नई दिल्लीः साल 2007-10 में यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (YEIDA) के लिए हुए भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की दो जजों की बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
मंगलवार को सुनवाई के दौरान यमुना अथॉरिटी के लिए वरिष्ठ वकील के. सुंदरम पेश हुए, जबकि भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) के लिए वकील डॉ. सुरत सिंह पेश हुए. दोनों ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं.
'किसानों को नहीं बनाया गया था पार्टी'
वकील सूरत सिंह ने कोर्ट में कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में बिल्डरों ने किसानों को पार्टी नहीं बनाया था, जिसके चलते हाई कोर्ट ने किसानों को सुने बिना ही इस मामले में फैसला सुना दिया था, जो न्याय की अवधारण के खिलाफ है.
पिछली सुनवाई में यमुना अथॉरिटी की तरफ से वकील डॉ. सूरत सिंह ने अपनी दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जब बिल्डर ने खुद ही किसानों को मुआवजा देने के लिए अंडरटेकिंग दी थी तो इससे पीछे बिल्डर कैसे हट सकते हैं? और इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बिल्डर की ओर से छिपाई गई अंडरटेकिंग की जानकारी पर आधारित था.
'बिल्डरों ने अतिरिक्त मुआवजा देने की दी थी अंडरटेकिंग'
दरअसल, साल 2007-10 में किसानों की 11 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण 9 हजार करोड़ रुपये में हुआ था. किसान अतिरिक्त मुआवजा की मांग कर रहे थे, जिस पर सरकार ने बिल्डरों से किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने को कहा था. बाद में बिल्डरों ने किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए सरकार को अंडरटेकिंग भी दी थी, लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया.
हाई कोर्ट ने बिल्डरों के हक में दिया था फैसला
हाई कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला बिल्डरों के हक में दिया और कहा कि बिल्डरों को अतिरिक्त मुआवजा देने की जरूरत नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यमुना अथॉरिटी और भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
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