Faiz Ahmad Faiz: 'तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं'; फैज अहमत फैज के शेर
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Faiz Ahmad Faiz: 'तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं'; फैज अहमत फैज के शेर

Faiz Ahmad Faiz Shayari: फैज अहमद फैज के वालिद मुहम्मद सुलतान खां बैरिस्टर थे. फैज की इब्तिदाई तालीम पूरबी ढंग से शुरू हुई. यहां पेश हैं फैज अहमद फैज के कुछ शेर.

Faiz Ahmad Faiz: 'तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं'; फैज अहमत फैज के शेर

Faiz Ahmad Faiz Shayari: फैज अहमद फैज उर्दू के मशहूर शायर थे. उनकी पैदाईश 13 फरवरी 1911 को सियालकोट पंजाब में हुई. फैज की शायरी को पूरी दुनिया में पसंद किया गया. उनके बेहतरीन काम के लिए उन्हें 1962 में सोवियत संघ ने लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया. फैज अहमद फैज की मौत से पहले उनका नामांकन नोबेल पुरस्कार के लिए किया गया था. फैज अहमद फैज के काम को देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “निशान-ए-इम्तियाज़” से नवाज़ा. उन्हें 20 नवंबर 1984 को वफात मिली.

सारी दुनिया से दूर हो जाए 
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे 

हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ 
दिल सँभाले रहो ज़बाँ की तरह 

आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर 

आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान 
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे 

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई 
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए 

अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें 
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम 

जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी 
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या 

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा 
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा 

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं 
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं 

हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन 
अब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ है 

उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर 
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं 

फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं 
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम

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