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2 June ki Roti Interesting Facts: आज 2 जून है. आज के दिन के लिए एक मशहूर कहावत है कि वो लोग बड़े किस्मत वाले होते हैं , जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब होती है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर इस मुहावरे का मतलब क्या है. 2 जून की रोटी इतनी जरूरी क्यों होती है? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इस मुहावरे का 2 जून तारीख से कोई संबंध नहीं है. हिंदी साहित्य में लेखकों ने इस मुहावरे का जमकर इस्तेमाल किया है. आइए इसका असली अर्थ आपको बताते हैं.
इस मुहावरे को लेकर कई लोगों के अलग-अलग मत हैं. हिंदी के मशहूर कवि शंभू शिखर ने Zee News को बताया कि इस मुहावरे का 2 जून तारीख से कोई मतलब नहीं है. इसका आम बोलचाल में अर्थ दो वक्त के खाने से है. ये अरब देशों से भारत में आया हुआ मुहावरा है. दरअसल, भारत में दो वक्त खाने का कोई सिस्टम नहीं था. इसके अलावा जून भी भारतीय कलैंडर का शब्द नहीं है. उन्होंने कहा कि रोटी खाने की कोई तारीख नहीं होती.
इसके अलावा अलीगढ़ के एक कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार शर्मा का कहना है कि इस मुहावरे का साहित्य में इस्तेमाल होने लगा. इसलिए ये काफी फेमस हो गया. हालांकि इसका जून महीने से कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने बताया कि अवधी भाषा में जून का मतलब समय से है. इसलिए यहां दो जून का अर्थ दो टाइम के भोजन से है. यानी इस मुहावरे का अर्थ सुबह शाम की के खाने से है.
आपको बता दें कि ये मुहावरे कब शुरू हुआ इसका कोई ठोस सबूत नहीं है. लेकिन हिंदी के मशहूर लेखक मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद ने अपनी रचनाओं में इसका इस्तेमाल किया. इसके बाद से ही ये काफी प्रचलित हो गया. मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'नमक का दरोगा' में इस लोकोक्ति का जिक्र है.
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