Chhath Puja 2022: प्रकृति की उपासना का महापर्व है छठ पूजा, जानें इसका पौराणिक महत्व
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Chhath Puja 2022: प्रकृति की उपासना का महापर्व है छठ पूजा, जानें इसका पौराणिक महत्व

Chhath Puja: सूर्य उपासना की परंपरा ऋग्वैदिक काल से लेकर विष्णु पुराण, भागवत पुराण, इत्यादि से होते हुए मध्यकाल तक आती है. बाद में सूर्य की उपासना के रूप में छठ पर्व की प्रतिष्ठा हो गई.

Chhath Puja 2022:  प्रकृति की उपासना का महापर्व है छठ पूजा, जानें इसका पौराणिक महत्व

Importance Of Chhath Puja: छप पर्व प्रकृति की उपासना और संतुलन का का त्योहार है.  धर्मग्रंथों में सूर्य की शक्तियां उनकी पत्नियां मानी जाती हैं,  ऊषा व प्रत्यूषा. प्रातः काल सूर्य की पहली किरण ऊषा व सायंकाल सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है. इस तरह से दोनों के बीच संतुलन स्थापित किया जाता है. सूर्य उपासना की परंपरा ऋग्वैदिक काल से लेकर विष्णु पुराण, भागवत पुराण, इत्यादि से होते हुए मध्यकाल तक आती है. बाद में सूर्य की उपासना के रूप में छठ पर्व की प्रतिष्ठा हो गई.

उपनिषद् में इसका उल्लेख है. देवताओं में सूर्य को अग्रणी स्थल पर रखा गया है. ग्रह नक्षत्रों में भी सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है. उत्तर वैदिक काल में यह उपासनामानवीय रूप ग्रहण करने लगी, बहुत बाद में सूर्य की मूर्तियां भी बनने लगीं. माना जाता है कि पौराणिक काल तक सूर्य की उपासना समाज जीवन में प्रचलित हो गई थी. आगे चलकर सूर्य के मंदिर भी बनने लगे जहां विधिवत उपासना प्रारंभ हो गई. उपासना के लिए अनुष्ठान प्रारंभ हुए, जिसके लिए विशेषज्ञ बुलाए गए. 

सूर्य मंदिरों के स्थान पर आयोजित होते हैं मेले
देश में कुछ महत्वपूर्ण सूर्य मंदिरों कोणार्क, लोलार्क, देवलार्क आदि के नाम आते हैं. इन सभी मंदिरों में भव्य मेलों का आयोजन होता है जिनमें लाखों लोग शामिल होते हैं. दरसल, चकाचौंध करना किसी भी उपासना का उद्देश्य नहीं होता है. लोगों का विश्वास तो मिट्टी के दीयों, बांस से बने हुए सूप, गन्ने के रस, गुड़, चावल-गेहूं से बने प्रसाद, मीठी लिट्टी और प्राकृतिक रूप से पैदा होने फलों आदि में है. अंतर्मन से गाए जाने वाले गीतों में छठ है, इस पर्व पर जो गीत गाए जाते हैं उनमें प्रकृति की उपासना ही होती है. षष्ठी पर्व को लोकमन ने ही तो छठ मइया बना दिया है.

साफ सफाई और पवित्रता
साफ सफाई और पवित्रता को इस पर्व का विशेष आधार माना जाता है. यह स्वास्थ्य, मानसिक व शारीरिक दोनों ही दृष्टि से बहुत आवश्यक है. यह पर्व हमें पवित्र तो करता ही है,  हमें पारिवारिक और सामाजिक एकत्रीकरण का भी संदेश देता है और उन अपनों से मिलाने का कार्य करता जिनसे लंबे समय से मिलना नहीं हो पाता है. इसीलिए यह लोक परम्परा भी बन गई कि वर्ष में एक बार होने वाले इस पर्व को पूरा परिवार मिल कर मनाता है. यह पर्व हमें संतुलन व पर्यावरण के प्रति जागरूकता प्रदान करने के साथ ही रास्तों का प्रबंधन, जल प्रबंधन और ऊर्जा का प्रबंधन भी सिखाता है.

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