1965 और 1971 दोनों लड़ाइयों में भारत ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे. उन दोनों लड़ाइयों में पीटी-76 टैंक की खास भूमिका थी. अब आप सोच रहे होंगे कि पीटी-76 का इस्तेमाल अब सेना नहीं करती है तो इसका जिक्र क्यों हो रहा है. दरअसल 1971 की लड़ाई में इन टैंकों की खास भूमिका पर एक फिल्म रिलीज हुई है जिसका नाम पिप्पा है. आप सोच रहे होंगे कि इसके टैंक और नाम पिप्पा. दरअसल पंजाब से ताल्लुक रखने वाले फौजियों ने जब इनकी करामात को देखा तो वो प्यार से पिप्पा कहने लगे.
आप सोच रहे होंगे कि जब पीटी-76 का इस्तेमाल सेना नहीं कर रही है तो चर्चा क्यों हो रही है. दरअसल 1971 भारत पाकिस्तान लड़ाई में इन टैंकों ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए. भारतीय फौज ने जिस कौशल के साथ इनका इस्तेमाल किया था उस पर फिल्म पिप्पा बनाई गई है.
पीटी-76 एंफीबियन हैं. इसका अर्थ यह है कि इनका इस्तेमाल जमीन और पानी दोनों जगहों पर आसानी से किया जा सकता है. 1950 के दशक में सोवियत संघ ने इस टैंक पर काम करना शुरू किया था. अलग अलग देशों की डिमांड थी कि ना सिर्फ टैंक हल्के हों बल्कि नाले और नदी को पार करने में भी सक्षम हों.
1917 की गरीबपुर की लड़ाई में इन टैंकों ने कमाल कर दिया था. पाकिस्तान के एम 24 चैफे लाइट टैंक पर यह भारी पड़े. पाकिस्तानी फौज की हार में इनकी अहम भूमिका थी. ये टैंक जितना आसानी से जमीनी इलाकों में टारगेट के बेहद करीब जा उन्हें तबाह कर देते थे. वैसे ही छोटे नाले हों या बड़ी नदियां उन्हें पार कर लेते थे.
पीटी-76 को सोवियत संघ से 1950 के दशक में डिजाइन किया गया था. समय समय पर जरूरतों के हिसाब से बदलाव किया गया. जिस तरह से ये टैंक भारत के लिए 1965 और 1976 की लड़ाई में कारगर हुए थे. वैसे ही वियतनाम वार की लड़ाई में अमेरिका के लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी.
1965 और 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना ने पीटी-76 का इस्तेमाल किया था और पाकिस्तान के छक्के उड़ा दिए थे. प्यार से इन टैंक को पिप्पा कहा जाता था. आखिर इन्हें पिप्पा क्यों कहा गया. जैसे घी के खाली टिन आसानी से पानी पर तैरते हैं. ठीक वैसे ही ये टैंक भी नदियों पर तैर जाते थे.
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