Navratri 2023: नवरात्र के छठे दिन पूजी जाती हैं मां कात्यायनी, पूजन से जागृत होता है आज्ञा चक्र
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Navratri 2023: नवरात्र के छठे दिन पूजी जाती हैं मां कात्यायनी, पूजन से जागृत होता है आज्ञा चक्र

Navratri 2023: आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी की नवरात्र में नौ रूपों की आराधना की जाती है. वह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. विन्ध्य और मां गंगा के तट पर विराजमान मां विंध्यवासिनी कात्यायनी का दिव्य रूप धारण कर मां भक्तों का कष्ट दूर करती हैं.

Navratri 2023: नवरात्र के छठे दिन पूजी जाती हैं मां कात्यायनी, पूजन से जागृत होता है आज्ञा चक्र

राजेश मिश्र/मीरजापुर: आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी की नवरात्र में नौ रूपों की आराधना की जाती है. आदिशक्ति का छठवें दिन सिंह पर सवार चार भुजा वाली माता 'कात्यायनी' के रूप में पूजन किया जाता है. मां कात्यायनी दिव्य और स्वर्ण के समान हैं. वह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. इनकी चार भुजाएं भक्तों को वरदान देती हैं. इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है. अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है. हर प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित करने वाली मां कात्यायनी सभी के लिए पूजनीय हैं. देवी कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं, इनकी पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है. मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं. 

आपको बता दें कि देवी कात्यायनी के पूजन से भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं. ऐसा करने से साधक इस लोक में रहते हुए, अलौकिक तेज से युक्त रहता है. माता कात्यायनी का पूजन दर्शन करने से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति के साथ ही भक्त, रोग, शोक, संताप से मुक्ति प्राप्त करता है. माता कात्यायनी की आराधना करने से मनचाहा पति और स्त्री की प्राप्ति भी होती है. विन्ध्य और मां गंगा के तट पर विराजमान मां विंध्यवासिनी कात्यायनी का दिव्य रूप धारण कर मां भक्तों का कष्ट दूर करती हैं.

दरअसल, अनादिकाल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल में विन्ध्य पर्वत और पतित पावनी मां गंगा के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान मां विंध्यवासिनी का छठवें दिन "कात्यायनी" के रूप में पूजन अर्चन किया जाता है. महिषासुर के वध के लिए उत्पन्न हुई देवी की सर्व प्रथम पूजा महर्षि कात्यायन ने किया. इससे देवी का नाम कात्यायनी पड़ा. विन्ध्यक्षेत्र में मां को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है. माता हर प्राणी को सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं. माता कात्यायनी सभी के लिए आराध्य हैं. वह सभी भक्तों के मनोकामना पूरा करती हैं. इतना ही नहीं इस गृहस्थ जीवन में जिन वस्तुओं की जरूरत प्राणी को होती है, माता सभी कुछ प्रदान करती हैं.

आपको बता दें कि माता कात्यायनी बड़ी दयालू हैं. भक्त जिस कामना से पूजन कर उनके मंत्रो का जप करते हैं, वह उन्हें देती हैं. वहीं, धाम में आने पर ममता बरसाने वाली माता का दर्शन पाकर भक्त विभोर हो जाते हैं. उनकी ममतामयी छवि को निहार वह इस कदर निहाल होते हैं की उन्हें सब कुछ मिल गया है. देवी कात्यायनी से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

ये है देवी कात्यायनी से जुड़ी पौराणिक कथा
एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि हुए. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र भी है. विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे. देवी कात्यायनी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं. तब महर्षि कात्यायन ने देवी का पालन पोषण भी किया था. जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बढ़ गया, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज और प्रताप के अंश से देवी को उत्पन्न किया था. इसके बाद ऋषि कात्यायन ने भगवती की कठिन तपस्या की. इस कारण से माता देवी कात्यायनी कहलाई. माता कात्यायनी के पूजन से आज्ञा चक्र जागृत होता है.

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