Shiv Mantra: सावन में जरूर करें इस शक्तिशाली मंत्र का जाप, जानें अर्थ और महत्व
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Shiv Mantra: सावन में जरूर करें इस शक्तिशाली मंत्र का जाप, जानें अर्थ और महत्व

Mrityunjaya Mantra: महामृत्युंजय मंत्र का जाप विपत्ति के समय किया जाए तो यह एक दिव्य ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है, जो परेशानी से कवच के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है.

 

shiv mantra

Shiv Mahamrityunjaya Mantra: भगवान मृत्युंजय यानी शिवजी मनुष्य के सारे दुखों, परेशानियों और अहंकार को हर लेते हैं. भगवान शिव का महामंत्र महामृत्युंजय का जाप करने से आयु वृद्धि होती है. इसकी दिव्या ऊर्जा से रोग और भय से मुक्ति होती है. महामृत्युंजय मंत्र का जाप विपत्ति के समय किया जाए तो यह एक दिव्य ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है, जो परेशानी से कवच के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है. यह मंत्र भगवान शिव के प्रति एक प्रार्थना है. 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

मंत्र के शब्दों का अर्थ

त्र्यम्बकं: इसका अर्थ है तीन आंखों वाला, भगवान शिव की दो साधारण आंखें हैं पर तीसरी आंख दोनों भौहों के मध्य में है. तीसरी आंख विवेक और अंर्तज्ञान की है ठीक उसी प्रकार जब मनुष्य विवेक की दृष्टि से देखता है तो उसका अनुभव कुछ और ही होता है. इसके जाप से व्यक्ति में विवेक दृष्टि आने लगती है.

यजामहे:  इसका अर्थ है हम पूजते हैं, किसी भी मंत्र के पाठ व जाप के दौरान भगवान के प्रति जितना पवित्र भाव रखा जाएगा उतना ही उस मंत्र का प्रभाव बढ़ेगा. ईश्वर के प्रति सम्मान और विश्वास रखते ही प्रकृति की ओर देखने का नजरिया बदलने लगेगा. जब भी हम पूजा करते हैं तो कुछ विपरीत शक्तियां पूजा से मन को हटाने की कोशिश करती हैं लेकिन अगर इन हीन शक्तियों के वेग को थाम लिया जाए तो ईश्वरी कृपा प्राप्त होती है और हम यजामहे की ओर बढते हैं. 

सुगन्धिं: भगवान शिव सुगंध के पुंज हैं, जो मंगलकारी है उनका नाम ही शिव है. उनकी ऊर्जा को यहां सुगंध कहा गया है. जब व्यक्ति अहंकारी, अभिमानी और ईष्यालु होता है तो उसके व्यक्तित्व से दुर्गंध आती है. इन अवगुणों के समाप्त होते ही व्यक्तित्व से सुगंध उत्पन्न होने लगती है उनके पास बैठने का मन करता है. 

पुष्टिवर्धनम्: इसका अर्थ है आध्यात्मिक पोषण और विकास की ओर जाना. अधिक मौन अवस्था में रहते हुए आध्यात्मिक विकास अधिक रह सकता है. संसार में ईर्ष्या, घृणा, अहंकार आदि के कीचड़ में रहते हुए कमल की तरह खिलना होगा. आध्यात्मिक विकास के बिना कमल नहीं बना जा सकता है. पॉजिटिव चीजों पर फोकस करने पर ही पुष्टिवर्धनम् हो पाएंगे.

उर्वारुकमिवबंधनान्: संसार में जुड़े रहते हुए भी भीतर से अपने को इस बंधन से छुड़ाना ही उर्वारुकमिवबंधनान् है. जिस प्रकार लौकी पकने के बाद लता से जुड़ी हुई तो दिखती है लेकिन वास्तव में वह लता को त्याग चुकी होती है. भगवान शिव से प्रार्थना की जा रही है कि हे प्रभु, मुझे संसार में रहते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता प्रदान करें. 

मृर्त्योर्मुक्षीय मामृतात्: आध्यात्मिक परिपक्वता आने के बाद मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है. हे प्रभु आपके अमृत्व से कभी हम वंचित न हों, जब यह भाव मजबूत हो जाएगा तब मृत्यु के भय से स्वाभाविक रूप से मुक्ति मिल जाएगी. भय वहीं तक रहता है जहां तक आपको लगता है कि आप कुछ कर सकते हैं लेकिन जो चीज आपकी पकड़ से बाहर है उसको लेकर कैसी चिंता. 

सावन माह में ही नहीं, सदैव के लिए इस महामंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करें. जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रख लें और जाप करने के बाद उस जल को पूरे घर में छिड़क दें. ऐसा करने से घर के अंदर की निगेटिव एनर्जी और  हीन शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं रहेगा.

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