दिल्ली में एक शख्स ने उबर की मनमानी पर सोशल मीडिया पर जमकर बवाल खड़ा कर दिया है. इस शख्स ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट शेयर की जिसमें उसने बताया कि कैसे उसने महज 1.8 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए 700 रुपये का किराया चुकाया.
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समय के साथ-साथ तकनीक ने जहां हमारे जीवन को आसान बनाया है, वहीं कुछ समस्याएं भी खड़ी कर दी हैं. ऐसी ही एक समस्या हाल ही में दिल्ली के एक व्यक्ति ने शेयर की है, जिसमें उसने 1.8 किलोमीटर के छोटे से सफर के लिए 700 रुपये के बिल का खुलासा किया. यह मामला तब चर्चा में आया जब एक प्रोडक्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल, सूर्या पांडे, ने अपने अनुभव को लिंक्डइन पर शेयर किया.
सूर्या पांडे ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि उबर की सर्ज प्राइसिंग देखकर लगता है जैसे वो 90 के दशक के शेयर बाजार में हैं. उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने उबर की सर्ज प्राइसिंग में पैसा लगाया होता तो आज वो हर्षद मेहता से भी ज्यादा अमीर होते. उन्होंने आगे लिखा कि उबर, रैपिडो और ओला जैसी कंपनियां पहले लोगों की सुविधा के लिए बनाई गई थीं, लेकिन अब ये कंपनियां मौके का फायदा उठा रही हैं. उन्होंने कहा कि थोड़ी सी बारिश होने पर ये कंपनियां किराए में तीन गुना तक बढ़ोतरी कर देती हैं.
सूर्या की अपील
सूर्या पांडे ने अपने पोस्ट में लोगों से अपील की है कि वो ऐसी कंपनियों का बहिष्कार करें और जरूरत पड़ने पर लिफ्ट लेने के लिए लोगों से मदद मांगें. उनकी इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने जमकर कमेंट किए हैं. कई लोगों ने इस शख्स का सपोर्ट किया है और बताया है कि उनके साथ भी ऐसा ही हुआ है. कुछ लोगों ने तो कहा कि वो अब उबर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करेंगे.
यूजर्स की राय
एक यूजर ने कमेंट किया कि 1.8 किलोमीटर के लिए 700 रुपये, ये तो लूट है, न कि किराया. दूसरे यूजर ने लिखा कि मैंने तो कई बार ऑटो का किराया उबर से कम दिया है. एक अन्य यूजर ने लिखा कि बारिश के दिनों में लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, उबर जैसी कंपनियों से अच्छा है कि लोग लिफ्ट ले लें. इस तरह से सोशल मीडिया पर उबर की जमकर आलोचना हो रही है.
देशभर में हो रही बहस
यह बहस केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं रही बल्कि पूरे देश में फैल गई, जहां लोग रोजाना इस प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं. इस मुद्दे ने राइड-हेलिंग ऐप्स की सर्ज प्राइसिंग के खिलाफ गहरी नाराजगी को उजागर किया और इस पर सही कंट्रोल की मांग उठाई. इस प्रकार, यह घटना न केवल उबर की प्राइसिंग रणनीति पर सवाल उठाती है, बल्कि उन सभी सेवाओं के लिए भी एक चेतावनी है जो अपने मूल उद्देश्य से भटक गई हैं.