Prayagraj Mahakumbh 2025: प्रयागराज में भव्य महाकुंभ का मेला लगा है जिसकी चर्चा देश विदेश में है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कुंभ का आदि शंकराचार्य से गहरा संबंध है. आइए जानें कि सनातन धर्म में कितने शंकराचार्य हैं और इनके ऊपर क्या जिम्मेदारियां होती हैं.
क्या आप जानते हैं कि इन सबको साथ लाने का श्रेय भगवान आदि शंकराचार्य को जाता हैं. आइए, आज के इस कड़ी में जानते हैं कि सनातन धर्म में कितने मठ होते हैं और कितने शंकराचार्य होते हैं.
प्राचीन काल से ही सनातन परम्परा चली आ रही है. जब बात भगवान आदि शंकराचार्य की आती है तो पता चलता है कि हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में अगर किसी ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई तो वो आदि शंकराचार्य ही रहे.
इसी का एक उदाहरण है कि देश के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए गए हैं. इन सभी चारों मठों को ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित किया गया. चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में इन मठों का संचालन किया जाता है. इस तरह सनातन धर्म के कुल चार मठ और चार शंकराचार्य हैं.
ये मठ हैं गोवर्धन, जगन्नाथपुरी जो ओडिशा में है जहां के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं. शारदामठ जो गुजरात में है जहां सदानंद सरस्वती शंकराचार्य हैं. ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम जो उत्तराखंड में है जहां पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य हैं. चौथा दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वर है जो तमिलनाडु में स्थित है, यहां के जगतगुरु भारती तीर्थ शंकराचार्य हैं..
आपको ये जानकर हैरानी होती कि तब से लेकर अब तक देश दुनिया में तमाम बदलाव आए लेकिन आज भी इन मठों को चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में चलाने की परंपरा चली आ रही है. इन मठों के अलावा आदि शंकराचार्य द्वारा बारह ज्योतिर्लिंग भी स्थापित किए गए.
ध्यान दें कि इन मठों में गुरु शिष्य परम्परा का बहुत गंभीरता पूर्वक निर्वहन किया जाता है. पूरे भारत से संन्यासी इन मठों से संबद्ध होते हैं और इन्हें यहीं पर संन्यास की दीक्षा दी जाती है.
जब सभी संन्यासी यहां से अपनी अपनी दीक्षा ले लेते हैं तो इनके नाम के साथ दीक्षित विशेषण जोड़ा जाता है. यह परंपरा बहुत पुरानी है. सन्यासी के साथ लगा विशेषण यह बताता है कि उस संन्यासी ने किस मठ से दीक्षा ली है या वेद की किस परम्परा का वहन करता है.
इन मठों से जुड़ी एक और परंपरा है जिसे आज भी निभाया जा रहा है. दरअसल, इन चारों मठों में जो योग्यतम शिष्य होते हैं उनको मठाधीश बनाया जाता है. इस प्रचलित परंपरा को आदि शंकराचार्य ने ही शुरू किया था.
जो भी इन मठों का मठाधीश होता यानी जो योग्यतम होता है वह शंकराचार्य कहलाता है. सनातन धर्म में चार प्रमुख धर्म गुरु इन्हें ही माना जाता है. वहीं इससे आगे बढ़कर शंकराचार्य अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को अपने पद का उत्तराधिकारी घोषित कर देते हैं.
शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए कुछ विशेष योग्यता का होना जरूरी है. शिष्य ऐसा ब्राह्म्ण हो जो स्वभाव से त्यागी हो. उसका ब्रह्मचारी और डंडी संन्यासी होना जरूरी है. संस्कृत, चतुर्वेद का ज्ञाता हो और वेदांत और पुराणों में निपुण हो. राजनीतिक नही होना चहिए. (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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