इंटरनेशनल लेवल पर नाम कमा रही है सीकर की बेटी सरिता, कभी खाने को तरसता था परिवार
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इंटरनेशनल लेवल पर नाम कमा रही है सीकर की बेटी सरिता, कभी खाने को तरसता था परिवार

राजस्थान में सीकर की बेटी जूडो में इंटरनेशनल लेवल पर नाम कमा रही है. सरिता ने एक छोटे से गांव में कोचिंग जारी रखकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है.

इंटरनेशनल लेवल पर नाम कमा रही है सीकर की बेटी सरिता, कभी खाने को तरसता था परिवार

Sikar News: मंसूबे मजबूत और मेहनत हों तो मुकद्दर भी बदला जा सकता है. मुसीबतें भी खुद राह से हटकर मंजिल का मार्ग दिखा देती हैं फिर माहौल और मजबूरी कैसी भी हो... यह साबित कर दिखाया है खंडेला के रामपुरा निवासी सरिता सैनी ने.
मजदूर पिता के घर में जन्मी छः भाई बहनों में से एक सरिता का बचपन काफी मुफलिसी में बीता लेकिन कुछ कर गुजरने का जज्बा उसने जहन में हमेशा जिंदा रखा. सरिता ने एक छोटे से गांव में कोचिंग जारी रखकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है.

स्कूली शिक्षा के दौरान वर्ष 2011 में शुरू हुआ सरिता का यह सफर दिन प्रतिदिन सफलता के नए मुकाम छू रहा है. सीकर के खंडेला उपखंड मुख्यालय स्थित राजकीय बालिका विद्यालय में पढ़ाई के दौरान उसने खेल प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया और वर्ष 2014 तक खूब पसीना बहाया लेकिन परिवार की माली हालत के कारण इसे आगे जारी नहीं रख पाई और खेल के साथ अब कुछ आमदनी की भी जरूरत महसूस होने लगी. बकौल सरिता उसने खेल को ही चुना और रामपुरा गांव में बच्चों को जूड़ो की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया, जिससे घर और उसका खर्चा निकालना शुरू हो सके. 

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इंटरनेशनल लेवल पर बनाई पहचान
वर्ष 2015 में उसने जिला स्टेडियम की तरफ से कॉन्ट्रैक्ट कोच लगकर रामपुरा में जूडो सेंटर शुरू कर दिया, जो उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. सेंटर शुरू करने के बाद उसकी आमदनी भी शुरू हो गई और यहां से ट्रेनिंग प्राप्त करने वाले खिलाड़ी भी नाम रोशन करने लगे. सरिता सैनी ने भी अपने माता-पिता और जिले का नाम रोशन कर जूडो में अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान बनाते हुए अपनी मेहनत के बलबूते कोचिंग देकर छोटे से गांव से जूडो के पांच नेशनल मेडलिस्ट, पचास से अधिक स्टेट मेडलिस्ट और पच्चीस नेशनल प्रतिभागी तैयार किए जा चुके हैं जो सिलसिला आज भी अनवरत जारी है. सरिता की ओर से तैयार खिलाड़ी ज्योति सैनी का वर्ष 2019 में कॉमनवेल्थ गेम में चयन हुआ था.

सरिता का संघर्ष सुनिए
सरिता ने बताया कि जब उसने खेलना शुरू किया तो गांव की परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थी. खेलों में लड़कियों का भाग लेना इतना आसान नहीं था. परिजन भी उनकी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित दिखते थे. इसके साथ ही परिवार की आर्थिक हालत भी उसके सामने बड़ी समस्या थी. अपने हौसला और मेहनत के बलबूते सरिता ने इन सब से पार पाते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम रोशन किया है. 

साथ ही सरिता ने कहा कि अब वह चाहती हैं कि जो वह न कर सकी, वह उसके द्वारा तैयार की जा रही खिलाड़ी कर सके. इतना ही नहीं उसने कहा कि मैंने जो कुछ इस खेल में हासिल किया है. मैं चाहती हूं कि मेरे तैयार किए हुए खिलाड़ी मुझसे ज्यादा नाम रोशन कर सकें.

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