Dr S Jaishankar in St. Petersberg University: भारत और रूस के बीच संबंध सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है. सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी में डॉ एस जयशंकर ने अपने भाव को इंडोलॉजिस्ट के साथ इंटरएक्शन में व्यक्त किया. खास बात यह थी कि उन्होंने उस स्कूल का दौरा किया जिसका नामकरण गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के नाम पर किया गया है और कुछ बड़ी बात भी कही.
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India- Russia Relation: कहते हैं कि कुछ रिश्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं. भारत और रूस के बीच रिश्तों को सिर्फ शब्दों से बयां नहीं कर सकते. हमारे बीच का संबंध सिर्फ राजनीति या कूटनीति तक सिमटा नहीं है. बल्कि उससे कहीं अधिक गहरा है. इस वाक्य के जरिए सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी में विदेश मंत्री डा एस जयशंकर ने भारत के भाव को सामने रखा. यूनिवर्सिटी में इंडोलॉजिस्ट के बीच अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यहां आने से पहले उस स्कूल का दौरा करने का सौभाग्य मिला जिसका नामकरण रविंद्रनाथ टैगोर के नाम पर किया गया है. उस स्कूल में जब उन्होंने बच्चों को हिंदी में पढ़ते देखा तो उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. दोनों देशों के बीच जो रिश्ता कायम है वो सिर्फ किसी खास फायदे के संदर्भ में नहीं है. बल्कि उससे कहीं आगे है, स्कूल में जिस तरह का माहौल नजर आया वो गजब का था.
डॉ एस जयशकंर को हिंदी में पढ़ते जब बच्चे दिखे
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने कहा कि सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी आने से पहले उन्होंने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के नाम वाले स्कूल को देखने का मौका मिला. खास बात यह थी कि जब वो वहां पहुंचे तो बच्चे हिंदी में पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने कहा कि दिल के अंदर जिस आनंद की अनुभूति हुई उसे बताते हुए बेहद खुशी हो रही है. हमें भाषाई संबंधों के जरिए रिश्ते को और जीवंत करने के लिए काम करने की जरूरत है. हमारा संबंध भाषा के क्षेत्र में पहले से ही मजबूत रहा है और हम इस दिशा में और क्या कुछ कर सकते हैं. किस तरह से इसे और मजबूत बना सकते हैं उस दिशा में काम करना होगा.
Interacting with Indologists at St. Petersburg State University. https://t.co/tkGC5755Yn
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) December 28, 2023
भाषा सिर्फ कमरों तक ना रहे कैद
विदेश मंत्री ने कहा कि गुरुवर रविंद्रनाथ टैगोर से संबंधित जो पाठ पढ़ाए जा रहे हैं, उसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है. हमारे संबंध सिर्फ राजनीति, कूटनीति या अर्थनीति तक सीमित ना हो. इसके लिए हमें भाषाई तौर पर भी और आगे बढ़ना होगा. सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी में आप लोगों(इंडोलॉजिस्ट के साथ डॉ एस जयशंकर संवाद कर रहे थे) के साथ बैठकर तमाम विषयों पर बात कर बेहद अच्छा लग रहा है. साहित्य के क्षेत्र में रूसी साहित्यतकारों और विद्वानों के योगदान को कैसे भुला जा सकता है. जरूरत है कि दोनों देश भाषा के क्षेत्र में नित नए प्रयोग करें और अकादमिक जगत की बातें सिर्फ स्कूलों या यूनिवर्सिटी तक सीमित ना रहे है. बल्कि इससे आम लोग भी जुड़ सकें.
टैगोर को रूस से क्यों था इतना प्रेम
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर 11 सितंबर 1930 को सोवियत संघ गए थे. उससे पहले स्टॉकहोम में उस समय के सोवियत संघ के राजदूत अलेंक्जेंडर अरोसिव से भेंट में रूस का दौरा करने की इच्छा जाहिर की थी. खास बात यह है कि रूस के साहित्यिक जगत में टैगोर काफी लोकप्रिय थे. अनातोली लुनाचार्स्की, शिक्षा मंत्रालय से जुड़े हुए थे और उन्होंने टैगोर को व्यक्तिगत स्तर पर रूस आने का न्यौता दिया था. जब रविंद्र नाथ टैगोर के सोवियत संघ आने की खबर मिली तो बौद्ध अध्ययन में खास रुचि रखने वाले सर्गेई ओल्डेनबर्ग की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
ऐसा कहा जाता है कि स्टालिन का शासन प्रणाली टैगोर को रास नहीं आती थी. लेकिन रूस की शिक्षा व्यवस्था में जो बुनियादी बदलाव किए गए थे उससे वो प्रभावित थे. एक खास मौके का जिक्र रविंद्र नाथ टैगोर कुछ इस तरह करते हैं. कम्यून नाम के एक शैक्षणिक केंद्र के दौरे के बारे में वो कहते हैं कि कैसे अनाथ बच्चों ने उनका स्वागत किया वो भी तब सरकार को उनके विचार रास नहीं आ रहे थे. वो यह भी कहते हैं कि सोवियत संघ में सरकारी व्यवस्था जिस भी अंदाज में काम कर रही हो शिक्षा के प्रति यहां का शिक्षक जगत खुद ही बहुत सक्रिय है.