नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 44वें स्थापना दिवस पर पार्टी मुख्यालय में 37 साल के एक युवा नेता की तारीफों के पुल बांधे गए, उसे “बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति और राजनीतिक एवं सामाजिक योद्धा” तक बताया गया. यह युवा नेता भाजपा का कोई सदस्य नहीं, बल्कि कांग्रेस छोड़ पार्टी में शामिल हुए अनिल एंटनी थे.
कांग्रेसी विरासत से अनिल एंटनी की बगावत का बखान
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और भाजपा के कुछ अन्य नेताओं ने अनिल एंटनी की जिस तरह से तारीफ की, वो उनकी निजी हैसियत के साथ पांच दशक की कांग्रेसी विरासत से उनकी बगावत का बखान भी था. पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भले ही अपने पुत्र के भाजपा में शामिल होने पर दुख और असहमति जताई हो, लेकिन अनिल अपने पिता की परछाई के साथ ही सत्तारूढ़ दल में शामिल हुए हैं और शायद अब तक कि उनकी सबसे बड़ी पहचान भी यही है.
दिलचस्प बात है कि जिस उम्र में अनिल ने मध्यमार्गी विचारधारा से दक्षिणपंथी विचारधारा की राह पकड़ी है, तकरीबन उसी उम्र में उनके पिता पहली बार केरल के मुख्यमंत्री बन गए थे. खुद अनिल का मानना है कि उनके लिए कांग्रेस छोड़ना और पिता की बनाई लकीर से दूर जाना बहुत मुश्किल फैसला था, लेकिन कांग्रेस और उसके नेतृत्व की मौजूदा स्थिति को देखते हुए उन्हें निर्णय लेना पड़ा.
कुछ ही सालों का है अनिल एंटनी का सियासी सफर
बहरहाल, अनिल का राजनीतिक करियर अभी भले ही कुछ वर्षों का हो, लेकिन उनकी शैक्षिणक और पेशेवर जिंदगी शानदार रही है. अनिल एंटनी ने 2007 में तिरुवनंतपुरम के ‘कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग’ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. फिर उन्होंने अमेरिका के प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ साइंस (एमएस) की पढ़ाई की. वह एक तकनीकी पेशेवर भी हैं. उन्होंने सिस्को सहित विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम किया है.
अनिल एंटनी ने ‘पार्लियामेंटेरियंस विथ इंवेस्टर्स फॉर इंडिया’ नामक संस्था की सह-स्थापना की है. सियासी माहौल में पले-बढ़े अनिल एंटनी ने जनवरी 2019 में सक्रिय राजनीतिक में कदम रखा था. वह केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के डिजिटल मीडिया प्रकोष्ठ में शामिल हुए थे और फिर पार्टी के लिए चार वर्षों तक काम किया. इस साल जनवरी में उन्होंने ‘बीबीसी’ पर एक वृत्तचित्र के प्रसारण का खुलकर विरोध किया था, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आधारित थी. उनकी राय कांग्रेस की आधिकारिक राय से बिल्कुल अलग थी. इसके बाद, अनिल ने पार्टी से अलग होने का फैसला कर लिया.
विशेषज्ञों का मानना है कि अनिल एंटनी ने अपने लिए भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है. दरअसल, केरल में फिलहाल भाजपा दूसरे राज्यों के मुकाबले कमजोर है और उसके पास वहां मजबूत नेताओं का भी अभाव है. ऐसे में एंटनी के पास आने वाले समय में खुद को केरल में भाजपा के प्रमुख नेताओं में शुमार करने का अवसर है. हालांकि, अनिल के भाई अजित ने दावा किया है कि भाजपा उन्हें ‘दूध से मक्खी’ की तरह निकाल फेंकेगी. बहरहाल, इस सवाल का जवाब तो भविष्य में ही छिपा है कि अनिल अपने पिता की तरह एक सफल राजनीतिक पारी खेल पाएंगे या नहीं.
(इनपुट: भाषा)
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