Jageshwar Dham: जागेश्वर धाम के सौंदर्यीकरण के लिए हजारों देवदार के पेड़ों पर बिल्ला टांग कर चिन्हित किया गया था कि इन्हें काटकर रास्ता बनाया जाएगा. ईश्वरीय शक्ति कहिये.. या जनमानस की चेतना, यह मामला अभी यहीं ठहर गया है.
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Jageshwar Dham: विकास की धारा बहाइये... लेकिन हरियाली का गला मत रेतिये! एक समय था जब पहाड़ों पर जाने के लिए दस बार सोचना पड़ता था. आज कुछ ही घंटों में लोग पिकनिक मनाने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की ऊंची-ऊंची चोटियों पर पहुंच जाते हैं. ये सब लाखों हरे-भरे पेड़ों की बेरहमी से हत्या के बाद संभव हो सका है! पहाड़ों को काटकर सड़कों की जाल तो बिछा दी गई.. लेकिन सरकार और प्रशासन ने इससे होने वाले नुकसान पर जरा भी सुध नहीं ली. जोशीमठ की दरकती जमीन और हिमाचल में आए जल प्रलय के बाद सोचने की जरूरत थी. लेकिन सरकार ने तो पौराणिक पेड़ों की छाती पर फिर से मौत का बिल्ला टांग दिया. अब बारी थी जागेश्वर धाम की. जागेश्वर धाम के सौंदर्यीकरण के लिए हजारों देवदार के पेड़ों पर बिल्ला टांग कर चिन्हित किया गया था कि इन्हें काटकर रास्ता बनाया जाएगा. ईश्वरीय शक्ति कहिये.. या जनमानस की चेतना, यह मामला अभी यहीं ठहर गया है.
पेड़ों की गर्दन से दरांती हटा ली
यूं कह लीजिए कि सरकार ने पेड़ों की गर्दन से दरांती हटा ली है. उत्तराखंड में अल्मोड़ा है.. और वहां स्थित है जागेश्वर धाम. जागेश्वर धाम के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया था. इस प्लान में हजारों देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी थी. सरकार के इस कदम का पहाड़ों पर रहने वाले लोगों ने पुरजोर विरोध किया. ये जान लेना भी जरूरी है कि देवदार के इन पौराणिक पेड़ों की भी पूजा होती है. और लोगों ने सरकार से दो टूक कह दिया कि अगर पेड़ कटे तो यह उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ होगा.
आस्था की बात सीएम धामी के कान तक पहुंची तो..
आस्था की बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कान तक पहुंची तो वे सोचने पर मजबूर हो गए. उन्होंने जागेश्वर धाम के सौंदर्यीकरण के मास्टर प्लान पर ब्रेक लगा दिया. वक्त रहते सीएम धामी ने यह फैसला नहीं लिया होता तो जागेश्वर में मास्टर प्लान के तहत हो रहे सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 1000 देवदार के पेड़ों को काट दिया जाता. इसकी तैयारी भी शुरू हो गई थी. लोक निर्माण विभाग ने चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों पर बिल्ला टांग दिया था.
जागेश्वर धाम.. शिव आस्था का मुद्दा
सौंदर्यीकरण के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि सिर्फ इसलिए नहीं चढ़ी क्योंकि पहाड़ के लोग इन पेड़ों में भी भगवान को देखते हैं. दारूक वन में खड़े इन विशाल पेड़ों की लोग पूजा करते हैं. सरकार के फरमान पर लोग एकजुट हुए और मुद्दा बेहद गर्मा गया. पेड़ों को बचाने के लिए लोगों ने चिपको आंदोलन शुरू कर दिया. जागेश्वर धाम में लोग पेड़ों से चिपक गए.. उन्हें कटने नहीं दिया. जिसके बाद सरकार को विवश होकर कहना पड़ा कि देवदार के पेड़.. जागेश्वर धाम और शिव आस्था का मुद्दा है. जागेश्वर मास्टप्लान को अमली जामा पहनाने के लिए सरकार फिर से सर्वे कराएगी. इस सर्वे के बाद हो सकता है कि कुछ पेड़ ही काटे जाएं.
दारुक वन बाबा भोलेनाथ का घर
नहीं जानने वालों को ये भी जानना चाहिए कि जागेश्वर धाम देवदार के जंगलों के बीचों-बीच स्थित है. इन जंगलों को दारूक वन भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता है कि ये दारुक वन बाबा भोलेनाथ का घर है. इन जंगलों के देवदार के पेड़ों की शिव-पार्वती.. गणेश.. पांडव वृक्ष के रूप में पूजा की जाती है. अगर आप भी भगवान में विश्वास रखते हैं तो आपको भी पेड़ों का सम्मान करना चाहिए. पर्यावरण के लिए ना सही, आस्था के लिए ही.. पेड़ों के प्रति जागरूक हो जाइये.. क्योंकि साक्षात भगवान का दर्शन तो नहीं हो सकता लेकिन उनके होने का अहसास इन पेड़ों से जरूर मिलेगा. धार्मिक ग्रंथों में भी वृक्ष यानी पेड़ लगाना पुण्य और इसे काटना पाप माना गया है.