आदित्य ठाकरे का क्यों उमड़ा बिहार प्रेम, जानिए नीतीश-तेजस्वी से मुलाकात के मायने
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आदित्य ठाकरे का क्यों उमड़ा बिहार प्रेम, जानिए नीतीश-तेजस्वी से मुलाकात के मायने

जेडीयू मुख्य रूप से बिहार की राजनीति करती है, जबकि शिवसेना का वजूद महाराष्ट्र में है, लेकिन दोनों की राजनीति में एक बड़ी समानता है.

(फाइल फोटो)

पटना: महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे के बिहार दौरे ने विपक्षी एकता को नयी दिशा दी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद जिस तरह का बयान आदित्य ठाकरे ने दिया. उसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुहिम के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कहते रहे हैं कि जल्द ही देश में विपक्षी एकता एक स्वरूप में देखने को मिलेगा. वही बात आदित्य ठाकरे भी कह रहे हैं.  

जदयू और शिवसेना में समानता
जेडीयू मुख्य रूप से बिहार की राजनीति करती है, जबकि शिवसेना का वजूद महाराष्ट्र में है, लेकिन दोनों की राजनीति में एक बड़ी समानता है. दोनों दल लंबे समय तक भाजपा के साथ एनडीए में रहे हैं. दोनों ने राज्यों में एनडीए की सरकारें चलायी हैं. पिछले कुछ सालों में दोनों की राहें एनडीए यानी भाजपा से अलग हुई हैं. अब दोनों ही महागठबंधन का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है. 

बिहार में चल रही सरकार
बिहार में महागठबंधन की सरकार चल रही है, जो अगस्त महीने में सत्ता में आयी है, जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) कुछ महीने पहले तक महा विकास अघाड़ी की सरकार का नेतृत्व कर रही थी, लेकिन पार्टी नेता एकनाथ सिंदे के अलग होने से सरकार चली गयी. पर जदयू और शिवसेना (उद्धव) अब भी कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं. 

कांग्रेस के साथ एकता
देश में टुकड़ों में बंटे विपक्ष में कई दल ऐसे हैं, जो कांग्रेस के साथ देश स्तर पर विपक्षी एकता के विरोधी हैं, लेकिन जदयू और शिवसेना (उद्धव) इस मुद्दे पर साथ हैं. दोनों के नेता मानते हैं कि विपक्षी एकता कांग्रेस के बिना संभव नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसको लेकर बयान दे चुके हैं. साथ ही उन्होंने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से दिल्ली जाकर मुलाकात भी की थी. 

उठते रहे हैं सवाल
बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल दल देश स्तर पर विपक्षी एकता की बात करते रहे हैं, लेकिन भाजपा इसको लेकर सवाल उठाती रही है. उसका कहना है कि ये सिर्फ कहने के लिए अच्छा है, लेकिन अलग-अलग प्रदेशों में कांग्रेस के खिलाफ सरकार चला रहे दल कभी एक साथ नहीं आयेंगे. साथ ही कांग्रेस कभी भी राहुल के गांधी के स्थान पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को नेता के रूप में स्वीकार नहीं करेगी. 

ठंडी पड़ी थी मुहिम
बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की दिशा में कोशिश शुरू की थी. दिल्ली दौरा करके कांग्रेस नेताओं के साथ वाम दलों के नेताओं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव समेत लगभग एक दर्जन नेताओं से मुलाकात की थी. इसके बाद कहा गया था कि जल्द ही उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के दौरे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जायेंगे. वहां के मुख्यमंत्रियों से मिलेंगे, लेकिन महीनों के बाद भी ये दौरा अब तक नहीं हो पाया है. 

भाजपा बोली- हवा निकली
भाजपा नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर हैं. उनका कहना है कि विपक्षी एकता की करनेवाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुहिम की हवा निकल गयी है. डेढ़ महीने से ज्यादा का समय बीत गया है, लेकिन वो पश्चिम बंगाल और उड़ीसा का दौरा नहीं कर पाये हैं. दरअसल, नीतीश कुमार को ज्यादा भाव नहीं मिला है. इसलिए उन्होंने मुहिम विपक्षी एकता की मुहिम को छोड़ दिया है.  

जदयू में उत्साह नहीं
आदित्य ठाकरे के बिहार दौरे को लेकर राजद के नेता उत्साहित दिख रहे हैं, लेकिन उनकी सहयोगी जदयू की ओर से कोई उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है. पार्टी नेता इस पर ज्यादा मुखर होकर बयान भी नहीं दे रहे हैं. इसको लेकर भी बिहार के राजनीतिक हल्कों में चर्चा हो रही है. आदित्य ठाकरे ने जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से की, ततब भी जदयू का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था. 

क्यों किया दौरा?
आदित्य ठाकरे का बिहार दौरा सिर्फ विपक्षी एकता की मुहिम नहीं है. इसके और भी मायने हैं, जिसे उनके बयान से समझा जा सकता है. दरअसल, शिवसेना को महाराष्ट्र में बाहरी विरोधी समझा जाता है. बिहार के लोगों पर हुए हमले को लेकर शिवसेना की आलोचना हुई थी. आदित्य ठाकरे अपने दल पर लगे इस धब्बे को खत्म करना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने कहा कि मैं बिहार के लोगों को सम्मान करता हूं. 

भाजपा के साथ हैं विरोधी
आदित्य ठाकरे ने केवल बिहार और यहां के लोगों के हमदर्दी ही नहीं जतायी, बल्कि ये भी कह दिया कि बिहार विरोधी लोग भाजपा के साथ हैं. दरअसल, बिहार में बहारी लोगों में बिहार के लोगों की संख्या अच्छी खासी है, जिनको साधना भी आदित्य ठाकरे की बिहार मुहिम का हिस्सा है, क्योंकि अगर महाराष्ट्र में रह रहे बिहारी शिवसेना का साथ देते हैं, तो शिवसेना को राज्य में होनेवाले विभिन्न चुनावों में आसानी से सफलता मिल सकती है.

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