जानिए वे सवाल, जिनकी वजह से अटकी यूपी की 69000 शिक्षकों की भर्ती

भर्ती के लिए जो परीक्षा हुई थी उसमें कई प्रश्न ऐसे पूछे गए थे जिनके सही विकल्पों को लेकर छात्रों ने सवाल उठाया था. बल्कि एक प्रश्न तो ऐसा भी है जिसके वास्तविक उत्तर और आंसर की में जारी किए गए उत्तर से यूपी के शिक्षा मंत्री भी इत्तेफाक नहीं रखते हैं

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 13, 2020, 08:57 PM IST
    • जानकारी के मुताबिक 13 सवालों पर विवाद है, लेकिन कुछ प्रमुख सवाल जो सुर्खियां बने हुए हैं
    • मामले में फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 3 जून के आदेश पर स्टे कर दिया है
जानिए वे सवाल, जिनकी वजह से अटकी यूपी की 69000 शिक्षकों की भर्ती

लखनऊः उत्तर प्रदेश में अभ्यर्थी डेढ़ साल से शिक्षक भर्ती का इंतजार कर रहे थे, लेकिन कोई सरकारी नौकरी बिना किसी विवाद के हो जाए तो यह बात अलग ही इतिहास में दर्ज हो जाएगी. दिसंबर 2018 में निकली भर्ती के लिए जनवरी 2019 में परीक्षा हुई. तबसे परिणाम, कोर्ट-कचहरी, विवाद, काउंसिलिंग और रोक का सिलसिला जारी है. 

इन सभी मामलों में सबसे दिलचस्प मसला है प्रश्नपत्र पर सवालिया निशान का. दरअसल भर्ती के लिए जो परीक्षा हुई थी उसमें कई प्रश्न ऐसे पूछे गए थे जिनके सही विकल्पों को लेकर छात्रों ने सवाल उठाया था. बल्कि एक प्रश्न तो ऐसा भी है जिसके वास्तविक उत्तर और आंसर की में जारी किए गए

उत्तर से यूपी के शिक्षा मंत्री भी इत्तेफाक नहीं रखते हैं. अभ्यर्थी कई प्रश्नों के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. इसी आधार पर डाली गई याचिका को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट  की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में चल रही 69000 सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. जानकारी के मुताबिक 13 सवालों पर विवाद है, लेकिन कुछ प्रमुख सवाल जो सुर्खियां बने हुए हैं. 

आंसर की में गलत विकल्प को सही बताया
इसमें पहला विवादित प्रश्न है कि भारत में गरीबी का आंकलन किस आधार पर किया जाता है? आंसर की इसके लिए जवाब दिया गया है कि 'परिवार का उपभोग व्यय' जबकि सही उत्तर 'प्रति व्यक्ति व्यय है'. प्रश्न पत्र में वास्तविक सही विकल्प तीसरे नंबर पर दिया गया था. इसलिए अभ्यर्थियों ने इसे सही माना था. जबकि आंसर की में इसे गलत बता दिया गया था. 

बड़ा सवाल, संविधान सभा के अध्यक्ष कौन? जवाब ने चकरघिन्नी बनाया
इसी तरह एक और प्रश्न पूछा गया है कि संविधान सभा के पहले अध्यक्ष कौन थे? इसके जवाब में लिखा है 'सच्चिदानंद सिन्हा' जबकि अगला ही विकल्प 'डॉ राजेंद्र प्रसाद' के नाम के तौर पर है. जानकारों के मुताबिक दोनों ही सही हैं, क्योंकि सच्चिदानंद सिन्हा भी अस्‍थाई अध्यक्ष बने थे और स्‍थाई अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे.

अब या तो यह प्रश्न अस्पष्ट है या फिर दोनों ही उत्तर सही किए जाने चाहिए.  अभ्यर्थियों का भी कहना है कि पहले की भी हुई परीक्षाओं में जब यह प्रश्न पूछा गया तो  स्पष्ट रूप से स्थायी या अस्थायी लिखकर पूछा गया. दोनों में से कोई एक ही विकल्प दिया गया. उनकी मांग है कि यह प्रश्न भ्रामक है. पूछने का तरीका गलत है, इसलिए इस प्रश्न पर सबको कॉमन अंक दिया जाएं.

लेखक ने कहा कुछ और, सवाल पूछा गया कुछ और
तीसरा विवादित सवाल एक लेखक का कहा गया व्यक्तव्य है. इसके उत्तर में भी आंसर की में विकल्प संख्या 3 को सही माना गया है. लेखक का कोट लिखकर उनका नाम पूछा गया है. उत्तर में नाम लिखा है वेलफेयर ग्राह्य, जबकि असल में इस लेखक का कथन बेहद अलग है जो प्रश्नपत्र में लिखे कोट से नहीं मिलता है. अभ्यर्थियों का कहना है कि इसलिए यह प्रश्न ही गलत है और भ्रामक भी. इसलिए इसके सभी विकल्प सही मानते हुए सबको समान नंबर दें.

कहां है केंद्रीय ग्लास और सेरिमिक अनुसंधान संस्थान?
एक प्रश्न में पूछा है कि केंद्रीय ग्लास और सेरिमिक अनुसंधान संस्थान कहां है. इसका सही उत्तर कोलकाता है जो किसी विकल्प में है ही नहीं इसलिए यह प्रश्न पूछने का ढंग गलत है इसलिए इस पर सबको समान अंक दें.

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यह सवाल तो उत्तर प्रदेश की साख है
सबसे अधिक विवादित इस प्रश्न को लेकर है. पूछा गया है कि नाथ पंथ के प्रवर्तक कौन थे. इस प्रश्न के जवाब को लेकर मंत्री और अधिकारी भी एक मत नहीं हैं. अधिकारियों के अनुसार सही उत्तर मत्स्येंद्रनाथ हैं, जबकि मंत्री के अनुसार सही उत्तर गोरखनाथ है.


उक्त प्रश्न का सही उत्तर ‘विकल्प-1 मत्स्येन्द्रनाथ बताया गया जबकि अभ्यर्थियों ने ‘विकल्प -2 गोरखनाथ को सही उत्तर होने का दावा किया है. यह भी कहा गया है कि बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से प्रकाशित कक्षा छह की किताब में ‘गुरू गोरखनाथ को ‘नाथ पंथ का प्रवर्तक बताया गया है.

वहीं न्यायालय ने यह भी पाया था कि टीजीटी की परीक्षा में भी यही प्रश्न पूछा गया था लेकिन उसमें ‘मत्स्येन्द्रनाथ का विकल्प ही नहीं था जबकि ‘गोरखनाथ का विकल्प दिया गया था. मंत्री सतीश द्विवेदी ने भी अधिकारियों को यही बिंदु उठाते हुए फटकारा था. 

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