उत्तर प्रदेश का संभल एक छोटा सा शहर है. ऐतिहासिक शहर, जिसके हर कोने में बीते दौर की कहानी है. इसका इतिहास खूबसूरत भी रहा है. ऐसे स्थल हैं जो महान पृथ्वीराज चौहान और आल्हा उदल सरीखे शूरवीरों की गाथा सुनाते हैं.
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मंदिर-मस्जिद विवाद, बावड़ी मिलने जैसे मसलों के कारण आजकल संभल सुर्खियों में है. दरअसल उत्तर प्रदेश का संभल एक छोटा सा शहर है. ऐतिहासिक शहर, जिसके हर कोने में बीते दौर की कहानी है. इसका इतिहास खूबसूरत भी रहा है. ऐसे स्थल हैं जो महान पृथ्वीराज चौहान और आल्हा उदल सरीखे शूरवीरों की गाथा सुनाते हैं. ऐसे ही एक ऐतिहासिक स्थल के बारे में बात करें तो वह है "चोरों का कुआं" या "बाबरी कुआं", जो संभल सदर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम कमालपुर सराय में स्थित है. यह स्थान "तोता मैना की कर" से कुछ ही दूरी पर है.
चोरों का कुआं
इस कुएं का इतिहास पृथ्वीराज चौहान के समय से जुड़ा हुआ है. पहले संभल पृथ्वीराज चौहान की राजधानी हुआ करती थी. कमालपुर सराय के स्थानीय निवासियों ने इस कुएं के बारे में बताया कि इसे "चोरों का कुआं" और "बाबरी कुआं" भी कहा जाता है. लेकिन, यह बाबर ने नहीं बनवाया था. दरअसल, इसे "चोरों का कुआं" इसलिए कहा जाता था, क्योंकि कुछ साल पहले चोर यहां आते थे. असल में यह एक बावड़ी है, जिसे पृथ्वीराज चौहान के समय में राजा-रानी और आम लोग उपयोग करते थे. यह पांच मंजिला कुआं है और पहले इसमें पानी भरा रहता था.
यहां एक स्थानीय निवासी ने बताया कि यहां का इतिहास वाकई बहुत पुराना है. लोग अक्सर इसके बारे में कई तरह की बातें करते हैं. पहले, जब ये सभी घटनाएं हुई थीं, तब यह हिंदू पक्ष के ही मामले थे, यानी कि हमारे पुरखों ने इसमें काफी हिस्सा लिया था.
आल्हा उदल की वीरगाथा
आल्हा उदल की वीरगाथा भी यहां के कण कण में बसती है. संभलवासी कहते हैं, यह पुराना इतिहास है, और कई बार ऐसा लगता है कि उस वक्त की लड़ाइयों में, जो भी हुआ, उसका असर आज भी हमारी जिंदगी पर पड़ा है. खासकर उन लड़ाइयों की जो किसी खास स्थान पर लड़ी गई थीं, जैसे कि 'आल्हा उदल' वाली लड़ाई. ये एक ऐसी लड़ाई थी जो बहुत चर्चित रही और उस बारे में किताबें भी लिखी गई हैं. आपने शायद वह किताब सुनी या पढ़ी होगी जिसमें पूरी कहानी है कि किस तरह से उस दौर में ये युद्ध लड़ा गया और किस तरह से हर किसी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. अब, जब हम बात करते हैं आज के समय की, तो चीजें काफी बदल चुकी हैं. अब धीरे-धीरे वो सब खत्म होने की ओर बढ़ रहा है, जो पहले था.”
एक अन्य निवासी ने संभल के ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में बताया " 'चोरों का कुआं' के चारों तरफ जंगल था. कहते हैं कोई किसान शाम को 6 बजे के बाद रुकता तक नहीं था. हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे कि चोर यहां शाम को एकत्रित होते थे. बस इसलिए इसका नाम चोरों का कुआं पड़ गया."
(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस के साथ)