राजस्थानः मंत्रियों-अफसरों में टकराव, यह बताता है कि राजस्थान में सब ठीक नहीं है
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राजस्थानः मंत्रियों-अफसरों में टकराव, यह बताता है कि राजस्थान में सब ठीक नहीं है

सरकार ने अभी तक तकरीबन 14 महीने का कार्यकाल पूरा किया है. इस 14 महीने कई बड़े टकराव सामने आ चुके हैं. खुद डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी सरकार पर आरोप लगा चुके हैं कि अधिकारी सुनते नहीं हैं और अपने ही विधायकों की सुनवाई नहीं हो रही है. इस कार्यकाल में विधानसभा में सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने ही ब्यूरोक्रेसी पर कई बार निशाना साधा. कई बार अफसरों को बदला जा चुका है.

राजस्थानः मंत्रियों-अफसरों में टकराव, यह बताता है कि राजस्थान में सब ठीक नहीं है

जयपुरः मध्य प्रदेश के सियासी संकट के बीच कांग्रेस गहलोत सरकार को बचाने में जुटी है. हालांकि वहां अभी मध्य प्रदेश जैसे हालात नहीं हैं, लेकिन जो मौजूदा स्थिति है उन्हें ठीक भी नहीं कहा जा सकता है. हालात यह हैं कि राजस्थान में ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ नेताओं और मंत्रियों ने लंबे समय से मोर्चा खोल रखा है.

  1. मीणा ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अफसर अपने कमरे के बाहर खड़ा रखते हैं
  2. प्रदेश के पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह का राज्य पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक के साथ करीब छह माह तक विवाद चला था

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के मंत्री और कांग्रेस के विधायक अपनी सरकार में सुनवाई नहीं होने से नाराज हैं. मंत्री और विधायक खुले तौर पर ब्यूरोक्रेसी पर निशाना साध रहे हैं. 

कई बार बदली जा चुकी है नौकरशाही
सरकार ने अभी तक तकरीबन 14 महीने का कार्यकाल पूरा किया है. इस 14 महीने कई बड़े टकराव सामने आ चुके हैं. खुद डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी सरकार पर आरोप लगा चुके हैं कि अधिकारी सुनते नहीं हैं और अपने ही विधायकों की सुनवाई नहीं हो रही है. इस कार्यकाल में विधानसभा में सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने ही ब्यूरोक्रेसी पर कई बार निशाना साधा. 

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छह मंत्री और पांच विधायक इसके खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोले रहे हैं. ऐसे में गहलोत सरकार को कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है.  हालांकि गहलोत सरकार कई बार अफसरों के तबादले कर चुकी है, लेकिन स्थिति जस की तस है.

डिप्टी सीएम पायलट के भी रहे हैं तीखे तेवर
उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने कई बार अपनी ही सरकार को घेरा है. नागौर और बाड़मेर में दलित युवकों के साथ मारपीट के मामले से लेकर भ्रष्टाचार के मामले तक उन्होंने सीएम गहलोत पर तीखे प्रहार किए हैं. इसके साथ ही कार्यकर्ताओं की सत्ता में भागीदारी न होने के मामले को भी उठा चुके हैं.

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गहलोत सरकार के मंत्री अपने प्रभार वाले विभागों में भी खुद की मर्जी से काम नहीं होने से नाराज है तो सुनवाई नहीं होने से नाखुश हैं. वहीं, पार्टी कार्यकर्ता सरकार बनने के करीब 14 माह बाद भी सत्ता में भागिदारी नहीं मिलने से परेशान हैं.

पर्यटन और खाद्य मंत्री ने खोला मोर्चा
अधिकारियों से खींचतान की जहां तक बात है तो विश्वेंद्र सिंह का नाम सबसे ऊपर आता है. प्रदेश के पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह का राज्य पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक के साथ करीब छह माह तक विवाद चला था. विश्वेंद्र सिंह ने सार्वजनिक रूप से कई बार महाप्रबंधक के खिलाफ बयान दिए.

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एक टेंडर को लेकर हुए इस विवाद में विश्वेंद्र सिंह ने अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. इसी तरह खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा ने सार्वजनिक रूप से कई बार कहा कि अधिकारी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं कर रहे हैं. 

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सोनिया गांधी से भी मिले थे रमेश मीणा 
मीणा ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अफसर अपने कमरे के बाहर खड़ा रखते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर उन्होंने शिकायत की थी कि प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी हावी है. प्रदेश के खान मंत्री प्रमोद जैन भाया अपने विभाग में बार-बार प्रमुख सचिव बदले जाने पर नाराजगी जता चुके हैं.

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उनका अधिकारियों के साथ सामंजस्य नहीं हो पा रहा है. पिछले दिनों उन्होंने कहा कि मैंने महसूस किया है कि प्रदेश में सरकार बदल जाने के बावजूद ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली नहीं बदली है.

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विधायकों को भी है शिकायत
परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना और चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा भी कई बार अफसरों के खिलाफ बयान दे चुके हैं. वरिष्ठ विधायक भरत सिंह और राजेंद्र सिंह विधुडी ने खान, पुलिस व आबकारी विभाग में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. भरत सिंह ने एक ही नहीं कई बार मीडिया में और फिर विधानसभा में अपनी ही सरकार के अफसरों को घेरा.

राजेंद्र सिंह विधुड़ी ने विधानसभा में चित्तोडगढ़ पुलिस पर डोडा-चूरा एवं बजरी माफियाओं से मिलीभगत होने का आरोप लगाया. विधायक अमीन खान, हेमाराम चौधरी और दीपेंद्र सिंह शेखावत ने भी कई बार ब्यूरोक्रेसी पर निशाना साधा. हेमाराम चौधरी ने तो विधानसभा में यहां तक कह दिया कि यदि मेरी सिफारिश से जनता के काम नहीं होते तो मेरा विधायक रहने का कोई मतलब नहीं, मैं राजनीति छोड़ देता हूं. 

 

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