Kark Sankranti 2022: कर्क संक्रांति कब? इन दिनों में प्रबल हो जाती हैं नकारात्मक शक्तियां, जानें कारण और उपाय
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Kark Sankranti 2022: कर्क संक्रांति कब? इन दिनों में प्रबल हो जाती हैं नकारात्मक शक्तियां, जानें कारण और उपाय

Kark Sankranti 2022 Date: ज्योतिष अनुसार जब भी सूर्य देव किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है और जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसी राशि के नाम से उस संक्रांति को जानते हैं. जैसे अब कर्क राशि में प्रवेश करेंगे, तो उसे कर्क संक्रांति के नाम से जाना जाएगा. 

 

फाइल फोटो

Kark Sankranti 2022 Upay: ज्योतिष अनुसार सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है. 16 जुलाई को सूर्य  देव कर्क राशि में प्रवेश कर जाएंगे, इसलिए उसे कर्क संक्रांति के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में दो संक्रांति का विशेष महत्व है. एक मकर संक्रांति और दूसरी कर्क संक्रांति. कर्क संक्रांति में सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन हो जाते हैं. ऐसे में रातें लंबी और दिन छोटे होने लगते हैं. 

ये एक स्वभाविक खगोलीय घटना है, जो कि हर 6 महीने में होती है. बता दें कि इन दोनों ही संक्रांतियों में मौसम परिवर्तन होता है. मकर संक्रांति से दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी. वहीं, कर्क संक्रांति से दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी. कर्क संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बतया गया है. इस दिन कुछ उपाय आदि करके पितरों का आशीर्वाद पाया जा सकता है. बता दें कि इस बार कर्क संक्रांति 16 जुलाई शनिवार के दिन पड़ रही है. 

कर्क संक्रांति का प्रभाव 

माना जाता है कि कर्क संक्रांति के समय मानसून का आगमन होता है. सूर्य देव के उत्तरायण से दक्षिणायन होने पर मौसम में बदलाव आता है. इसे देवताओं की रात्रि भी कहा जाता है. इस दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों की मनाही होती है. इतना ही नहीं, इस समय नकारात्मक शक्तियां प्रबल हो जाती है. इसलिए कर्क संक्रांति के दौरान विशे रूप से पूजा-पाठ किया जाता है. 

कर्क संक्रांति के दिन करें ये कार्य

बता दें कि कर्क संक्रांति से पहले देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है. इस दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों की मनाही होती है. माना जाता है कि इस दौरान देव सो जाते हैं, इसलिए इस  समय में नाकारत्मक शक्तियां प्रबल हो जाती हैं. इसलिए इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए पिंडदान किया जाता है. पितरों की शांति के लिए पूजा-पाठ करवाया जाता है. ताकि पितर तृप्त होकर वंशजों को आशीर्वाद दें. साथ ही, शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर कर सकें. चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है. 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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