सरिस्का में सालाना डेढ़ लाख टन कार्बन उत्सर्जन, अब निजी वाहनों पर लगेगी रोक... जानिए क्या रहेगी आगामी समय में आवागमन की व्यवस्था?
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सरिस्का में सालाना डेढ़ लाख टन कार्बन उत्सर्जन, अब निजी वाहनों पर लगेगी रोक... जानिए क्या रहेगी आगामी समय में आवागमन की व्यवस्था?

Rajasthan News: सरिस्का में सालाना डेढ़ लाख टन कार्बन उत्सर्जन हो रहा है. अब निजी वाहनों पर रोक लगा दी जाएगी. जानिए आगामी समय में सरिस्का में आवागमन की व्यवस्था  क्या रहेगी?

सरिस्का में सालाना डेढ़ लाख टन कार्बन उत्सर्जन, अब निजी वाहनों पर लगेगी रोक... जानिए क्या रहेगी आगामी समय में आवागमन की व्यवस्था?

Sariska Sanctuary Rajasthan: राज्य के सबसे महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व में शामिल सरिस्का टाइगर रिजर्व में आमजन की खुली एंट्री से वन्यजीवों को नुकसान हो रहा है. भारी कार्बन उत्सर्जन होने से बाघों के प्रजनन पर भी नकारात्मक असर की बातें सामने आई हैं. अप्रैल 2025 से टाइगर रिजर्व में निजी गाड़ियों के आवागमन पर रोक लग सकती है.

प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत के बाद वर्ष 2007 में सरिस्का को टाइगर रिजर्व का दर्जा तो मिल गया, लेकिन वाकई में टाइगर रिजर्व जैसी चहल-पहल सरिस्का मे लम्बे समय बाद देखने को मिली है. वर्ष 2004 में सरिस्का पूरी तरह से बाघ विहीन हो गया था, लेकिन अब यहां फिर से बाघों की संख्या बढ़ रही है. 1213.34 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले सरिस्का में वर्तमान में बाघ-बाघिन और शावकों की कुल संख्या 43 है. आम जन के लिहाज से यह संख्या उत्साह बढ़ाने वाली और विभागीय अधिकारियों के लिए दिखाने के लिए अच्छा आंकड़ा हो सकता है,लेकिन वन्यजीव विशेषज्ञ इसे अलग नजरिए से देखते हैं.

बाघों पर कार्य करने वाले विशेषज्ञों की मानें तो सरिस्का में जिस तरह से अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, उससे बाघों के स्वभाव और प्रजनन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. दरअसल सरिस्का में पांडुपोल हनुमानजी मंदिर स्थित है, जहां हर मंगलवार, शनिवार और अन्य मेलों के समय भक्तों की भारी भीड़ रहती है. यहां बड़ी संख्या में निजी वाहन पहुंचते हैं, जिससे बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है. हालांकि दर्शनार्थियों को रोका नहीं जा सकता, इसलिए इलेक्ट्रिक व्हीकल का विकल्प सुझाया गया है.

सरिस्का में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की जरूरत क्यों ?

- सरिस्का में पांडुपोल हनुमान जी मंदिर में दर्शनार्थियों की रहती बड़ी संख्या

- हर मंगलवार, शनिवार व मेले के समय लाखों दर्शनार्थी पहुंचते पांडुपोल

- दर्शनार्थियों के वाहनों से वन एवं पर्यावरण को होती है बड़ी क्षति

- न केवल बाघ संरक्षण के कार्यों पर प्रतिकूल असर हो रहा

- सालाना औसतन डेढ़ लाख टन कार्बन उत्सर्जन भी हो रहा

- इससे बाघों के प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा

- सरिस्का एनसीआर क्षेत्र में शामिल, इसलिए भी यहां इलेक्ट्रिक वाहनों की जरूरत

- दर्शनार्थियों को रोकना संभव नहीं, इसलिए इलेक्ट्रिक व्हीकल अच्छा विकल्प

- दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए नि:शुल्क इलेक्ट्रिक व्हीकल लगाए जाएं

बड़ी बात यह है कि पूर्व में यहां वन्यजीव विशेषज्ञों ने निजी संस्थाओं के सहयोग से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स चलाने का प्रस्ताव रखा था. इसके लिए बाघों से जुड़े विशेषज्ञों ने इलेक्ट्रिक बसें चलाने का प्रस्ताव रखा था. इन बसों से दर्शनार्थी सरिस्का आ-जा सकेंगे. हालांकि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिए जाने से अब निजी संस्थाएं आगे नहीं आ रही हैं.

जब निजी ट्रस्ट आगे आए, विभाग पीछे था ?

- वन्यजीव विशेषज्ञ सुनील मेहता ने विभिन्न संस्थाओं से CRS फंड के लिए किया आग्रह

- तत्कालीन कांंग्रेस सरकार में ई-व्हीकल्स को लेकर प्रस्ताव भेजा गया

- तत्कालीन सरकार के रुचि नहीं दिखाने से संस्थाएं भी फंड देने से पीछे हटी

- इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए आईसीआईसीआई फाउंडेशन के अधिकारी जयपुर आए

- वन विभाग के अफसरों ने चर्चा के लिए समय नहीं दिया, प्रस्ताव डंप हुआ

- जबकि पूर्व में आईसीआईसीआई फाउंडेशन वन विभाग को 15 करोड़ दे चुका था

- अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को मार्च 2025 तक का समय दिया

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लेकर अब वन विभाग ने इसकी पालना के लिए कवायद शुरू कर दी है. मार्च 2025 तक वन विभाग को यहां इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के साथ ही चार्जिंग स्टेशन भी विकसित करने होंगे. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस नई पहल से न केवल श्रद्धालुओं को सुविधा मिलेगी, वन्यजीवों को भी शोरगुल और प्रदूषण से राहत मिल सकेगी.

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