Neeraj Chopra: चंद्रयान, प्रज्ञान और अब नीरज... भारत के लिए सुनहरा सप्ताह, अरबों भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा
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Neeraj Chopra: चंद्रयान, प्रज्ञान और अब नीरज... भारत के लिए सुनहरा सप्ताह, अरबों भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा

Neeraj Chopra : ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू प्रज्ञानानंदा का फिडे चेस वर्ल्ड कप के फाइनल तक का सफर, चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग और अब भारतीय स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा का वर्ल्ड चैंपियन बनना... भारतीयों के लिए ये सप्ताह सुनहरा रहा है. 

Neeraj Chopra: चंद्रयान, प्रज्ञान और अब नीरज... भारत के लिए सुनहरा सप्ताह, अरबों भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा

Neeraj Chopra, Gold in World Athletics Championship : चंद्रयान-3 की चांद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग, आर प्रज्ञानानंदा का फिडे वर्ल्ड कप के फाइनल तक का सफर और अब नीरज चोपड़ा का वर्ल्ड चैंपियन बनना... भारतीयों के लिए ये सप्ताह सुनहरा रहा है. एक नहीं, कई मौकों पर अरबों भारतीयों का सीना जैसे गर्व से चौड़ा हो गया. 

नीरज ने रचा इतिहास

नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने अपना वजन कम करने के लिए खेलना शुरू किया. आज उनकी गिनती देश ही नहीं, दुनिया के स्टार एथलीट में होती है. नीरज ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है. वह वैश्विक स्तर पर गोल्ड जीतने वाले भारत के पहले एथलीट बन गए हैं. हरियाणा के एक गांव से भारतीय खेलों के सबसे बड़े सितारों में नाम दर्ज कराने तक का सफर नीरज का इतना गौरवमयी रहा है कि हर कदम पर एक नई विजयगाथा वह लिखते चले जा रहे हैं.

ओलंपिक में भी गोल्ड

दो साल पहले तोक्यो में उन्होंने ओलंपिक ट्रैक और फील्ड स्पर्धा में भारत की झोली में पहला पीला तमगा डाला. उस समय उनकी उम्र महज 23 साल थी. महान निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के बाद ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में गोल्ड जीतने वाले वह दूसरे भारतीय बने. खेलों के महासमर में एथलेटिक्स में लंबे समय से पदक का सपना संजोये बैठे भारत को रातों-रात मानों एक चमकता हुआ सितारा मिल गया. पूरा देश उसकी कामयाबी की चकाचौंध में डूब गया और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है.

भारतीयों के लिए गौरवमयी पल

अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 में दस मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था. इससे पहले भारतीय हॉकी टीम ने भारत की झोली में 8 गोल्ड डाले थे. अब रविवार को बुडापेस्ट में वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर चोपड़ा ने भारतीयों को गौरवान्वित होने का एक और मौका दिया है. चंद्रयान-3 की कामयाबी , फिडे शतरंज विश्व कप में उप-विजेता रहे आर प्रज्ञानानंदा की सफलता के बाद चोपड़ा के वर्ल्ड चैंपियन बनने के साथ भारत के लिए बीता सप्ताह ऐतिहासिक रहा. एक ही समय में ओलंपिक और विश्व खिताब जीतने वाले चोपड़ा अब बिंद्रा के बाद दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन गए. बिंद्रा ने 23 की उम्र में वर्ल्ड चैंपियनशिप और 25 की उम्र में ओलंपिक स्वर्ण जीता था.

ओलंपिक में बाद बढ़ गया था वजन

नीरज अगर फिटनेस का स्तर बनाए रखेंगे तो कम से कम 2 ओलंपिक और 2 वर्ल्ड चैंपियनशिप में और खेल सकते हैं. वर्ल्ड जूनियर चैम्पियनशिप 2016 जीतकर पहली बार वैश्विक स्तर पर चमके चोपड़ा ने तोक्यो में गोल्ड जीतकर भारतीय खेलों के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में नाम दर्ज करा लिया था. पूरे देश ने जिस तरह उन पर स्नेह बरसाया, वह अभूतपूर्व था. अब तक ऐसा क्रिकेटर्स के लिए ही देखने को मिला था. तोक्यो के बाद उन्हें अनगिनत सम्मान समारोह में हिस्सा लेना पड़ा जिससे उनका वजन बढ़ गया था.

विराट और रोहित से भी ऊपर

तोक्यो ओलंपिक के बाद चोपड़ा ऑनलाइन सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाली भारतीय हस्ती बने- विराट कोहली और रोहित शर्मा से भी आगे. प्रायोजकों की जैसे उनके दरवाजे पर लाइन लग गई. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर उनके फॉलोअर्स बढ़ते गए. पिछले साल दिसंबर में वह फर्राटा धावक उसेन बोल्ट (Usain Bolt) को पछाड़कर दुनिया के ऐसे एथलीट बने जिनके बारे में सबसे ज्यादा लिखा गया है. उनके नाम से 812 लेख छपे हैं.

विनम्रता से मोह लेते हैं

तोक्यो ओलंपिक के बाद से प्रदर्शन में निरंतरता उनकी सफलता की कुंजी रही. पिछले 2 साल में हर टूर्नामेंट में उन्होंने 86 मीटर से ऊपर का थ्रो फेंका है. पिछले साल जून में स्टॉकहोम डायमंड लीग में उन्होंने 89.94 मीटर का थ्रो फेंक दूसरा स्थान हासिल किया. चोपड़ा भले ही बिंद्रा की तरह वाकपटु ना हों लेकिन अपनी विनम्रता से हर किसी का मन मोह लेते हैं. भारत हो या विदेश, सेल्फी या ऑटोग्राफ मांगने वालों को निराश नहीं करते. वह दिल से बोलते हैं और अपने हिन्दी भाषी होने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती.

बच्चे किताबों में पढ़ेंगे नाम!

बचपन में बेहद शरारती नीरज चोपड़ा संयुक्त परिवार में पले और लाड़ प्यार में वजन बढ गया. परिवार के जोर देने पर वजन कम करने के लिए उन्होंने खेलना शुरू किया. उनके चाचा उन्हें पानीपत के शिवाजी स्टेडियम ले जाते. उन्हें दौड़ने में मजा नहीं आता लेकिन भाला फेंक से उन्हें प्यार हो गया. उन्होंने इसमें हाथ आजमाने की सोची और बाकी इतिहास है जिसे शायद स्कूल की किताबों में बच्चे भविष्य में पढेंगे. (PTI से इनपुट)

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