिए गए फैसले/ आदेश को कहते हैं. इसे जारी करने का अधिकार सिर्फ शरिया अदालतों और कौंसिल के पास होता है. इसके लिए ज़रूरी है कि फतवा देने वाले संस्थानों में मुफ़्ती और इस्लामिक कानून का विशेषज्ञ मौजूद हो.. इस लिहाज से मौलाना कारी इस्हाक गोरा और  मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का बयान फतवा ही नहीं है, ये दोनों मौलाना का व्यक्तिगत विचार है. इन दोनों मौलाना में न तो कोई मुफ़्ती है, न ही इनके पास फतवा देने का कोई अधिकार है. 

इस मसले पर क्या कहते हैं मुफ्ती ? 
इस मसले पर मुफ्ती डॉक्टर शमशुद्दीन नदवी कहते हैं, " इस्लाम में आडम्बर और दिखावा के लिए कोई जगह नहीं हैं. इस्लाम में नाच- गाना, शराब, हुडदंग, आवारगर्दी, फिजूलखर्ची के लिए भी कोई जगह नहीं है. हमारा कोई भी अमल जिससे दूसरे लोगों को तकलीफ पहुंचे, कोई परेशानी हो, हमें ही कोई परेशानी में मुब्तला हो जाने का खतरा हो उस काम से मना किया गया है.  नदवी कहते हैं, नया साल या कोई और भी जश्न समाज में गैर- बराबरी को दर्शाता है.. कितने लोग आखिर नया साल मनाते हैं ? जो चीज समाज में अमीर- गरीब की खाई को बढ़ाती हो, ऐसे अमल से परहेज करना ही ज़यादा अच्छा है. फिर ये भी सच है कि 1 जनवरी को नया साल मानाना इसाई मजहब के लोगों का एक मजहबी अमल है. इस्लाम में नया साल मुहर्रम की पहली तारीख को होती है, तो सनातन धर्म में नया साल शक संवत के हिसाब से किसी और माह में मनाया जाता है. दुनिया पहले ही वेस्टर्न कल्चर के असर यानी कल्चरल साम्राज्यवाद से ग्रस्त है, ऐसे में उसे बढ़ावा क्यों देना चाहिए ? इसाई अगर अपने मजहब को फॉलो कर रहे हैं, तो हमें क्यों नहीं करना चाहिए?" हालांकि, शमशुद्दीन नदवी इस बात को खरिज करते हैं की किसी को नए साल की मुबारकबाद देने भर से कोई बड़ा गुनाह हो जाता है या मुसलमान ईमान से ख़ारिज हो जाता हो.  नदवी कहते हैं, हम जिस समाज में रहते हैं, उसके कुछ शिष्टाचार होते हैं.. इस लिहाज मुबारकबाद लेने और देने में कोई गुनाह या गुमराही का मामला नहीं बनता है. कोई बिना दारु- शराब के नया साल मना भी लेता है, तो इसमें कोई गुरेज नहीं है, लेकिन ऐसा न करना ज्यादा अच्छा होगा. नदवी कहते हैं, नया साल मनाना अगर इतना ही ज़रूरी है तो क्या आपने अम्बानी, अडानी, बिलगेट्स, ट्रम्प, या नरेन्द्र मोदी को नया साल मनाते देखा या सुना है?"   
 

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