Pakistan Politics: पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच फर्क करना मुश्किल है. ऐतिहासिक तौर पर सेना का नागरिक सत्ता पर दखल रहा है. इमरान खान की रुखसती के बाद जब शहबाज शरीफ सरकार में आए तो ऐसा माना गया कि पाकिस्तानी सेना की प्रमुख भूमिका थी लेकिन अब जानकारी आ रही है कि मौजूदा सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर नाराज हैं.
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Pak Army Interference: पाकिस्तान में सरकार किसी की रही हो लेकिन सेना की हनक कभी कम नहीं रही. बात चाहे जुल्फिकार अली भुट्टो की हो या बेनजीर भुट्टो की हो या नवाज शरीफ की हो या इमरान खान या शहबाज शरीफ की. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार के चुनने का हक भले ही आम जनता के पास हो सच तो ये है कि सेना ने अपने हिसाब से सरकारों को बनाने, बचाने और गिराने का काम किया है. यहां हम बात करेंगे पाकिस्तान के मौजूदा पीएम शहबाज शरीफ और सेना के बीच रिश्ते की हालांकि उन हालात को समझना भी जरूरी है जिसमें उनके हाथों में पाकिस्तान की हुकुमत आई.
इमरान, शहबाज और सेना
पीटीआई के मुखिया इमरान खान जब पाकिस्तान के पीएम बने तो विरोधी दल यानी पीपीपी और पीएमएल एन ने आवाज उठाई कि सेना की मदद से सत्ता की अपहरण हुआ है यानी कि इमरान खान तो कहने के लिए देश के मुखिया हैं, हकीकत में सरकार को तत्कालीन सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा चला रहे हैं. लेकिन दोनों के बीच तल्खी का असर यह हुआ की इमरान खान सत्ता से बेदखल हुए और पाकिस्तान की राजनीति में एक अलग तरह का प्रयोग दिखाई दिया जब पीपीपी और पीएमएल-एन ने मिलकर सरकार बनाई और शहबाज शरीफ को देश की कमान मिली.इस पूरी कवायद पर पीटीआई चीफ इमरान खान ने वही पुरानी बात दोहराई जो समय समय पर दूसरे नेता करते रहे हैं. मौजूदा पीएम शहबाज शरीफ का कार्यकाल 12 अगस्त को खत्म हो रहा है और यह कहा जा रहा है कि शहबाज शरीफ 9 अगस्त को इस्तीफा दे सकते हैं.इन सबके बीच हम समझने की कोशिश करेंगे कि क्या पाकिस्तान की सेना उनसे पीछा छुड़ाना चाहती है.
'इस्टैब्लिशमेंट का आदमी नहीं '
दरअसल हाल ही में शहबाज शरीफ ने सेना के संबंध में बड़ी बात कही थी. उन्होंने कहा कि वो इस्टैब्लिशमेंट के आदमी नहीं हैं, बता दें कि पाकिस्तान में सेना को इस्टैब्लिशमेंट कहा जाता है. सवाल यह है कि जिस शहबाज शरीफ को सेना का खास माना जाता है उन्होंने इस तरह का बयान क्यों दिया. सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि उन्होंने क्या कहा था. शहबाज शरीफ ने कहा था कि पहली बात तो ये कि जब भी उन्होंने सेना प्रमुख के साथ बैठक की उसमें उनका व्यक्तिगत लाभ नहीं था. अगर वो या उनका परिवार कोई व्यक्तिगत लाभ उठाया होता तो भाई नवाज शरीफ के साथ उन्हें क्यों जेल जाना पड़ा. लोग उन्हें पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ का खास मानते थे लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना उन्हें और उनके परिवार को करना पड़ा. अब सवाल यह है कि क्या सिर्फ यही बात मौजूदा सेना प्रमुख को रास नहीं आ रही है या वजह कुछ और है.
इमरान खान प्रकरण से भी नाराजगी
जानकार कहते हैं कि बात यह नहीं है. राजनीति में इतिहास की बातों को सिर्फ उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है. दरअसल इमरान खान और मौजूदा सेना प्रमुख मुनीर के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है. ये बात सच है कि इमरान खान को तोशाखाना मामले में सजा होने के साथ साथ राजनीति पर भी कम से कम 2028 तक ग्रहण लग चुका है. जिस तरह से पूरे प्रकरण को शहबाज शरीफ ने डील किया उसमें सेना की भद्द पिटी. मुनीर यह चाहते थे कि इमरान खान के खिलाफ कार्रवाई का सिर्फ सियासी संदेश दुनिया में जाए लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों में यह संदेश गया कि पर्दे के पीछे से सेना ही शहबाज शरीफ को गाइड कर रही थी. इसके साथ एक वजह यह भी है कि सेना को लगने लगा है कि पाकिस्तान की अवाम यह मानकर चलती है कि शहबाज पैराशूट के जरिए पीएम बने और उनके पीछे उनकी काबिलियत से कहीं अधिक सैन्य मदद थी. सेना इस तरह के टैग से खुद को आजाद करना चाहती है लिहाजा उनसे दूरी बनाई जा रही है.