Ebrahim Raisi Death: क्या ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का निधन भारत के लिए बड़ा नुकसान है?
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Ebrahim Raisi Death: क्या ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का निधन भारत के लिए बड़ा नुकसान है?

Iran President Died: भारत के दोस्त ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का एक दुर्घटना में निधन हो गया है. भारत में भी कल से सोशल मीडिया पर ईरानी राष्ट्रपति की चर्चा हो रही थी. आज सुबह जब निधन की पुष्टि हुई तो लोग अपनी प्रतिक्रियाएं शेयर करने लगे. 

Ebrahim Raisi Death: क्या ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का निधन भारत के लिए बड़ा नुकसान है?

Iran-India Relations: 16-17 घंटे से तलाशी अभियान जारी था लेकिन आज सुबह 9 बजते-बजते साफ हो गया कि ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत हो चुकी है. कल वह पूर्वी अजरबैजान प्रांत में एक बांध का उद्घाटन करके लौट रहे थे. पहाड़ी क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण हेलीकॉप्टर क्रैश (Iran President Ebrahim Raisi Helicopter Crash) हो गया. धुंध होने के कारण मलबा ढूंढने में भी काफी दिक्कत हुई. तुर्की और रूस समेत कई देशों ने मदद भेजी थी. हालांकि कोई फायदा नहीं हुआ. शिया बहुल देश ईरान के लोगों के लिए आज मनहूस खबर आई. भारत सरकार और यहां के लोग भी लगातार राष्ट्रपति रईसी से संबंधित खबरों का अपडेट लेते रहे. 

पीएम नरेंद्र मोदी ने रात में ही ट्वीट कर ईरान के राष्ट्रपति के सलामत होने की कामना की थी. साथ ही ईरान की जनता के साथ इस मुश्किल समय में एकजुटता दिखाई थी. आज पीएम मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि ईरान के राष्ट्रपति की मौत भारत के लिए कितना बड़ा नुकसान है? 

ज्यादा असर नहीं, सर्वेसर्वा हैं सुप्रीम लीडर

बचाव दल ने बताया है कि ईरान के राष्ट्रपति को लेकर उड़ा हेलीकॉप्टर पूरी तरह से जल चुका था. उनके साथ ईरान के विदेश मंत्री समेत कई टॉप अधिकारी मारे गए हैं. ईरान के सुप्रीम नेता अयातोल्लाह खामेनई ने तुरंत आपात बैठक की है. खास बात यह है कि 63 साल के रईसी को खामेनई के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था. हां, ईरान में सुप्रीम लीडर ही सर्वेसर्वा होता है. ऐसे में राष्ट्रपति की अचानक मौत से ईरान की विदेश या घरेलू नीतियों पर बेहद कम असर पड़ेगा. ज्यादातर ताकत सुप्रीम लीडर के पास ही होती है. वही पॉलिसी पर अंतिम मुहर लगाते हैं. 

मोदी के साथ केमिस्ट्री

इब्राहिम रईसी जून 2021 में हसन रूहानी की जगह ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे. पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उनकी अच्छी केमिस्ट्री देखी जा रही थी. पिछले साल दोनों नेता मिले थे. नवंबर में दोनों नेताओं ने फोन पर बातचीत भी की थी. इस दौरान गाजा के हालात के साथ-साथ चाबहार पोर्ट के विकास पर भी चर्चा हुई थी. 

एक हफ्ते पहले चाबहार डील

हेलीकॉप्टर क्रैश में ईरानी राष्ट्रपति के निधन की खबर ऐसे समय में आई है जब कुछ दिन पहले ही भारत और ईरान ने एक बड़ी डील फाइनल की. 10 साल के लिए भारत को चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती पोर्ट संचालन के लिए मिल गया है. यह ईरान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह है. मोदी सरकार के मंत्री सर्बानंद सोनोवाल इस समझौते के लिए ईरान गए थे. इस डील की दुनियाभर में काफी चर्चा हुई थी. पाकिस्तान को यह पच नहीं रहा था लेकिन भारत और ईरान की दोस्ती बढ़ती गई. 

देखिए: ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का आखिरी वीडियो आया सामने

अब सवाल यह है कि आगे क्या दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ेगा? यह समझने के लिए जान लेते हैं कि रईसी के समय भारत-ईरान के रिश्ते कैसे चलते रहे. 

1. कश्मीर पर पाक प्रॉपगेंडा से दूर रहा ईरान

जी हां, कुछ हफ्ते पहले जब ईरान के राष्ट्रपति पाकिस्तान गए थे तो पाक पीएम शहबाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दा उठाने की कोशिश की. उन्होंने अपनी तरफ से ईरान के इस पर सपोर्ट की बात भी कर दी लेकिन ईरानी राष्ट्रपति कश्मीर का जिक्र करने से बचे और गाजा की चर्चा की. 

2. भारत का करीबी पार्टनर

हाल के कुछ वर्षों में ईरान और भारत एक दूसरे के काफी करीब आए हैं. पाकिस्तान जहां ग्वादर में चीन के साथ मिलकर नजदीकियां बढ़ाता रहा वहीं, भारत ने उससे दो कदम आगे चलकर चाबहार में अपने पांव जमा लिए. ईरान खुशी-खुशी भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और आगे तक एंट्री के लिए रास्ता दे रहा है. यह गौर करने वाली बात है कि पाकिस्तान को दरकिनार कर ईरान अफगानिस्तान तक पहुंचने का समुद्री रास्ता दे रहा है. भारत वहां काफी निवेश करेगा. 

3. समुद्री ताकत

भारत के लिए ईरान फारस की खाड़ी में एक अहम ताकत है. ऐसे में दोनों देशों के बीच सैन्य और सुरक्षा संबंध मजबूत होते गए हैं. ईरान के दो बड़े दुश्मन अमेरिका और इजरायल हैं लेकिन भारत ने कभी खेमेबाजी वाला खेल नहीं खेला. वह दुनियाभर के देशों से द्विपक्षीय रिश्तों पर जोर देता रहा है. यही वजह है कि भारत के अमेरिका, इजरायल और ईरान से भी अच्छे रिश्ते हैं.

...तो पड़ोसी होता ईरान

अगर भारत का बंटवारा न हुआ होता तो ईरान हमारा पड़ोसी देश होता. शिया इस्लामिक देश ईरान के साथ भारत के संबंध कभी खराब नहीं रहे. हां, प्रतिबंधों के कारण दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव जरूर आए. 2021 में राष्ट्रपति रईसी के शपथ ग्रहण में विदेश मंत्री जयशंकर तेहरान गए थे. एनएसए अजीत डोभाल भी ईरान बराबर जाते रहे हैं. पिछले तीन वर्षों में भारत और ईरान के संबंध तेजी से आगे बढ़ रहे थे. ऐसे में राष्ट्रपति रईसी का निधन द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से भारत के लिए बड़ा नुकसान है. 

पढ़ें: कहां गए थे ईरान के राष्ट्रपति? क्रैश के समय हेलीकॉप्टर में कौन-कौन था सवार

यह ईरान और भारत की दोस्ती ही थी कि जब अप्रैल में इजरायली जहाज को जब्त किया गया तो कुछ देर बाद ही ईरान ने जहाज पर सवार भारतीयों को रिहा करना शुरू कर दिया था. ईरान के राजदूत और नेता अक्सर कहते रहे हैं कि भारत के साथ उनके रिश्ते ऐतिहासिक हैं, सैकड़ों साल से चले आ रहे हैं. हमारे बीच काफी समानताएं हैं. हमारे आर्थिक संबंध और बढ़ सकते हैं. 

गहरा सदमा पहुंचा... पीएम मोदी का ट्वीट 

ईरानी राष्ट्रपति के निधन पर पीएम मोदी के शब्द दोनों देशों के रिश्तों को व्यक्त करते हैं. उन्होंने लिखा, 'ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रईसी के निधन से गहरा दुख और सदमा पहुंचा. भारत और ईरान के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. उनके परिवार और ईरान के लोगों के प्रति मेरी संवेदनाएं. दुख की घड़ी में भारत ईरान के साथ खड़ा है.' रईसी का निधन भारत के लिए एक दोस्त के रूप में बड़ी क्षति है. 

- दरअसल, मोदी और रईसी भारत और ईरान के लोगों के बीच पीपल-टू-पीपल संपर्क बढ़ाना चाहते थे.

- चाबहार पोर्ट को कनेक्टिविटी हब के रूप में तैयार करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे थे. 

- दोनों नेता ब्रिक्स समूह के विस्तार को लेकर भी चर्चा कर चुके थे. 

- दोनों नेता भारत और ईरान के बीच द्विपक्षीय संबंध को नई ऊंचाई पर ले जाना चाह रहे थे.  

ईरानी कानून के अनुसार ऐसे समय में उपराष्ट्रपति को प्रभार सौंपा जाता है और दो महीने के भीतर नए राष्ट्रपति चुने जाते हैं. इतना तय है कि नए राष्ट्रपति कोई भी बनें, भारत और ईरान के रिश्तों को रईसी ने जो रफ्तार दी है उसे आगे और मजबूती मिलेगी.

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