Govardhan Puja 2023: गोवर्धन पूजा में क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग, जानें इसके पीछे की वजह
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Govardhan Puja 2023: गोवर्धन पूजा में क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग, जानें इसके पीछे की वजह

हिंदू धर्म में गोवर्धन की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की पूजा की जाती है.

Annakoot 56 Bhog

Annakoot 56 Bhog: हिंदू धर्म में गोवर्धन की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की पूजा की जाती है. श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में यह पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है. 56 भोग और गोवर्धन पूजा का संबंध भगवान श्री कृष्ण की एक अद्भुत लीला से जुड़ा हुआ है. आइये जानते हैं इसके पीछे की मान्यता...

कब है गोवर्धन पूजा? 
इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से हो रही है. तिथि का समापन 14 नवंबर, दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर होगा. ऐसे में 13 और 14 नवंबर को गोवर्धन पूजा मनाई जाएगी. हालांकि, उदया तिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा 14 नवंबर मंगलवार को मनाई जाएगी.
 
क्या है पौराणिक कथा?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज के लोग इंद्र देव की पूजा के लिए एक बड़ा आयोजन कर रहे थे. श्रीकृष्ण ने नंदबाबा से पूछा कि यह आयोजन क्यों किया जा रहा है? तब नंदबाबा ने कहा कि इस पूजा में देव राज इंद्र प्रसन्न होंगे और अच्छी बारिश देंगे. इसपर कान्हा ने कहा कि वर्षा तो इंद्र का काम है, उनकी पूजा क्यों करें. पूजा करनी हो तो गोवर्धन पर्वत की करें क्योंकि इससे फल और सब्जियां प्राप्त होती हैं और पशुओं को चारा मिलता है. कान्हा की यह बात गांव वालों को पसंद आई और सभी ने इंद्रदेव की पूजा करने के बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी. इस बात से इंद्रदेव नाराज हो गए. उन्होंने ब्रज में 7 दिन और 7 रात मूसलाधार बारिश की. इस दौरान हर तरफ पानी नजर आ रहा था. ऐसा नजारा देखकर ब्रजवासी घबरा गए और कान्हा के पास गए. उनसे कहा कि अब तुम ही हमारी रक्षा कर सकते हो. हमने तुम्हारे कहने पर इंद्र की पूजा नहीं की. इस पर कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत चलने को कहा. इसके बाद सब लोग गोवर्धन पर्वत पहुंचे. जहां भयभीत ब्रजवासियों को देख श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया और गोकुल वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचा लिया.

इस दौरान भगवान कृष्ण ने 7 दिनों तक बिना कुछ खाए गोवर्धन पर्वत उठाए रखा. जब इंद्र के पास जल समाप्त हो गया तो उन्होंने सोचा कि अब तक तो ब्रज खत्म हो गया होगा. यह देखने के लिए जब इंद्र ब्रजभूमि पर आए तो देखा यहां तो धूल मिट्टी उड़ रही है. वहीं, कृष्ण 21 किमी. में फैले विशाल गिरिराज पर्वत को उंगली पर उठाये हुए थे. इस नजारे को देख इंद्र श्री कृष्ण के पैरों में गिर गए. उन्हें मनाने के लिए कृष्ण को ऐरावत हाथी व अन्य कई वस्तुएं भेंट की, लेकिन कृष्ण नहीं माने. फिर इंद्र ने नारद जी की सलाह पर सुरभि गाय भेंट की और क्षमा मांगी. 

इसके बाद आठवें दिन जब श्रीकृष्ण घर पहुंचे तब देखा कि मां यशोदा ने उनके लिए 56 भोग बनाया है. दरअसल, यशोदा मां दिन में आठ बार (आठ पहर ) कान्हा को भोजन कराती थीं. उन्होंने प्रत्येक दिन के आठ पहर के अनुसार, सात दिनों को मिलाकर (7 दिन X 8 पहर = 56) छप्पन भोग तैयार किए. इसमें वही व्यंजन थे, जो कन्हैया को पसंद थे. तब से श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई. 

क्या है छप्पन भोग?
कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा ये छह रस या स्वाद बताए गए हैं. इन छह रसों के मेल से अधिकतम 56 प्रकार के खाने योग्य व्यंजन बनाए जा सकते हैं. ऐसे में 56 भोग का मतलब है वह सभी प्रकार का भोजन, जो हम भगवान को अर्पित कर सकते हैं. 56 भोग में शामिल व्यंजनों में ये चीजें शामिल हैं- 
 
1) भक्त (भात) 
2) सूप (दाल)
3) प्रलेह (चटनी)
4) सदिका (कढ़ी)
5) दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)
6) सिखरिणी (सिखरन)
7) अवलेह (शरबत)
8) बालका (बाटी) 
9) इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
10) त्रिकोण (शर्करा युक्त)
11) बटक (बड़ा)
12) मधु शीर्षक (मठरी)
13) फेणिका (फेनी)
14) परिष्टाश्च (पूरी)
15) शतपत्र (खजला)
16) सधिद्रक (घेवर)
17) चक्राम (मालपुआ)
18) चिल्डिका (चोला)
19) सुधाकुंडलिका (जलेबी)
20) धृतपूर (मेसू)
21) वायुपूर (रसगुल्ला)
22) चन्द्रकला (पगी हुई)
23) दधि (महारायता)
24) स्थूली (थूली)
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)
26. खंड मंडल (खुरमा)
27. गोधूम (दलिया)
28. परिखा 
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त) 
30. दधिरूप (बिलसारू)
31. मोदक (लड्डू) 
32. शाक (साग) 
33. सौधान (अधानौ अचार)
34. मंडका (मोठ) 
35. पायस (खीर) 
36. दधि (दही)
37. गोघृत 
38. हैयंगपीनम (मक्खन) 
39. मंडूरी (मलाई) 
40. कूपिका 
41. पर्पट (पापड़), 
42. शक्तिका (सीरा)
43. लसिका (लस्सी) 
44. सुवत
45. संघाय (मोहन)
46. सुफला (सुपारी)
47. सिता (इलायची)
48. फल
49. तांबूल
50. मोहन भोग
51. लवण 
52. कषाय
53. मधुर 
54. तिक्त 
55. कटु
56. अम्ल

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