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Sultan Garhi Tomb in Delhi: दिल्ली में कुतुब मीनार से केवल 6.4 किलोमीटर दूर भारत मे बने पहले इस्लामिक मकबरे सुल्तान गढ़ी का पुरातत्व इतिहास दफन है. यह मकबरा पहले कभी शिव मंदिर था. उस शिव मंदिर के अवशेष आज भी वहां बिखरे पड़े हैं. जिस गौरी-पट्टे पर कभी शिवलिंग विराजमान था, उसका भी बुरा हाल है. मकबरे की दीवारों से लेकर 75 वर्ष पुरानी ASI की रिपोर्ट इस मकबरे के हिन्दू मन्दिर होने की गवाही दे रही है.
भारत मे इस्लामिक आक्रांताओ की ओर से बनाए गए पहले मकबरे सुल्तान गढ़ी (Sultan Garhi Tomb) का असल इतिहास आप सबको जानना चाहिए. इसके पूरे परिसर में मौजूद दीवार के एक एक पत्थर इसके इस्लामिक काल से पहले हिन्दू मन्दिर होने के पुख्ता सबूत दे रहे हैं. इसका निर्माण वर्ष 1231 में इस्लामिक आक्रांता इल्तुतमिश (Iltutmish) ने करवाया था और सुल्तान गढ़ी के इस मक़बरे में इल्तुतमिश के तीनों बेटों की कब्र भी हैं. सुल्तान गढ़ी के परिसर में फिरोज शाह तुगलक की ओर से बनवाई गई मस्जिद भी है और मुगल काल मे बनी इमारतों के अवशेष भी. सुल्तान गढ़ी का बस इतना ही इतिहास, इतिहासकारों ने हमें और आपको बताया था. अब समय है आपको इस सुल्तान गढ़ी का पूरा इतिहास जानने का.
Archeological Survey of India (ASI ) की आजादी से पहले जनवरी 1947 की यह रिपोर्ट है, जिसका नाम Ancient India है. और इसमें भारत के इस सबसे पुराने मकबरे सुल्तान गढ़ी के पूरे परिसर का सर्वेक्षण करने ASI के Archeologist SAA NAQVI की रिपोर्ट है.
-अपनी रिपोर्ट के पहले ही पन्ने पर ही SAA NAQVI बताते हैं कि सुल्तान गढ़ी का मकबरा (Sultan Garhi Tomb) जिसे इस्लामिक शासक इल्तुतमिश ने अपने बड़े बेटे नसीरुद्दीन महमूद की याद में बनवाया था, उसका निर्माण ध्वस्त किये गए हिन्दू मन्दिरों के अवशेषों से हुआ था.
-SAA नकवी के सर्वेक्षण में क्या बाते सामने आई हैं, इस पर रिपोर्ट के तीसरे पन्ने पर SAA NAQVI बताते हैं कि सुल्तान गढ़ी के मकबरे का वो हिस्सा जिसका निर्माण तुर्कवंश के शासकों ने किया था, उन्होंने हिन्दू कलाकृतियों का इस्तेमाल करके निर्माण को मुस्लिम दिया है, जिसकी गवाही आर्क से लेकर गुम्बद तक दे रहे हैं.
- सर्वेक्षण रिपोर्ट के चौथे पन्ने पर SAA NAQVI लिखते हैं कि मकबरे के गुम्बद से लेकर खम्बो तक में हिन्दू मन्दिरों की कलाकृति साफ दिख रही है और परिसर में मौजूद गौरी-पट्टा (जिस पर शिवलिंग को स्थापित किया जाता है) भी इसके प्राचीन हिन्दू मन्दिर होने की गवाही दे रहा है, जो भारत में इस्लामिक राज आने से पहले से ही मौजूद था.
सुल्तान गढ़ी के मकबरे (Sultan Garhi Tomb) के परिसर में प्रवेश करते ही ऐसा लगेगा जैसे आप किसी प्राचीन हिन्दू मन्दिर में आ गए हैं. परिसर में मौजूद दीवारों के पत्थरों और खंभों पर हिन्दू शिल्पकृतियां आपको दिखने लगेंगी, कमल के फूल की आकृति, हिन्दू मन्दिरों की आकृतियां आपको साफ साफ दिखेंगी. परिसर के एक हिस्से पर अरबी या फारसी लिपि में कुछ लिखा हुआ जरूर दिखेगा लेकिन यह पूरे परिसर से बिल्कुल अलग थलग है और जैसा की ASI ने 1947 की अपनी रिपोर्ट में भी बताया था.
सुल्तान गढ़ी के परिसर में सफेद मार्बल से बना एक निर्माण है जिसके नीचे सीढियो से जाने पर 3 कब्रें दिखती हैं. इन तीन कब्रों में से एक कब्र इल्तुतमिश के बेटे नसरुद्दीन मोहम्मद की है, जिसके मकबरे के निर्माण के लिए इस्लामिक आक्रांता इल्तुतमिश ने पूरे मन्दिर को तोड़ दिया था, बाकी की 2 कब्रें उसके दो अन्य बेटों की हैं. मक़बरे का जो भाग ऊपर परिसर की ओर है, उसमे तो इस्लामिक निर्माण दिखेगा लेकिन अंदर के भाग में जहां कब्र मौजूद है वहां साफ नजर आएगा कि ये कभी हिन्दू मन्दिर ही हुआ करता था.
सुल्तान गढ़ी के परिसर में ASI ने 1947 के अपने सर्वेक्षण में गौरी पट्टे का जिक्र किया था, जिस पर इस्लामिक आक्रांताओ की गंदी नज़र पड़ने से पहले शिवलिंग स्थापित था. आज यहाँ शिवलिंग तो स्थापित नही है लेकिन गंदगी जरूर विराजमान है. गन्दा बदबूदार पानी पूरे गौरी पट्टे में भरा हुआ है. जिसे हमारी टीम ने ही हटाया ताकि आपको गैरी पट्टे के भी दर्शन हो पाए और धार्मिक भावनाओ को भी ठेस ना पहुंचे.
इस्लामिक आक्रांताओ ने भारत में जो अपना पहला मक़बरा (Sultan Garhi Tomb) बनवाया था उसका गुम्बद तक हिन्दू मन्दिरो की तरह ही है. ASI ने 75 वर्ष पुरानी अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया था कि ये गुम्बद हिन्दू मन्दिरो के हैं जिसमे कुछ छेड़छाड़ करके इसे इस्लामी निर्माण घोषित कर दिया गया.
सुल्तान गढ़ी का परिसर 62 एकड़ तक फैला हुआ है और यहां मकबरे से 250 मीटर दूर एक मस्जिद है जिसका नाम फिरोजशाह मस्जिद और इसका निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया था. यहां कुछ लोगों ने वैसे ही कब्ज़ा किया हुआ है जैसे कभी इन आक्रांताओ ने भारत पर किया था.
भारत मे इस्लामिक आक्रांता जब आये थे तब उन्हें अपने धार्मिक निर्माण करने की इतनी जल्दी थी कि उन्होंने सिर्फ जोड़-तोड़ किया. मन्दिरों को तोड़ कर उसके ही मलबे को जगह जगह जोड़ दिया ताकि इमारत उनकी हो जाये और हिन्दू इन निर्माणों को देख कर खुद को इस्लामी साम्राज्य का गुलाम मानने लगे. लेकिन इन इस्लामिक इमारतों की दीवारें चीख चीख कर अपना पुरातत्व इतिहास बता रही हैं.
इस समय पूरे विश्व मे भारत के ही कुछ जयचन्दों की ओर से तस्वीर पेश की जा रही है कि भारत मे मुसलमानों का दमन किया जा रहा है, जानबूझकर कर उनकी धार्मिक भावनाएं आहत की जा रही हैं. भारत का हिन्दू असहिष्णु हो चुका है. लेकिन क्या यह सच है? इसी वर्ष में भारत मे हिंदुओं की शोभायात्राओं पर राजस्थान से लेकर दिल्ली तक पथराव हुए. तो क्या वह हिंदुओं का जानबूझकर कर दमन नहीं था? हिन्दू जरूर संख्या के आधार पर भारत की सबसे बड़ी आबादी है. लेकिन आज भी भारत मे पश्चिम बंगाल से लेकर राजस्थान तक उनकी धार्मिक यात्राओं पर पथराव भी किया जाता है और ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग को फव्वारा बता कर या फिर सड़क पर मौजूद छोटे पिलर के सहारे उनकी धार्मिक भावनाओं को भी आहत किया जाता है.
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भारत मे हिंदुओं की भावनाओं का अपमान करना कोई आज का फैशन नही है. यह परंपरा तो 1 हज़ार वर्षो से लगातार चली आ रही है. आज सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया जाता है, शोभायात्रा पर पथराव किया जाता है. वहीं 1 हज़ार साल पहले इस्लामिक आक्रांताओ के राज में उनके मन्दिरों को ही तोड़ कर इन मन्दिरों का इस्लामीकरण कर दिया गया था. जिस तरह से आज भारत के बुद्धिजीवी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के अपमान और शोभायात्राओं पर पथराव पर चुप्पी साध लेते हैं वैसे ही इतिहासकारो ने मुस्लिम आक्रांताओ द्वारा हिंदुओं के मंदिरों को ध्वस्त करने के इतिहास को वर्षो तक बंद रखा और भारतीयों को जानने नहीं दिया. लेकिन अब यह नया भारत है, जिसको पूरा हक है असल इतिहास जानने का भी और समझने का भी.
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