Kargil War 1999 Heroes: कारगिल के समर में भारत के 7 जांबाज 200 पाकिस्तानियों पर पड़े भारी, आखिरी गोली तक लड़े थे बनवारी
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Kargil War 1999 Heroes: कारगिल के समर में भारत के 7 जांबाज 200 पाकिस्तानियों पर पड़े भारी, आखिरी गोली तक लड़े थे बनवारी

Kargil Vijay Diwas 2024: जब कारगिल की लड़ाई शुरू हुई, तब वे 15 मई 1999 को बजरंग पोस्ट पर अपने कैप्टन सौरभ कालिया और अन्य 4 साथी जवानों के साथ पेट्रोलिंग करने के लिए गए थे. वहां पाकिस्तानी सेना छिपकर बैठी थी. दोनों के बीच जमकर गोलीबारी हुई थी.

 

Kargil War 1999 Heroes: कारगिल के समर में भारत के 7 जांबाज 200 पाकिस्तानियों पर पड़े भारी, आखिरी गोली तक लड़े थे बनवारी

Kargil Vijay Diwas Heroes: 26 जुलाई 1999 को भारत-पाक के बीच कारगिल पहाड़ियों में तीन महीने तक चले भयंकर युद्व में भारतीय सैनिकों ने विजय हासिल की और कारगिल की चोटी पर तिरंगा फहरा कर अपने अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय दिया. कारगिल युद्ध भारतीय रणबांकुरे सैनिकों के अदम्‍य साहस और बहादुरी का प्रतीक है इसलिए इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया. इस युद्ध में भारतीय वीर सैनिकों ने पाकिस्‍तान की सेना को मुंहतोड़ जवाब देकर दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए. तिरंगा फहराकर युद्ध में विजय हासिल की. लेकिन इस फतेह के लिए हमारे बहादुर सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए प्राणों की कुर्बानी देकर सदा के लिए अजर अमर हो गए.

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शहीदों की शहादत को करता है सलाम

कारगिल युद्ध में भारत के 527 रणबांकुरों ने शहादत देकर देश की रक्षा करते हुए पाकिस्‍तानी सेना पर जीत दर्ज की. इस शहादत में शेखावाटी के वीर सपूतों ने भी पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को मार गिराया. आज 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस पर जी मीडिया परिवार वीर सपूतों की शहादत को नमन करता है. आज हम आपको सीकर जिले के 7 जाबांज सैनिकों के बारे में बाते हैं, जो कारगिल युद्ध में शहादत देकर सदा के लिए अमर हो गए.

जांबाजों ने कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय देकर देश की रक्षा के लिए शहादत दी.

1. सिगडोला छोटा गांव के बनवारी लाल बगड़िया
2. रामपुरा गांव के विनोद कुमार नागा
3. पलसाना गांव के सीताराम कुमावत 
4. हरिपुरा के श्योदान राम
5. रहनावा गांव के दयाचंद जाखड़
6. सिहोट गांव के गणपत ढाका
7. रोरू बड़ी गांव के जगमाल सिंह

सिगडोला छोटा गांव के बनवारी लाल बगड़िया

सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ तहसील के सिंगडोला के शहीद बनवारी लाल बगड़िया साल 1996 में सेना की जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. 1999 में उनकी पोस्टिंग काकसर में थी. जब कारगिल की लड़ाई शुरू हुई, तब वे 15 मई 1999 को बजरंग पोस्ट पर अपने कैप्टन सौरभ कालिया और अन्य 4 साथी जवानों के साथ पेट्रोलिंग करने के लिए गए थे. वहां पाकिस्तानी सेना छिपकर बैठी थी. दोनों के बीच जमकर गोलीबारी हुई थी. इधर 6 जवान तो दूसरी तरफ 200 पाकिस्तानी सैनिक थे. दोनों ओर से जबरदस्त गोलीबारी शुरू हो गई. आखिरी गोली खत्म होने तक शहीद बनवारी और जाट रेजिमेंट के बाकी जांबाज उनका सामना करते रहे.

4 दिन तक बर्बरतापूर्वक व्यवहार

जब हथियार खत्म हुए तो दुश्मनों ने उन्हें चारों ओर से घेरकर अपनी गिरफ्त में ले लिया. उनके साथ 24 दिन तक बर्बरतापूर्वक व्यवहार किया गया. उनके हाथ-पैर की अंगुलियां काट डाली. गर्म सलाखें शरीर में गोद दी. आंख-कान भेदने के बाद उनका शव क्षत-विक्षत हालत में छोड़ दिया गया. इस मंजर को याद कर हमारा आज भी खून खौल उठता है. पाकिस्तानी सेना ने इस कदर अत्याचार किया था कि मानो कोई जल्लाद हो. वो रोज हमारे जवानों के शव भारत की तरफ छोड़ कर चले जाते.

भारतीय सेना को काफी दिनों बाद मिला था शव

बनवारी लाल बगड़िया का शव भी भारतीय सेना को काफी दिनों बाद मिला था. उनके शरीर के जगह-जगह टुकड़े किए हुए थे. परिवार आज भी वह दर्द भरा मंजर याद करता है तो सहम उठता है. शहादत के 8 महीने पहले दादी की मौत पर गांव आए थे. 15 मार्च 1999 को उन्होंने एक खत भेजा था, जो उनका आखिरी खत और यादगार बन गया. लिखा था- छुट्टी मंजूर होते ही मई में घर लौटूंगा. लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

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