World Water Day: जो पानी आप पी रहे हैं वो कितना साफ? जानें चौंकाने वाले आंकड़े
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World Water Day: जो पानी आप पी रहे हैं वो कितना साफ? जानें चौंकाने वाले आंकड़े

World Water Day Report: संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 26% लोगों को साफ पानी नसीब नहीं है. दुनिया के 46% लोगों को सैनिटेशन के लिए पानी नहीं मिल पाता.

World Water Day: जो पानी आप पी रहे हैं वो कितना साफ? जानें चौंकाने वाले आंकड़े

World Water Day: पानी एक ऐसी चीज है, जो हमें कुदरत से मिलती है. हम पैसे देकर पानी खरीद तो सकते हैं, लेकिन पानी का निर्माण नहीं कर सकते. और यही बात हम सबको समझने की जरुरत है, क्योंकि जिस तेजी से दुनिया पानी की खपत कर रही है और धरती सूख रही है, जल्द ही हम प्यासे होंगे और हममें से बहुत लोगों को दो बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, धरती तेजी से सूख रही है और अरबों लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. विश्व जल दिवस पर हम आपको पानी से जुड़े कुछ चौंकाने वाले आंकड़े बता रहे हैं.

पीने के पानी को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े

संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 26% लोगों को साफ पानी नसीब नहीं है. दुनिया के 46% लोगों को सैनिटेशन के लिए पानी नहीं मिल पाता. 200 करोड़ लोग साल में एक महीने पानी की किल्लत का सामना करते हैं. दुनिया में अभी जितने लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं, जल्द ही वो आंकड़ा भी आसमान छूने वाला है. यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 40 सालों में विश्व स्तर पर पानी का उपयोग लगभग 1% की दर से हर साल बढ़ रहा है. दुनिया की आबादी का औसतन 10% हिस्सा उच्च या पानी की गंभीर कमी वाले देशो मे रहता है. 2016 में 93 करोड़ लोगों ने पानी की कमी का सामना किया, लेकिन 2050 में 240 करोड़ लोग ऐसे होंगे, जिन्हें पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.

एक दिन के लिए पीने को पानी ना मिले तो क्या होगा?

आज की स्थिति में अरबों लोगों को दूषित पानी पानी पड़ रहा है. क्या आपने कभी सोचा है कि अगर एक दिन के लिए भी पीने का पानी ना मिले तो क्या होगा. आप शायद अभी ये सोच भी ना पाएं, लेकिन ये आने वाले कल की सच्चाई हो सकती है. दो लाइन के एक किस्से में आपको पानी की अहमियत समझाने की कोशिश करेंगे.

पानी क्या है?– हमारे दादाजी ने जिसे नदी में देखा, पिताजी ने कुंए में, हमने जिसे नल में देखा और बच्चों ने बोतल में. लेकिन, अब उनके बच्चे कहां देखेंगे?

पृथ्वी पर पानी लगातार घटता जा रहा है- ये सच्चाई हम सबको मालूम है, लेकिन अभी हममें से कोई भी इसे लेकर गंभीर नहीं है, क्योंकि हम अपने स्तर पर पानी को बचाने के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं. ठीक उसी तरह, जिस तरह हम ये जानते हैं कि जो पानी हम रोजाना पी रहे हैं, उसके 100 प्रतिशत शुद्ध होने की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन हम इसकी परवाह नहीं करते. हम यही सोचकर संतुष्ट हैं कि पीने के लिए पानी मिल तो रहा है.

साफ पानी का पैमाना क्या है?

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्डस (Bureau of Indian Standards) के मुताबिक अगर पानी में टीडीएस यानी Total Dissolved Solids की मात्रा प्रति लीटर में 500 मिलीग्राम से कम है तो ये पानी पीने योग्य है, लेकिन ये मात्रा 250 से कम नहीं होनी चाहिए. वहीं, WHO यानी विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक प्रति लीटर पानी में टीडीएस यानी Total dissolved solids की मात्रा 300 से कम होनी चाहिए. एक लीटर पानी में में 300 से 600 मिलीग्राम (TDS) टीडीएस को भी पीने योग्य मान लिया जाता है. 600 से 900 टीडीएस (TDS) का पानी ठीक-ठाक यानी काम-चलाऊ माना जाता है. अगर एक लीटर पानी में (TDS) टीडीएस की मात्रा 900 से ज्यादा है तो वो पानी पीने योग्य नहीं माना जाता. अगर पानी में टीडीएस 100 से कम हो तो उसमें चीजें तेजी से घुल सकती हैं. प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में कम टीडीएस हो तो उसमें प्लास्टिक के कण घुलने का खतरा भी रहता है.

वेदों में शुद्ध पानी की परिभाषा

साफ और शुद्ध पानी क्या होता है? इसे वेदों में भी परिभाषित किया गया है. ऋग्वेद के हिसाब से पानी शीतलम यानी ठंडा, सुशीनी यानी साफ और सिवम यानी उसमें जरूरी खनिज लवण होने चाहिए. और पानी इश्टम यानी पारदर्शी होना चाहिए. पानी विमलम लहु शद्गुनम यानी सीमित मात्रा के एसिड बेस के साथ होना चाहिए. 

कैसे पता चलेगा कि जो पानी पी रहे हैं वो कितना शुद्ध है

दुनिया का हाल तो हमने आपको बताया, लेकिन अपने देश का हाल और भी खराब है. भारत पीने के पानी के मामले में दोहरी मार से जूझ रहा है. एक तरफ देश में जल संकट बढ़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ पानी को साफ करने की प्रक्रिया में पानी बर्बाद हो रहा है. जुलाई 2020 में NGT ने आरओ की वजह से हो रही पानी की बर्बादी को रोकने के उद्देश्य से कड़े फैसले लिए. नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल यानी एनजीटी (National Green Tribunal) ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिए थे कि जिन जगहों पर पानी में (TDS) टीडीएस की मात्रा 500 एमजी प्रति लीटर से कम हैं, वहां (RO) आरओ के इस्तेमाल पर बैन लगाया जाए और लोगों को डीमिनरल्जाइज्ड पानी के नुकसान के प्रति जागरुक भी किया जाए.

NGT ने ये भी कहा कि आरओ से बर्बाद होने वाले 60 से 75 फीसदी पानी को रिकवर किया जाए और उसे धुलाई-सफाई जैसे कामों में इस्तेमाल किया जाए. आरओ से मिलने वाली पानी की क्वालिटी पर रिसर्च करने के लिए भी मंत्रालय को निर्देश देने को कहा गया. आरओ निर्माताओं से कहा गया कि वो अपने प्रोडक्ट पर ये लिखें कि आरओ का इस्तेमाल तभी करें जब पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से ऊपर हो.

अदालत के इस फैसले से ये स्प्ष्ट है कि आरओ से पानी की बर्बादी भी हो रही है और उसके बाद जो साफ पानी आपको मिल रहा है उसमें से मिनरल्स निकल जाने का खतरा भी बना हुआ है. यानी वो पानी आपको साफ तो लग रहा है, लेकिन ये पानी आपके लिए सेहतमंद ही हो, ये जरुरी नहीं है.

पानी कैसे हो रहा प्रदूषित?

आसान भाषा में पानी स्वादरहित,गंधरहित और रंगरहित है तो वो सही साफ और शुद्ध पानी है, लेकिन मीठा करने के चक्कर में कई आरओ में टीडीएस का स्तर कम सेट किया जाता है. पानी में टीडीएस का लेवल अगर 100 से कम है तो इसमें चीजें तेजी से घुल सकती हैं. अगर प्लास्टिक की बोतल में पानी पी रहे हैं तो ऐसे पानी में प्लास्टिक के कण भी घुल सकते हैं. ये कई बीमारियों की वजह बन सकता है. इसलिए आप अपने आरओ के टीडीएस को 350 पर सेट करें. अगर नल का पानी साफ यानी ठीक ठाक आता है तो स्टील के बर्तन में पानी को उबालकर और उसे ठंडा करके भी पीने योग्य बना सकते हैं. आप घड़े का प्रयोग भी कर सकते हैं. घड़ा प्राकृतिक तरीके से पानी को ठंडा भी रखता है और उसे फिल्टर करने का काम भी करता है.

किसे कितना पानी पीना चाहिए?

ये जरूरत मौसम और आपके काम के हिसाब से तय होती है, लेकिन मोटे तौर पर दिन भर में 2 लीटर पानी पीने को पर्याप्त माना जाता है. कम पानी पीने से किडनी स्टोन्स, कब्ज और डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है. हालांकि, ज्यादा पानी पीने से भी लोगों को कई बीमारियां हो सकती हैं. इसलिए अब डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि अपनी प्यास के मुताबिक पानी पिएं. यही सबसे सही पैमाना है. खाना खाने के बाद पानी ना पीने का फॉर्मूला आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित है. एलौपेथी के डॉक्टर इस नियम को लेकर एकमत नहीं हैं. उनके मुताबिक, इंसान स्वयं अपनी जरूरत पहचान कर ये नियम बना सकता है.

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