राजस्थान में बाल विवाह कानून पर उठे सवाल, 15 साल में पुलिस 1 को भी नहीं दिला पाई सजा
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राजस्थान में बाल विवाह कानून पर उठे सवाल, 15 साल में पुलिस 1 को भी नहीं दिला पाई सजा

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, बाल विवाह के मामले में राजस्थान देश के पहले दस राज्यों में शुमार है. राज्य में केंद्र के बाल विवाह प्रतिषेध नियम-2007 के तहत कार्रवाई की जा रही है लेकिन यह प्रभावी नहीं है. एक नवंबर 2007 से लागू इस कानून में सजा का प्रावधान भी है लेकिन शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाती है. इधर प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से बाल विवाह करने वालों में भी किसी प्रकार का खौफ नहीं है.

राजस्थान में बाल विवाह कानून पर उठे सवाल, 15 साल में पुलिस 1 को भी नहीं दिला पाई सजा

Jaipur: पूरे देश में बाल विवाह पर प्रतिबंध है. इसका मकसद है बच्चों का बचपन और जीवन सुधारना. इसके लिए पुलिस हर बार कार्रवाई भी करती है लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि बाल विवाह के बड़ी संख्या में मामले पकड़ने के बाद भी पुलिस किसी आरोपी को सजा नहीं करा पाई है. 

दो साल की सजा का प्रावधान है लेकिन ऐसे केस में सजा का आंकड़ा जीरो है, जो इस कानून के होने पर ही सवाल खड़ा कर रहा है. बाल विवाह एक अभिशाप है, यह सरकारी स्लोगन ढकोसला बनकर रह गया है. राजस्थान में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत पुलिस की कार्रवाई से तो यही लग रहा है. प्रदेश में बाल विवाह पर रोक के बावजूद बचपन में फेरे हो रहे हैं. 

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क्या कहते हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, बाल विवाह के मामले में राजस्थान देश के पहले दस राज्यों में शुमार है. राज्य में केंद्र के बाल विवाह प्रतिषेध नियम-2007 के तहत कार्रवाई की जा रही है लेकिन यह प्रभावी नहीं है. एक नवंबर 2007 से लागू इस कानून में सजा का प्रावधान भी है लेकिन शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाती है. इधर प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से बाल विवाह करने वालों में भी किसी प्रकार का खौफ नहीं है.

8 जुलाई को भड़ल्या नवमी का अबूझ सावा
राजस्थान में बाल विवाह यूं तो सालभर होते हैं, लेकिन अबूझ सावों पर सबसे ज्यादा होते हैं. अगले महीने 8 जुलाई को भड़ल्या नवमी का अबूझ सावा है और इस पर बाल विवाह होने की संभावना है. इधर प्रदेश में बाल विवाह प्रतिषेध कानून के तहत पिछले पांच साल में दर्ज मामलों को देखें तो आसानी से समझ में आ जाएगा कि बाल विवाह रोकने के लिए पुलिस, प्रशासन और अन्य संस्थाएं कितनी जागरूक है? 

प्रदेश में जनवरी 2017 से जनवरी 2022 तक पांच साल में बाल विवाह प्रतिषेध नियम के तहत 46 मामले दर्ज किए गए और 35 केसों में चालान भी पेश किया गया, लेकिन सजा एक में भी नहीं हुई है. वहीं 8 केसों को एफआर लगाकर बंद कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर 3 केस पेंडिंग चल रहे हैं.

22 जिलों में दर्ज हुए केस
जानकारी के अनुसार प्रदेश में पांच साल में 22 जिलों में ही बाल विवाह प्रतिषेध नियम के तहत मामले दर्ज किए गए. पुलिस रिपोर्ट के अनुसार राजधानी जयपुर में हरमाड़ा में भी पिछले साल बाल विवाह का मामला सामने आया था. इसी तरह चित्तौड़गढ़, अजमेर, कोटा शहर, चूरू, जालौर,जोधपुर ग्रामीण, सिरोही, डूंगरपुर, बूंदी, करौली,राजसमंद, गंगानगर, सीकर, बाड़मेर, अलवर, जालोर, भीलवाड़ा, पाली, बीकानेर, झालावाड़, सवाईमाधोपुर और कोटा ग्रामीण में मामले दर्ज हुए हैं.

सूचना नहीं या कार्रवाई नहीं
गृह विभाग को भेजी पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, सभी 22 जिलों में कमोबेश एक साल में बाल विवाह प्रतिषेध एक्ट के तहत केवल एक ही मामला दर्ज किया गया है. इससे सवाल उठता है कि क्य पूरे जिले में साल में केवल एक ही बाल विवाह हुआ है या फिर पुलिस ने अनदेखी की है.

बाल विवाह रोकने के लिए फौज?
बाल विवाह प्रतिषेध नियम नियमों में बाल विवाह रोकने के लिए जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, पटवारी, एसडीएम, उपाधीक्षक, पुलिस निरीक्षक, ग्राम सेवक, सरपंच आदि पर बाल विवाह रोकने और जागरुकता की जिम्मेदारी है. नियम के तहत बाल विवाह कराने वाले माता-पिता, भाई-बहन, परिवार, बाराती, सेवा देने वाले जैसे टेंट हाउस, प्रिंटर्स, ब्यूटी पॉर्लर, हलवाई, मैरिज गार्डन, घोड़ी वाले, बैंड बाजे वाले, कैटर्स, धर्मगुरु, पंडित, समाज मुखिया आदि पर कार्रवाई हो सकती है. बाल विवाह करने पर संबंधितों को दो साल की सजा और एक लाख रुपए जुर्माना तय है.

ये हुए गिरफ्तार, सजा नहीं 
जानकारी के अनुसार, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत बनाए गए 46 केसों में 57 माता-पिता तथा 96 अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है.

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