Maha kumbh 2025 GK Quiz: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ शुरू हो गया है. महाकुंभ मेले का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं, महाकुंभ पर आधारित ये खास क्विज. आज हम बताएंगे कि कल्पवास से संबंधित कुछ रोचक तथ्य...
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Maha kumbh 2025 GK Quiz: महाकुंभ पर दुनियाभर के लोगों की आंखें टिकी होती हैं. शाही स्नान के साथ-साथ इस मेले का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं. इस मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं, महाकुंभ पर आधारित ये खास क्विज यानी आपकी जनरल नॉलेज के बारे में जानते हैं. आज हम बात करेंगे कल्पवास की, नाम तो सुना ही होगा. आइए जानते हैं कि किस राष्ट्रपति ने पहला कल्वास किया था. ये भी जानते हैं कुंभ में विदेशियों की आस्था कितनी पुरानी है.
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सवाल: क्या आप जानते हैं कल्पवास क्या होता है?
जवाब: महाकुंभ में कल्पवास एक प्राचीन और पवित्र परंपरा है, जो हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखती है. कल्पवास का अर्थ है "एक महीने का निवास" और यह महाकुंभ के दौरान एक पवित्र स्थान पर एक महीने तक रहने की प्रथा है. कल्पवास की परंपरा के अनुसार, श्रद्धालु महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में एक पवित्र स्थान पर एक महीने तक रहते हैं और वहाँ पर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, और साधना करते हैं.
सवाल:कल्पवास के कितने नियम ?
जवाब:कल्पवास व्रत करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है. इस व्रत में बेहद कठिन साधना होती है.कल्पवास के दौरान कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है. अगर नियमों का पालन सही तरीके से न किया जाए, तो तपस्या भंग मानी जाती है. कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं.
सवाल: भारत के किस राष्ट्रपति ने किया था कल्पवास?
जवाब:साल 1954 में कुंभ मेले में भारत के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अकबर के किले में कल्पवास किया था. उनके कल्पवास के लिए खास तौर पर किले की छत पर कैंप लगाया गया था. यह जगह प्रेसिडेंट व्यू के नाम से जानी जाती है.
सवाल:किस राष्ट्रपति ने किया था कठोर कल्पवास?
जवाब: 1924 प्रयाग कुंभ की बात है. अंग्रेज सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी. सरकार का कहना था कि संगम के पास फिसलन बहुत बढ़ गई है, कोई हादसा हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ‘कल्पवासी दिन में तीन बार स्नान करते हैं. दोपहर का स्नान वे संगम तट पर ही करते हैं. इसलिए वे संगम में स्नान के लिए अड़े थे. उस समय कल्पवासियों को पंडित मदन मोहन मालवीय का साथ मिला. उन्होंने सरकार के फरमान के खिलाफ जल सत्याग्रह शुरू कर दिया था. 200 से ज्यादा कल्पवासी, मालवीय के साथ ब्रिटिश पुलिस के साथ आर-पार के मूड में थे. जवाहरलाल नेहरू भी तब प्रयाग में ही थे। जब उन्हें पता चला कि संगम में स्नान को लेकर मालवीय जल सत्याग्रह कर रहे हैं, तो वे भी संगम पहुंच गए.
सवाल: कुंभ के लिए राजा हर्षवर्धन ने क्या किया?
जवाब: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जाता है कि राजा हर्षवर्धन ने यहीं छठवीं सदी में कल्पवास किया. राजा हर्षवर्धन ने यहां दान में अपना राजपाट सब कुछ दांव पर लगा दिया. उन्होंने बुद्ध, सूर्य और शिवशंकर की विशाल मूर्ति भी बनवाई. सोने-चांदी के सिक्के और रत्न बांटे. उन्होंने 74 दिन तक लगातार दान कर खजाना साफ कर दिया. फिर अपना मुकुट भी दान में दे दिया.
सवाल: किसी चीनी यात्री ने किया कुंभ वर्णन?
जवाब: कई इतिहासविद सम्राट हर्षवर्धन के काल से संगम पर कुंभ के आयोजन की बात करते हैं, लेकिन यही बात अंतिम नहीं है. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि हर छठवें वर्ष संगम तट पर सम्राट हर्षवर्धन की ओर से कुंभ का आयोजन होता था. सम्राट यहां धन-वस्त्र ही नहीं, शासन के प्रतीक चिह्न राजदंड को भी दान कर देते थे. फिर, बहन राज्यश्री से वस्त्र का टुकड़ा मांगकर पहनते और अपने राज्य कन्नौज लौट जाते थे.
सवाल: ह्वेनसांग ने क्यों लिखा-संगम स्नान पाप धो देता?
जवाब: 1400 साल पहले ह्वेनसांग ने लिखा था कि संगम स्नान पाप धो देता. मेगस्थनीज ने गंगा किनारे मेले के बारे में बताया कि तैमूर ने कुंभ में नरसंहार किया था. सम्राट हर्षवर्धन के समय आए ह्वेनसांग ने 16 सालों तक देश के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन किया. करीब 1400 साल पहले (644 ईस्वी) में वह सम्राट हर्षवर्धन के साथ प्रयाग कुंभ का साक्षी बना. उसने अपनी किताब ‘सी-यू-की’ में लिखा- ‘देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे. संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता है.
सवाल: क्या है अर्धकुंभ और कल्पवास की परंपरा?
जवाब: अर्धकुंभ और कल्पवास की परंपरा केवल प्रयाग और हरिद्वार में ही है. इतिहासकारों के अनुसार कुंभ मेले का पहला विवरण मुगलकाल के 1665 में लिखे गए गजट खुलासातु-त-तारीख में मिलता है. कुछ इतिहासकार इस तथ्य को विवादित करार देते हैं, वे पुराणों और वेदों का हवाला देकर कुंभ मेले को सदियों पुराना मानते हैं.
सवाल: कैसी है परंपरा?
जवाब: यह परंपरा हिंदू धर्म में बहुत पवित्र मानी जाती है और इसका उद्देश्य आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक विकास को प्राप्त करना है.
सवाल: क्या होता है कल्पवास के दौरान?
जवाब:कल्पवास के दौरान, श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जैसे कि गंगा स्नान, पूजा-पाठ, और साधना. वे अपने दैनिक जीवन को भी धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार व्यवस्थित करते हैं और अपने समय को अध्यात्मिक विकास के लिए समर्पित करते हैं.
सवाल:कब होती है ये परंपरा?
जवाब: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो प्रयागराज में शुरू हुए कल्पवास में एक कल्प का पुण्य मिलता है. शास्त्रों में एक कल्प का मतलब ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है.
सवाल: कैसा होता है कल्पवासी का जीवन?
जवाब: एक महीने तक संगम तट पर चलने वाले कल्पवास में कल्पवासी को जमीन पर सोना पड़ता है. इस दौरान एक समय का आहार या निराहार रहना होता है. तीन समय गंगा स्नान भी करना होता है.
सवाल: किन ग्रंथों में जिक्र?
जवाब: कल्पवास का वर्णन महाभारत और रामचरितमानस में भी है. महाभारत के अनुसार सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या का जो फल है, वह माघ मास में संगम पर कल्पवास कर पाया जा सकता है.
सवाल: कौन है सभी तीर्थों के राजा?
जवाब: मान्यताओं के अनुसार माघ माह में सभी तीर्थों को अपने राजा से मिलने प्रयागराज आना पड़ता है. गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम पर स्नान करके यह तीर्थ और देवता धन्य हो जाते हैं. इसी लिए कहा जाता है कि कल्पवास के दौरान स्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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