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142 स्टेशन, 87 शहर... एक ट्रेन की टिकट में 3 देश घूम लीजिए, 7 दिन में पूरा होगा सफर, जानिए कहां चलती है दुनिया की सबसे लंबी दूरी की ट्रेन

World's Longest Train Journey: भारत की सबसे लंबी ट्रेन के बारे में तो आप जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी भी ट्रेन हैं, जो तीन देशों का सफर करती है, यानी एक बार ट्रेन में बैठे तो तीन देश घूम लीजिए. लेकिन इस सफर में 7 दिन का लंबा वक्त लगता है. 

सबसे लंबी रेल यात्रा

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सबसे लंबी रेल यात्रा

World's Longest Train Journey: ट्रेन का सफर आपने कभी न कभी जरूर किया होगा. किसी के लिए यह सफर बेहद खूबसूरत तो किसी से लिए उबाऊ और थकाऊ होता है. देश और दुनिया को जोड़ने वाली रेलवे का कोई सफर कुछ मिनटों में खत्म हो जाता है तो किसी को पूरा करने में कई दिन लग जताते हैं. भारत की सबसे लंबी दूरी की ट्रेन (Indias longest train Journey) डिब्रुगढ़-कन्‍याकुमारी विवेक एक्‍सप्रेस (Dibrugarh-Kanyakumari Vivek Express ) 75 घंटे से ज्‍यादा समय में अपना सफर तय करती है, लेकिन आज जिस रेल सफर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं उसे पूरा करने में 7 दिन से ज्यादा का वक्त लग जाता है. जरा सोचिए एक ही कोच, एक ही सीट पर आपको सात दिन बिताना हो तो क्या फीलिंग होगी. लेकिन आपको बता दें कि लोग इस ट्रेन में सफर करने के लिए बेताब रहते हैं.  

दुनिया की सबसे लंबी ट्रेन जर्नी

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 दुनिया की सबसे लंबी ट्रेन जर्नी

दुनिया की सबसे लंबी रेल (world’s longest train journey) यात्रा को पूरा होने में 7 दिन से अधिक का वक्त लग जाता है. एक बार जब यह ट्रेन अपना सफर शुरू करती है तो 7 दिन 20 घंटे 25 मिनट के बाद ही अपनी मंजिल पर जाकर रुकती है. रूस के मॉस्‍को शहर से नॉर्थ कोरिया के प्‍योंगयांग शहर के बीच चलने वाली इस ट्रेन को ट्रांस साइबेरियन ट्रेन कहा जाता है. अपने सफर के दौरान यह ट्रेन 142 स्टेशन, 87 शहरों से होते हुए गुजरती है. 

कहां से कहां तक जाती है यह ट्रेन

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 कहां से कहां तक जाती है यह ट्रेन

ट्रांस-साइबेरियन ट्रेन 10214 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जिसे पूरा करने में उसे सात दिन , 20 घंटे और 25 मिनट का वक्त लग जाता है. रूस के मॉस्को से उत्तरी कोरिया के शहर प्योंगयांग तक चलने वाली यह ट्रेन रास्ते में 16 नदियों, पहाड़ों, 87 शहरों, जंगलों, बर्फ के मैदानों से होकर गुजरती है. सफर के दौरान आपको खूबसूरत प्राकृतिक नजारों का भी भरपूर दीदार करने का मौका मिलेगा. 

कब हुई थी शुरुआत

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  कब हुई थी शुरुआत

ट्रांस-साइबेरियन रेलवे की शुरुआत 1916 में हुई थी. नॉर्थ कोरिया से रूस के मास्‍को आने वाले यात्रियों को ट्रेन पहले रूस के व्लादिवोस्तोक तक लेकर आती है. वहां से आने वाली ट्रेन व्लादिवोस्तोक से मास्‍को के लिए जाने वाली ट्रेन के पीछे जुड़ जाती है. यानी नार्थ कोरिया के प्‍योंगयांग से आने वाले यात्रियों को कहीं भी अपना कोच बदलने या ट्रेन बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है. साइबेरिया की आबादी बढ़ाने और उसके आर्थिक विकास के लिए इस ट्रेन की शुरुआत की गई थी. जिसका फायदा भी हुआ. 

तीन देशों का सफर

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 तीन देशों का सफर

इतना लंबा सफर तय करने वाली यह दुनिया की पहली ट्रेन हैं. ट्रांस साइबेरियन ट्रेन तीन देशों को जोड़ती हैं. रूस की राजधानी मास्को से लेकर व्लादिवोस्तोक तक जाने वाली इस ट्रेन की शाखाएं Ulan-Ude, जो कि मंगोलिया और बीजिंग को जोड़ने का काम करती है, वहां से गुजरती है. Ulan-Ude ट्रांस साइबेरियन ट्रेन का मेजर स्टॉप है, यहां से लोग मंगोलिया और बीजिंग के लिए ट्रेन ले सकते हैं.  

अलग-अलग टाइमजोन के बीच सफर

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 अलग-अलग टाइमजोन के बीच सफर

नार्थ कोरिया से महीने में दो बार यह ट्रेन चलती है. वहीं मास्‍को से चली ट्रेन प्‍योंगयांग तक नहीं जाती. असल में प्‍योंगयांग जाने वाले ट्रेन के डिब्‍बों को नॉर्थ कोरिया के तुमांनगेन स्‍टेशन तक ट्रेन लाती है. यहां से आगे ये डिब्‍बे अन्‍य ट्रेन के पीछे जोड़ दिए जाते हैं जो प्‍योंगयांग जाती है. 

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