1990 का वो दौर जब मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर चलवाईं गोलियां, साधु-संतों की हत्या से गर्मा गई थी सियासत
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1990 का वो दौर जब मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर चलवाईं गोलियां, साधु-संतों की हत्या से गर्मा गई थी सियासत

Time Machine: आज टाइममशीन के जरिए हम आपको लेकर चलेंगे वर्ष 1990 में. यानी वो साल जब दुनिया का सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन हुआ और कैसे भारत ने करीब 2 लाख भारतीयों को कुवैत से सुरक्षित बाहर निकाला.

1990 का वो दौर जब मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर चलवाईं गोलियां, साधु-संतों की हत्या से गर्मा गई थी सियासत

Zee News Time Machine: आज टाइममशीन के जरिए हम आपको लेकर चलेंगे वर्ष 1990 में. यानी वो साल जब दुनिया का सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन हुआ और कैसे भारत ने करीब 2 लाख भारतीयों को कुवैत से सुरक्षित बाहर निकाला. ये वही साल था, जब सोमनाथ ने निकली रथयात्रा के बाद लालू प्रसाद यादव ने करवा दिया था लाल कृष्ण आड़वाणी को गिरफ्तार. इसी साल एक हमले के बाद मरते मरते बची थीं ममता बनर्जी और 1990 ही वो साल था जब जीतकर भी शैंपेन की बोतल को खोल नहीं पाए थे सचिन तेंदुलकर. तो चलिए खोलते हैं गुजरे वक्त का दरवाजा और बताते हैं आपको साल 1990 की 10 अनकही और अनसुनी कहानियां.

राजीव गांधी की चाय पर चर्चा!

बात 1990 की है, जब चुनाव के दौरान राजीव गांधी गुजरात दौरे पर गए थे. इस दौरान की उनकी एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी. दरअसल 1990 में अपने गुजरात दौरे के दौरान राजीव गांधी चाय पर चर्चा करते नजर आए थे. वो जगह-जगह कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ खाना खाते और चाय पीते नजर आए थे. आज भी सोशल मीडिया पर राजीव गांधी की ये तस्वीरें वायरल होती रहती हैं. 2017 में राहुल गांधी जब गुजरात दौरे पर गए तो उनकी और उनके पिता की तस्वीरों की काफी तुलना की गई.

दुनिया का सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन!

90 के दशक में भारत के सामने एक बड़ी मुश्किल आकर खड़ी हो गई. इसका हल निकालना किसी पहाड़ को तोड़ने से कम नहीं था. दरअसल 1990 में इराक और कुवैत के बीच जंग छिड़ गई. एक लाख से ज्यादा इराकी सैनिक कुवैत में घुस गए थे और दो लाख से ज्यादा भारतीय कुवैत में बिल्कुल बेसहारा और नाउम्मीद होने के मजबूर हो गए थे. इन भारतीयों को वहां से सुरक्षित निकालना भारत सरकार के लिए आसान नहीं था. अपनी जिंदगी भर की कमाई को छोड़कर बहुत से लोग भारत नहीं आना चाहते थे.

सोमनाथ से निकली रथयात्रा

अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के निमार्ण कार्य के लिए 25 सितंबर 1990 के दिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाली गई जिसे स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का नाम दिया गया. आडवाणी उस वक्त बीजेपी के अध्यक्ष थे. मंदिर निर्माण का आंदोलन उन दिनों चरम पर था. इस यात्रा के लिए एक ट्रक को भगवा रंग के रथ का रूप दिया गया था. ये रथ यात्रा जिधर से गुजरती थी वहां राम भक्तों का हुजूम इकट्ठा हो जाता था. अयोध्या में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण की अलख जगाने के भाषणों से गूंजती ये रथ यात्रा जिधर से गुजरती थी वहां राम भक्तों का हुजूम इकट्ठा हो जाता था.

25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आडवाणी ने रथ यात्रा आरम्भ की. जो देशभर में दस हजार किलोमीटर का सफर तय करते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पंहुचना थी. इस दौरान यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए यात्रा को रोका भी गया देश के कई हिस्सों में दंगे भी हुए और लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी भी हुई.

बिहार में आडवाणी गिरफ्तार!

1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद देश में हवा बदल गई और आडवाणी की गिरफ्तारी ने राजनैतिक दुनिया में भूचाल ला दिया था. दरअसल 1990 में अयोध्या मंदिर निर्माण जोर पकड़ रहा था. हर तरफ अयोध्या में मंदिर बनवाने की तैयारी हो रही थी. इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक 'रथयात्रा' निकालने की घोषणा कर दी थी. इस रथयात्रा की पूरी जिम्मेदारी देश के मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी थी. रथयात्रा शुरू हुई. उधर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उन्होंने रथ यात्रा को रोकने के लिए सारी तैयारी कर ली. आडवाणी की यात्रा बिहार से निकल रही थी और आडवाणी की रथयात्रा समस्तीपुर पहुंचने वाली थी. इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने रामेश्वर उरांव को रथयात्रा रोकने और आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

आडवाणी की रथयात्रा जब शुरू हुई तो उसी वक्त तय हो गया था कि केंद्र में वीपी सरकार के गिरने के दिन शुरू हो गए. 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में भूचाल मच गया था.

मुलायम ने चलवाई कारसेवकों पर गोलियां

साल 1990 में उत्तरप्रदेश में कुछ ऐसा हुआ जिसने देशभर में लोगों को चौंका कर रख दिया था. दरअसल 2 नवंबर को अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गईं और ये गोलियां किसी और के नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव के आदेश पर चली थीं. क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री उस वक्त मुलायम सिंह यादव ही थे. अयोध्या के हनुमानगढ़ी श्रद्धालु जा रहे थे. उस वक्त हिंदु साधु-संत भारी मात्रा में अयोध्या पहुंच रहे थे. इसी दौरान अयोध्यान में कर्फ्यू लगा हुआ था. बाबरी मस्जिद के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बैरिगेटिंग की गई थी और इसीलिए श्रद्धालुओं के प्रवेश नहीं दिया जा रहा था.

30 अक्टबूर, 1990 ये वो तारीख है जब कारसेवकों पर गोली चली. जिसमें 5 कार सेवक मारे गए. इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया था. इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिक के बिल्कुल करीब था. वहीं 2 नवंबर की तारीख आई, अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे. इसी बीच पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यही कहा गया है. इन्हीं में कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी. मुलायम सिंह यादव ने खुद इस बात को सालों बाद माना था कि उन्हीं के कहने पर कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी.

ममता पर हुआ जानलेवा हमला

16 अगस्त 1990 के दिन दक्षिण कोलकाता के हाजरा में CPI-M के कथित गुंडे लालू आजम ने हमला कर दिया था जिसमें ममता बुरी तरह जख्मी हो गई थी. दरअसल उस समय ममता कांग्रेस की युवा नेता थीं. खाद्य तेल में मिलावट के चलते मौतें होने के विरोध में कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन किए. ममता ने कई जगह रैलियां कीं. इसी सिलसिले में हाजरा में जब ममता रैली के लिए जा रही थीं, तभी करीब 11 बजे सुबह कम्युनिस्ट पार्टी के कथित गुंडे आजम ने धारदार हथियार से ममता का सिर फोड़ दिया था. इस हमले के दौरान ममता लहू लुहान हो गई थी और उनको 16 टांके भी आए थे. हमला इतना खतरनाक था कि ममता की जान पर बात बन गई थी.

भारत के इतिहास में 1990 एक क्रांतिकारी साल था. इस साल ही जनता दल सरकार ने पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था का निर्णय लिया था. 7 अगस्त 1990 को पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण की घोषणा कर वीपी सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे जोखिम भरा दांव चला. सवर्ण छात्रों ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. तकरीबन 200 छात्रों ने आत्मदाह का प्रयास किया जिनमें से 62 की मौत हो गई.बचा लिए गए छात्र राजीव गोस्वामी देश भर में कई दिनों तक अखबारों के पन्नों पर रहे.

हालांकि आरक्षण लागू करने से पहले ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी. 1991 में फिर हुए चुनावों में जीतकर आई कांग्रेस ने इसे लागू किया था. इस आरक्षण को लागू करने की सिफारिश मंडल आयोग ने की थी.

सचिन को दी गई शैंपेन की बोतल

1990 में सचिन तेंदुलकर क्रिकेट वर्ल्ड में छाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. मास्टर ब्लास्टर ने 1990 में मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता था और इस खिताब को जीतने के बाद सचिन को बेहद ही खास तोहफा मिला था. दरअसल 14 अगस्त 1990 को सचिन ने अपने इंटरनेशनल क्रिकेट करियर में पहला शतक लगाया था. ओल्ड ट्रैफर्ड क्रिकेट मैदान पर खेले गए इस मैच में सचिन ने इंग्लैंड के खिलाफ जब जबरदस्त पारी खेली तो उन्हें मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला. अब सचिन ने मैन-ऑफ-मैच का पुरस्कार जीता, तो इनाम के तौर पर उन्हें शैंपेन की बोतल दी गई. लेकिन उस समय ये शैंपेन की बोतल उन्हें पीने नहीं दी गई थी क्योंकि उस वक्त सचिन की उम्र 18 वर्ष से कम थी. इसके बाद सचिन ने वो बोतल 1998 में अपनी बेटी के पहले जन्मदिन पर खोली थी और खाली बोतल बतौर स्मृति चिन्ह अपने पास रखी थी. आपको बता दें कि, सचिन तेंदुलकर के पास सबसे ज्यादा मैन ऑफ द मैच पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड है, जो एक खिलाड़ी को हार का सामना करना पड़ा था.

'जहरीली दावत' से 150 लोगों की मौत!

उत्तर प्रदेश में साल 1990 में एक खुशियों से भरे समारोह में कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद मातम पसर गया. दरअसल यूपी के बस्ती कस्बे में एक सगाई समारोह चल रहा था. सगाई समारोह में जहरीले खाने की वजह से करीब 150 लोगों की मौत हो गई. बताया जाता है कि फूड पॉइसनिंग की वजह से यहां मेहमानो और घरवालों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था. एक रिपोर्ट में बताया गया कि, अस्पतालों में भर्ती 125 में से 63 लोगों की मौत उसी वक्त हो गई थी और ये सब उस खाने की वजह से ही हुआ था. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ के पास रायपुरा जंगला गांव में भी ऐसे ही फूड पॉसनिंग मामला आया. जहां भी करीब 87 लोगों की मौत हो गई थी. सगाई समारोह में शामिल होने आए लोगों के साथ साथ इसमें मरने वालों में खुद सगाई करने वाली महिला, उसके पिता और भाई भी शामिल थे. जिनके लिए ये दावत मौत की दावत बनी थी. जांच पड़ताल में पता चला कि आटे में कुछ दूषित और जहरीला पदार्थ मिला था, जिसकी वजह से लोगों की जान गई. उत्तर प्रदेश में उस वक्त फूड पॉयसनिंग की वजह से दो अलग अलग जगहों पर कुल 150 लोगों की जान गई थी.

जब रेखा से हुआ सरोज खान का झगड़ा!

1990 का वो दौर था जब बॉलीवुड में एक्ट्रेसेस का दौर शुरू हो गया था. श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित और जूही चावला जैसी हीरोइन्स पर्दे पर राज कर रही थीं. उधर रेखा पहले से ही हिंदी सिनेमा की सुपरस्टार एक्ट्रेस थीं. साल 1990 का ही एक ऐसा किस्सा मशहूर हुआ जब एक फिल्म के सेट पर रेखा और कॉरियोग्राफर सरोज खान के बीच गरमागर्मी हुई. दरअसल 1990 में रेखा फिल्म शेषनाग में काम कर रही थीं. फिल्म में एक गाना था, जिसे सरोज खान कॉरियोग्राफ कर रही थीं. लेकिन गाने के लिए फिल्म के प्रोड्यूसर ने कम वक्त दिया. ये गाना रेखा पर फिल्माया जाना था लेकिन रेखा रिहर्सल के लिए नहीं आ रही थीं. वहीं गाने को शूट करने की डेट करीब आई तो रेखा सेट पर पहुंचीं लेकिन गाड़ी में रहीं तब सरोज खान उनसे मिलने पहुंचीं तो रेखा ने शूटिंग कैंसिल करने की बात कहीं. रेखा ने कहा कि, उनकी तबीयत खराब है. जिसके बाद सरोज खान ने उनसे कह दिया- शायद आपको मुझसे एलर्जी है, मैं आपको रिहर्सल पर बुलाती हूं आप नहीं आते, आती हैं तो तबीयत खराब होने की बात कहती हैं, या तो आप डांस मास्टर चेंज करवा लीजिए, कुछ तो गड़बड़ है.

इसके बाद रेखा अपने मेकअप रूम में गईं और फूटफूट कर रोने लगीं. ये बात हर तरफ फैल गई. हालांकि बाद में सरोज खान ने साफ किया कि उनका वो मतलब नहीं था. हर किसी का एक फेवरेट डांस मास्टर होता है. आखिरकार बाद में सब ठीक हुआ और फिर शूटिंग की गई.

तो टाइममशीन में आज आपने सफर किया 1990 का. कल आपको टाइममशीन के जरिए लेकर चलेंगे साल 1991 में.

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