भगवान श्री राम और शिव जी में अद्भुत प्रेम है. दोनों एक दूसरे को अपना इष्ट मानकर आराधना करते हैं. लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए पुल की आवश्यकता हुई तो प्रभु श्री राम ने समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित कर विधि विधान से उनकी पूजा की.
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Lord Ram and Lord Shiva: भगवान श्री राम और शिव जी में अद्भुत प्रेम है. दोनों एक दूसरे को अपना इष्ट मानकर आराधना करते हैं. लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए पुल की आवश्यकता हुई तो प्रभु श्री राम ने समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित कर विधि विधान से उनकी पूजा की. वहीं, शिव जी ने महाराजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले राम को देखने के लिए अपने को नहीं रोक पाए और पहुंच गए अयोध्या. दोनों के बीच प्रेम की एक कहानी बहुत ही प्रचलित है.
भगवान शिव जपते थे प्रभु राम का नाम
सती के शरीर त्यागने के बाद शिव जी के मन में वैराग्य पैदा हो गया. वे श्री रघुनाथ जी का नाम जपते हुए लोगों को उनकी कथा सुनाने लगे. यहां तक कि वे ऋषि मुनियों के बीच पहुंच कर भी अपने प्रभु श्री राम के गुणों का बखान करते लेकिन सती के वियोग को भुला नहीं पाते थे.
रामचरित मानस का प्रसंग
श्री रामचरित मानस में तुलसी बाबा लिखते हैं कि एक बार शिव जी के सामने प्रभु श्री राम प्रकट हुए और कई तरह से उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि संसार में आप जैसा दूसरा कोई व्रती नहीं जो अपनी पत्नी के वियोग में इतना कठिन व्रत कर सके. इसके साथ ही उन्होंने पर्वत राज हिमाचल की बेटी पार्वती के गुणों का बखान किया. अपने प्रभु के मुख से यह सब सुन कर शिव जी ने प्रसन्नता व्यक्त की तो वे आगे बढ़े और अपने प्रति स्नेह की दुहाई देते हुए हाथ जोड़ प्रार्थना की कि आप पार्वती जी से विवाह कर लीजिए.
शिव जी ने किया प्रभु राम की आज्ञा का पालन
आप देखिए यहां पर भगवान शंकर ने कहा यह उचित नहीं है किंतु आप मेरे प्रभु हैं और आपका सुझाव ही मेरे लिए आदेश है. उन्होंने कहा माता-पिता गुरु और स्वामी की बात में शुभ अशुभ का विचार नहीं किया जाता, इसलिए हे नाथ, आपकी आज्ञा का पालन तो करूंगा ही. शिव जी की सहमति मिलते ही प्रभु श्री राम भी प्रसन्न हुए और अंतर्ध्यान हो गए.