लम्पी वायरस ने बाड़मेर, जैसलमेर के बाद अजमेर संभाग के नागौर को सर्वाधिक प्रभावित किया है. गौरतलब है कि नागौरी नस्ल के तीन साल के बछड़ों के राज्य से बाहर निर्यात पर पूर्व में हाईकोर्ट की रोक लगी हुई है, वहीं नागौर जिले में अधिकांश किसान पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं ऐसे में किसानों के पास अधिक गौवंश है.
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Nagaur: सरहद पार से आए लम्पी वायरस ने बाड़मेर, जैसलमेर के बाद अजमेर संभाग के नागौर को सर्वाधिक प्रभावित किया है. इससे गौवंश की नागौरी नस्ल के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है, वहीं जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में गौवंश की मौतों को देखा जाये तो संख्या 10 हजार से पार पहुंच गई हैं. वहीं अब भी कई गौवंश लंपी स्किन वायरस की वजह से तड़प रहें हैं, लेकिन सरकार के कोई भी नुमाइंदे इस ओर ध्यान नहीं दे रहें हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं व सामाजिक संगठनों द्वारा गौवंश का लगातार आयुर्वेदिक उपचार किया जा रहा है, जिससे अधिकांश गौवंश को लंपी बीमारी से काफी निजात भी मिलती दिखाई दे रही है.
नागौरी नस्ल को नुकसान
पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान बॉर्डर से लम्पी वायरस के एंट्री के चलते सीमावर्ती जिलें सर्वाधिक प्रभावित हो रहें हैं. जिले से सटे अजमेर के सीमा क्षेत्र में भी नुकसान ज्यादा हुआ है. विशेषज्ञों के अनुसार पिछले 50 साल में गौवेश में इस तरह की महामारी नहीं आई, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में गायों की मौतें हुई हो. गौरतलब है कि नागौरी नस्ल के तीन साल के बछड़ों के राज्य से बाहर निर्यात पर पूर्व में हाईकोर्ट की रोक लगी हुई है, वहीं नागौर जिले में अधिकांश किसान पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं ऐसे में किसानों के पास अधिक गौवंश है. इलाज के अभाव ने गौवंश में ये वायरस लगातार फैल रहा है. जिले में ही अब तक 10 हजार से ज्यादा गौवंश की मौत हो चुकी है और सरकार के किये उपाय नाकाफी साबित हो रहें हैं, हालांकि सामाजिक संगठन भी पूरे जिले में लगातार प्रयास कर रहें हैं, लेकिन लंपी पर रोकथाम में यह उपाय काम नहीं आ रहें हैं. दूसरी तरफ गाय की नागौरी नस्ल पर संकट मंडराने लगा है. गौ संगठनों का कहना है की लंपी को महामारी घोषित नहीं करने से, गायों का इलाज नहीं हो पा रहा है, जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है और पशुपालकों और गोपालकों की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ रही है.
ऐसा गौशाला जहां एक भी गौवंश नहीं है लंपी से ग्रस्त
नागौर के ईनाणा गांव के गौशाला को लंपी रोग ने अपनी चपेट में ले लिया था, लेकिन ग्रामीणों व युवाओं की सतर्कता से गौशाला में एक भी गौवंश की मौत नहीं हुई. लंपी रोग जैसे ही गौशाला की गायें में आना शुरू हुआ, उस समय ग्रामीण व युवा अलग अलग टीमें गठित कर गौवंश के इलाज में जुट गए. वहीं वेटनरी की लड़कियां भी इस गौवंश में फैल रही बीमारी के इलाज के लिए निस्वार्थ सेवा कर रही हैं और आयुर्वेदिक तरीके से गौवंश के इलाज करने में जुट गयी हैं. आज उसी का ही नतीजा है की आज गौशाला में एक भी गौवंश लंपी बीमारी से ग्रस्त नहीं है. युवाओं द्वारा गौवंश को हर रोज हल्दी, मेथी, काला जीरा, काली मिर्च, तीली का तेल, देशी गाय का घी, नीम, गिलोय, अदरक, काजू, बादाम से युक्त लड्डू बना कर हर रोज प्रत्येक गाय को एक लड्डू खिलाए जा रहें और समय समय पर गौवंश पर फिनायल और डिटोल, नीम की पत्तियों से बने तरल पदार्थ का छीड़काव किया जा रहा है. वहीं कई गौशालाओ में लंपी बीमारी से गौवंश को मुक्ति दिलाने के लिए विशेष जड़ी बूटियों द्वारा हवन पूजा का भी आयोजन किया जा रहा है.
Reporter - Damodar Inaniya
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