कोरोना वायरस से हुई मौतें Global Failure का नतीजा, भारत बोल रहा था झूठ; लैंसेट की रिपोर्ट में किया गया दावा
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कोरोना वायरस से हुई मौतें Global Failure का नतीजा, भारत बोल रहा था झूठ; लैंसेट की रिपोर्ट में किया गया दावा

Lancet COVID-19 Commission’s report: लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 31 मई 2022 तक दुनियाभर में कोरोना वायरस की वजह से तकरीबन 70 लाख मौतें रिपोर्ट हुई हैं. लैंसेट के मुताबिक ये आंकड़ों में दर्ज मौते हैं, अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक असल में कोरोना से दुनिया में 1 करोड़ 70 लाख लोगों की जान गई है.

कोरोना वायरस से हुई मौतें Global Failure का नतीजा, भारत बोल रहा था झूठ; लैंसेट की रिपोर्ट में किया गया दावा

Corona Virus Report: कोरोना वायरस की महामारी से निपटने में दुनिया का सरकारी सिस्टम बड़े पैमाने पर फेल ना होता तो इतनी मौतें ना होती. लैंसेट की लेटेस्ट रिपोर्ट में ये दावा किया गया है. लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 31 मई 2022 तक दुनियाभर में कोरोना वायरस की वजह से तकरीबन 70 लाख मौतें रिपोर्ट हुई हैं. लैंसेट के मुताबिक ये आंकड़ों में दर्ज मौते हैं, अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक असल में कोरोना से दुनिया में 1 करोड़ 70 लाख लोगों की जान गई है. कई देशों की सरकारें कोरोना वायरस की जानकारी देने में छुपा छुपी का खेल बरतती रहीं. पारदर्शिता की भारी कमी दिखी और आधी अधूरी और गलत जानकारियों के आधार पर फैसले लिए गए. Lancet COVID-19 Commission’s report on 'Lessons for the future from the COVID-19 pandemic,' नाम की ये रिपोर्ट आज ही जारी हुई है.

भारत में कोरोना वायरस की सही रिपोर्टिंग नहीं हुई, मौतें कम करके गिनाई गईं- लैंसेट 

Lancet की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल से जून 2021 में भारत में डेल्टा वायरस का कहर था. उस वक्त मौतों का सही आंकड़ा दर्ज नहीं किया गया. मौतें कम करके आंकी जा रही थीं. ये भी कहा गया कि जुलाई 2021 में कोरोना वायरस की पाबंदियों में त्यौहारों को देखते हुए ढील दे दी गई जिससे अक्टूबर 2021 में भारत में डेल्टा का नया वेरिएंट आकर पूरी दुनिया में फैला और तीसरी लहर आ गई. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2020 में भारत ने लॉकडाउन का फैसला तो तेजी से ले लिया जब भारत में केवल 654 केस थे. लेकिन अप्रैल 2021 में डेल्टा ने तबाही मचा दी. इस वक्त तक भारत ने लॉकडाउन में काफी ढील दे दी थी. चुनाव करवाए जा रहे थे, कई त्यौहार आ रहे थे और प्रोटेस्ट हो रहे थे. इन जगहों पर लोगों ने मास्क सही तरीके से नहीं लगाए. भारत की सरकार इस तबाही से निपटने के लिए तैयार नहीं थी. 

भारत में 1 जनवरी से 30 जून 2021 तक कोरोना के 2 करोड़ केस दर्ज हुए और ढाई लाख मौतें दर्ज हुई जबकि असल आंकड़ा कहीं ज्यादा होने का अनुमान था. 

सीरो सर्वे खोल रहा था भारत में संक्रमण की पोल- लैंसेट 

भारत में सीरो-सर्वे के दौरान दिसंबर और जनवरी 2021 के दौरान भारतीयों में 24% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई थी, जबकि जुलाई 2021 तक 62% लोगों में एंटीबॉडी थी. यानी अनुमान से कहीं ज्यादा को कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका था. 42 करोड़ लोग कोरोना संक्रमित थे और अप्रैल से जुलाई 2021 के बीच ही 1 करोड़ 60 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी. जबकि इस वक्त भारत आधिकारिक तौर से 1 करोड़ 80 लाख केस बता रहा था और मौतों का आंकड़ा 2 लाख 52 हजार 997 पर ही बताया गया था.

एक दूसरे अनुमान के मुताबिक कोरोना शुरू होने से लेकर सितंबर 2021 तक भारत में 4 लाख 40 हजार मौतें दर्ज हुई थीं, जबकि आंकलन के मुताबिक ये मौतें 30 लाख 40 हजार तक रही होंगी. लैंसेट के मुताबिक भारत ने असल मौतों के मुकाबले केवल 14% मौतें ही दर्ज की हैं. भारत ने वैक्सीन बनाने के बावजूद उसे दूसरे देशों को बांटने के बजाय अपने देश में पहले खपाया, इसके लिए भी भारत की आलोचना की गई है. यूके, अमेरिका और चीन को भी इसी तरीके के लिए लपेटे में लिया गया है.

सरकारें इसलिए हो गईं नाकाम 

रिपोर्ट में सरकारों की नाकामी के वो कारण भी गिनाए गए हैं जिनकी वजह से कोरोनावायरस की महामारी बेकाबू हुई. कोरोना वायरस की बीमारी को नोटिफाई करने में देरी की गई. कोरोना वायरस हवा से फैलता है ये मानने में काफी देरी की गई, जिससे इस वायरस को रोकने के सही तरीके ही लागू नहीं किए जा सके. बीमारी को रोकने में देशों के बीच तालमेल की कमी भी देखी गई. दूसरे देशों से अपने देश तक बीमारी को रोकने के तरीके गलत अपनाए गए. गरीब देशों को सही समय पर फंड नहीं दिए गए. गरीब देशों को पीपीई किट, वैक्सीन और दवाओं की सप्लाई सही समय पर नहीं मिली. इंफेक्शन और मौतों का डाटा वैज्ञानिक तरीके से नहीं जुटाया गया जिससे बीमारी के सही फैलाव का अंदाजा लग पाता. बायोसेफ्टी डिस्पोजल जैसे काम सही तरीके से नहीं हुए - संभव है कि लैब से ही महामारी फैल रही हो.

रिपोर्ट में चीन को क्लीन चिट, विश्व स्वास्थय संगठन पर फोड़ा ठीकरा 

लैंसेट कोविड 19 कमीशन जुलाई 2020 में बनाई गई थी. जिसने 172 एक्सपर्ट्स की सलाह से दो साल बाद रिपोर्ट दी है जो ये बता रही है कि महामारी से कैसे निपटा जाए और क्या क्या खामियां रह गईं. यानी अब हम क्या सबक ले सकते हैं. दिलचस्प बात ये है कि दुनिया के देशों की नाकामी बताने वाली इस रिपोर्ट ने दो साल की मेहनत के बाद चीन का इस महामारी के फैलने में हाथ होने की बात को नकार दिया है. रिपोर्ट का सबसे मुख्य निष्कर्ष है कि, 'SARS-CoV-2 कहां से आया, ये ज्ञात नहीं है. इसके पीछे दो बातें हो सकती हैं. ये जानवरों से किसी WET मार्केट से फैला और इंसानों को हो गया और दूसरी बात ये कि ये किसी वायरस पर रिसर्च के दौरान हुई किसी गड़बड़ी से फैला. इस विषय पर और जांच की जरुरत है.'

लैंसेट के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमारी की गंभीरता का आंकलन करने में अति सावधानी बरती और बहुत धीमी रफ्तार से काम किया. इसे पब्लिक हेल्थ एमरजेंसी घोषित करने में भी WHO ने बहुत वक्त गंवा दिया. साथ ही मास्क की अहमियत बताने और ये वायरस हवा से फैलता है, इसे स्वीकार करने में भी WHO ने बहुत देरी की. कई देशों की सरकारों ने कोरोना वायरस से निपटने में तत्परता नहीं दिखाई. हालांकि कुछ पश्चिमी देशों (Western pacific region) ने तुरंत काम किया लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट ने अब उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है. गौरतलब है कि इस रीजन में जापान, ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया और फिलीपींस जैसे देश आते हैं. America समेत इन्हीं देशों में ओमिक्रॉन ने सबसे ज्यादा नुकसान किया है.

एक दूसरे पर निर्भरता होने के बावजूद देशों में कोई तालमेल नहीं था कहीं टेस्टिंग किट्स की कमी थी तो कहीं वैक्सीन की. कहीं सप्लाई चेन का अभाव था तो कहीं बीमारी की रिपोर्टिंग सही नहीं हो रही थी.

लगभग सभी देशों ने कहां कर दी चूक?

सामाजिक कारण - लोगों ने मास्क को सही तरीके से फिट करके नहीं लगाया और वैक्सीन लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. सरकार के फैसलों को लेकर लोगों में भरोसा नहीं था. सरकारें पॉलिसी बनाने और बदलने में लगी रही और लोग विरोध करने में. कई लोगों पर महामारी ने अतिरिक्त भार डाल दिया - जैसे हे्ल्थ केयर वर्कर पहले से कम थे, उन पर काम का बोझ बढ़ गया. गरीब देशों में लॉकडाउन में स्कूल बंद होने और दूसरे तरीकों से से लोगों की इनकम कम होती चली गई. पहले से बीमार और बुजुर्गों को सही देखभाल नहीं मिल सकी. हालांकि संपन्न देशों को ऐसी दिक्कतों का सामना कम करना पड़ा था. देशों ने वैक्सीन विकसित करने में तो तेजी दिखाई, लेकिन वैक्सीन बांटने के तरीके काफी भेदभाव पूर्ण रहे. एक दूसरे से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में भी तालमेल नहीं दिखा.

लैंसेट ने कोरोना वायरस ने निपटने की खामियों के लिए कमजोर WHO पर निशाना साधा

लैंसेट ने महामारी से हुए नुकसान से सबक लेने के लिए जो सिफारिशें दी हैं, उसमें निशाना WHO पर है. इसमें WHO की लीडरशिप पर सवाल है. सिफारिशों में WHO को एक हेल्थ बोर्ड बनाने की सलाह दी गई है. ग्लोबल हेल्थ फंड बनाने की सिफारिश भी की गई है. इसके अलावा सरकारों को आपस में तालमेल से काम करने की सलाह दी गई है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हर देश के पास महामारी ने निपटने की योजना पहले से तैयार होनी चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लैंसेट की रिपोर्ट को खारिज किया 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक उन्होंने बीमारी को पहचानने में ना तो देरी की और ना ही इसे आपदा घोषित करने में समय बर्बाद किया. लैंसेट की रिपोर्ट को तथ्य सही पेश ना करने वाला बताते हुए WHO ने सफाई दी कि 30 दिसंबर 2019 को चीन के वुहान से रहस्यमयी निमोनिया की जानकारी मिली थी और 5 जनवरी को  WHO ने सदस्य देशों को पहला अलर्ट जारी कर दिया था. 23 जनवरी 2020 तक चीन के अलावा दूसरे देशों से 9 केस आए थे, कोई मौत नहीं हुई थी उसी दिन बीमारी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने पर विचार शुरू हो गया था. 30 जनवरी 2020 को जब 18 देशों में कोरोना वायरस फैल चुका था और 98 मामले रिपोर्ट हुए - तब तक कोई मौत नहीं हुई थी लेकिन उसी दिन इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया गया था.

हालांकि WHO ने माना कि संगठन को फंडिंग की जरूरत है और इस विषय में WORLD HEALTH ASSEMBLY काम कर रही है.

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