Delhi Riots Case: दिल्ली दंगो के आरोपी ताहिर हुसैन को अभी सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है. जस्टिस पंकज मित्तल ने दिल्ली पुलिस की इस दलील से सहमति जताई कि चुनाव सिर्फ 10-15 दिन प्रचार के ज़रिए नहीं जीता जा सकता. उम्मीदवार को सालों तक काम करना होता है.
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Delhi Riots Case: दिल्ली दंगो के आरोपी ताहिर हुसैन को अभी सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है. AIMIM पार्टी की मुस्तफाबाद सीट से उम्मीदवार ताहिर हुसैन ने चुनाव प्रचार के लिए कोर्ट से अंतरिम ज़मानत की मांग की थी. हालांकि, मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच- जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने अलग अलग राय दी. जस्टिस पंकज मित्तल जहां ताहिर को ज़मानत देने के पक्ष में नहीं थे. वहीं, जस्टिस अमानुल्लाह की राय थी कि कुछ शर्तों के साथ ज़मानत दी जा सकती है. बेंच ने रजिस्ट्री से कहा है कि वो चीफ जस्टिस के सामने मामला रखें ताकि वो तीन जजों की नई बेंच का गठन कर सके. अब नई बेंच तय करेगी कि क्या ताहिर हुसैन को अंतरिम ज़मानत दी जा सकती है या नहीं.
जस्टिस पंकज मित्तल की राय
जस्टिस पंकज मित्तल ने अपने आदेश में कहा कि चुनाव प्रचार करना कोई संवैधानिक या मूल अधिकार नहीं है. ऐसे में यह कोर्ट का विशेषाधिकार बनता है कि वो चुनाव प्रचार के लिए ज़मानत दे या नहीं. जस्टिस मित्तल ने कहा कि अगर चुनाव प्रचार के लिए ज़मानत मिलने लगी तो फिर इस आधार पर कोर्ट में अर्जियों की बाढ़ आ जाएगी. देश में साल भर चुनाव होते ही रहते हैं. ऐसे में, हरेक आदमी चुनाव प्रकिया में हिस्सा लेने का हवाला देते हुए ज़मानत मांगने लगेगा. अभी जेल में रहते हुए वोट डालने का अधिकार नहीं है. लेकिन इसी आधार पर आगे चलकर वोट डालने के लिए भी लोग ज़मानत की मांग करने लगेंगे.
जस्टिस मित्तल ने कहा कि अगर ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए ज़मानत मिलती है तो उसे इसके मद्देनजर उन्हें घर घर जाना होगा. उन जगहों पर मीटिंग करनी होंगी, जहाँ गवाह रहते हैं. ऐसे में उसकी गवाहों से मुलाक़ात करने या उन्हें प्रभावित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि यह आईबी अधिकारी की हत्या का गम्भीर मामला है. आरोप है कि ताहिर के घर की छत का इस्तेमाल दंगे के केंद्र के रूप में किया गया. इन सबके मद्देनजर मेरी राय में वो ज़मानत का हकदार नहीं है.
जस्टिस अमानुल्लाह की राय
वहं, जस्टिस अमानुल्लाह ने अपने आदेश में कहा कि वो जस्टिस पंकज मित्तल की राय से सहमत नहीं है. सिर्फ आरोप की गम्भीरता ही ज़मानत के केस का आधार नहीं है. करीब 5 सालों से ताहिर हुसैन जेल में बंद है. ज़्यादातर केस में उसे ज़मानत मिल चुकी है. ऐसे में मेरी राय में कुछ शर्तों के साथ ताहिर हुसैन को 4 फरवरी तक ज़मानत दी जा सकती है. इस दरम्यान शर्त ये रहेगी कि वो दिल्ली दंगो के बारे में कोई बयान नहीं देगा.
दिल्ली पुलिस ने विरोध किया
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश ASG एसवी राजू ने अंतरिम ज़मानत की मांग का विरोध किया. राजू ने दलील दी कि ताहिर हुसैन दंगों के वक्त आम आदमी पार्टी का पार्षद था. पर उसे पार्टी ने टिकट नहीं दिया.अगर इस तर्ज पर ज़मानत मिलने लगी तो हर रेपिस्ट ,हत्यारा ज़मानत मांगने लगेगा.
राजू ने दलील दी कि ताहिर हुसैन कोई आम अपराधी नहीं है. दिल्ली दंगों का वो मुख्य साजिशकर्ता है. उसका घर दंगो का केंद्र था. वहां से दंगाइयों को निर्देश दिये जा रहे थे. बड़ी सँख्या ने हथियार, पत्थर,पेट्रोल बम उसके घर से बरामद हुए.
ASG राजू ने दलील दी कि ताहिर की तुलना अरविंद केजरीवाल के साथ नहीं कर सकते. केजरीवाल पार्टी के संयोजक है. हर केस में तथ्य अलग होते हैं. किसी एक को चुनाव प्रचार के लिए मिली राहत के आधार पर दूसरा इस राहत का अधिकारी नहीं हो जाता.
सुनवाई के दौरान भी दोनों जजों के अलग अलग रुख
सुनवाई के दौरान भी जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अमानुल्लाह का रुख अलग अलग नज़र आया. जस्टिस मित्तल का मानना था कि UAPA और PMLA के केस में ताहिर की जमानत अर्जी निचली अदालत में पेंडिंग है. अगर इस केस में अंतरिम जमानत मिल जाती है तो भी वो जेल से बाहर नहीं आ पाएगा. ऐसे में वो पहले दोनों केस में जमानत हासिल करें, फिर इस केस में ज़मानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करें. लेकिन जस्टिस अमानुल्लाह का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट, ट्रायल कोर्ट का इतंज़ार क्यों करें. सुप्रीम कोर्ट अपने स्तर पर इसमें फैसला ले सकता है. हम ये क्यों मानकर चले कि ट्रायल कोर्ट से बाकी केस में उसे ज़मानत नहीं मिलेगी.
ASG राजू ने दलील दी कि चुनाव प्रचार कोई संवैधानिक या मूल अधिकार नहीं है. सिर्फ चुनाव प्रचार का हवाला देकर कोई ज़मानत का अधिकारी नहीं हो सकता. जब पार्टी ने उसे टिकट दिया और उसने चुनाव लड़ना स्वीकार किया तब पार्टी और उसे दोनों को बखूबी पता था कि ये संभव है कि वो चुनाव प्रचार न कर पाए. फिर भी उसने चुनाव लड़ने का फैसला लिया. वैसे भी पार्टी सभी उम्मीदवारों का प्रचार करती है. लेकिन, जस्टिस अमानुल्लाह ने इस दलील पर सवाल उठाया. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि लोकतंत्र में लोग सिर्फ पार्टी ही नहीं, उम्मीदवार के नाम पर भी वोट देते हैं. उन्हें पार्टी के बजाए व्यक्ति को भी चुनने का अधिकार है. लोग पार्टी बदलते रहते हैं... यह बात सही है कि लोग जेल में रहकर चुनाव जीतते रहे हैं, पर हम इस संभावना पर विचार कर रहे हैं कि क्या वो चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर आ सकता है या नहीं .
जस्टिस मित्तल ने दिल्ली पुलिस की इस दलील पर जातई सहमति
जस्टिस पंकज मित्तल ने दिल्ली पुलिस की इस दलील से सहमति जताई कि चुनाव सिर्फ 10-15 दिन प्रचार के ज़रिए नहीं जीता जा सकता. उम्मीदवार को सालों तक काम करना होता है. वहीं, जस्टिस अमानुल्लाह ने टिप्पणी कि यहाँ सवाल प्रचार के लिए सबको मौका देने का भी है. अगर प्रचार के लिए ज़मानत नहीं मिल रही है तो फिर नामांकन के लिए मिली छूट का कोई मतलब नहीं रह जाता.
ट्रायल की धीमी प्रगति पर सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने ट्रायल की धीमी प्रगति पर सवाल उठाया. उन्होंने एएसजी से पूछा कि अगर ये केस इतना ही अहम है तो पांच साल में ट्रायल क्यों नहीं पूरा हुआ? इतने सालो सिर्फ 4-5 चश्मदीद के बयान क्यों दर्ज किए गए! आप किसी को यूं ही जेल में अनिश्चित काल तक बंद नहीं रख सकते. आर्टिकल 21 इसकी इजाजत नहीं देता. पिछले 5 सालों में वो एक दिन भी जेल से बाहर नहीं निकला है. हम केस में जो तथ्य है, उनको लेकर अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते.