Exclusive: YEIDA भूमि अधिग्रहण मामले में किसानों को SC से बड़ी राहत; 64.7 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश

यमुना अथॉरिटी के लिए वरिष्ठ वकील के. सुंदरम पेश हुए जबकि भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) के लिए वकील डॉ. सुरत सिंह पेश हुए थे और अपनी-अपनी दलीलें रखीं थी. वकील सूरत सिंह ने कोर्ट में कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में बिल्डरों ने किसानों को पार्टी नहीं बनाया था.

Written by - Sumit Kumar | Last Updated : May 19, 2022, 09:47 PM IST
  • YEIDA भूमि अधिग्रहण मामले में किसानों को SC से राहत
  • 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा देने का मिला आदेश
Exclusive: YEIDA भूमि अधिग्रहण मामले में किसानों को SC से बड़ी राहत; 64.7 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश

नई दिल्लीः साल 2007-10 में यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डवलपमेंट ऑथोरिटी (YEIDA) के लिए हुए भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की दो जजों की बेंच ने किसानों को बड़ी राहत देते हुए 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया. इससे अब करीब 10 हजार से अधिक किसानों को लगभग 5398 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा मिल सकेगा.

भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) के वकील डॉ. सुरत सिंह ने ज़ी मीडिया से Exclusive बातचीत में बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें बिल्डर्स ने सरकार के 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवाजे की नीति को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार और YEIDA की नीति जनता के हित में है और इसको हम कानूनी रूप से सही ठहराते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से 10 हजार से अधिक किसानों को लाभ मिलेगा, जिसके लिए वे पिछले 15 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. आपको बता दें कि 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

यमुना अथॉरिटी के वकील ने रखी अपनी दलील

इससे पहले यमुना अथॉरिटी के लिए वरिष्ठ वकील के सुंदरम पेश हुए जबकि भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) के लिए वकील डॉ. सुरत सिंह पेश हुए थे और अपनी-अपनी दलीलें रखीं थी. वकील सूरत सिंह ने कोर्ट में कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में बिल्डरों ने किसानों को पार्टी नहीं बनाया था, जिसके चलते हाईकोर्ट ने किसानों को सुने बिना ही इस मामले में फैसला सुना दिया था जो कि प्रकृति न्याय के खिलाफ है.

वकील डॉ सुरत सिंह ने अपनी दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जब बिल्डर ने खुद ही किसानों को मुआवजा देने के लिए अंडरटेकिंग दी थी तो इससे पीछे बिल्डर कैसे हट सकते है? और इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बिल्डर की ओर से छिपाई गई अंडरटेकिंग की जानकारी पर आधारित था.

11 हजार एकड़ भूमि का हुआ था अधिग्रहण

दरअसल, 2007-10 में किसानों की 11 हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण 9 हजार करोड़ रूपए में हुआ था. किसान अतिरिक्त मुआवजा की मांग कर रहे थे, जिसपर सरकार ने बिल्डरों से किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने को कहा था और बाद में बिल्डरों ने किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए सरकार के पास अंडरटेकिंग भी दी थी लेकिन कुछ समय बाद बिल्डरों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया.

हाई कर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला बिल्डरों के हक में दिया और कहा कि बिल्डरों को अतिरिक्त मुआवजा देने की जरूरत नहीं है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यमुना अथॉरिटी और भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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