राजस्थान में भी घोषित होगा मुख्यमंत्री उम्मीदवार! गुजरात-हिमाचल में चेहरा घोषित होने के बाद जगी उम्मीदें
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राजस्थान में भी घोषित होगा मुख्यमंत्री उम्मीदवार! गुजरात-हिमाचल में चेहरा घोषित होने के बाद जगी उम्मीदें

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी इस बार भी पूरी तैयारी से चुनाव लड़ रही है और सरकार बनाने का दावा भी किया जा रहा है.

राजस्थान में भी घोषित होगा मुख्यमंत्री उम्मीदवार! गुजरात-हिमाचल में चेहरा घोषित होने के बाद जगी उम्मीदें

Rajasthan Politics : गुजरात में भारतीय जनता पार्टी इस बार भी पूरी तैयारी से चुनाव लड़ रही है और सरकार बनाने का दावा भी किया जा रहा है. इधर केन्द्रीय गृह मन्त्री और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया है कि गुजरात की सत्ता में लौटने पर बीजेपी एक बार फिर भूपेन्द्र पटेल को ही मुख्यमन्त्री बनाएगी.

गुजरात चुनाव में पार्टी की तरफ़ से भूपेन्द्र पटेल को चेहरा बनाये जाने का असर पड़ोसी राज्य पर भी दिख रहा है. अभी तक चेहरा विहीन चुनाव की चर्चाओं के बीच राजस्थान बीजेपी के नेताओं के चेहरे भी गुजरात बीजेपी की घोषणा से खिल गए हैं. पार्टी के नेताओं का मानना है कि जब पार्टी गुजरात में भूपेन्द्र पटेल और हिमाचल में जयराम ठाकुर को चेहरा बनाकर चुनाव में उतरी है तो राजस्थान में भी चेहरा तो घोषित किया ही जाएगा. अब अगले साल होने वाले चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं की आस जगी है तो नेता अपना चेहरा चमकाने भी जुट गए हैं.

यूपी से शुरू हुआ पार्टी में नया टेंड्र 

अपने आपको 'पार्टी विथ द डिफ्रेन्स' बताने वाली भाजपा हर बार अलग तरह की रणनीति अपनाकर खुद को दूसरे रजानीतिक दलों से अलग बता रही है, तो साथ ही विपक्ष को चौंका भी रही है. कभी हिमाचल में कांग्रेस की तरफ़ से फेस घोषित नहीं करने पर विपक्षी पार्टी को चुनाव में 'बिना दूल्हे की बारात' बताकर घेरने वाली बीजेपी भी पिछले दिनों इसी राह पर चलने का मन बनाती दिख रही थी. लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का चेहरा मुख्यमन्त्री के पद के लिए आगे रखकर जीत का स्वाद चखने वाली पार्टी अपनी रणनीति इस तरह बदलती है कि सामने वाले को ज्यादा मौका नहीं मिले. यही कारण है कि पहले हिमाचल में जयराम ठाकुर को भावी मुख्यमन्त्री का चेहरा घोषित करने वाली बीजेपी ने अब गुजरात चुनाव के लिए भी भूपेन्द्र पटेल का चेहरा आगे कर दिया है.

 साठ वर्षीय गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के नाम के ऐलान के साथ ही दूसरे प्रदेशों में भी बीजेपी नेताओं की बांछे खिल गई हैं. नेताओं को इस बात की आस है कि अब तक बीजेपी मुख्यमन्त्री का चेहरा चुनाव के नतीजों से पहले घोषित किये बिना ही चुनाव में जाती थी. ऐसे नोताओं को लगता है कि जब दूसरे राज्यों में चेहरा घोषित हो रहा है तो संभवतया राजस्थान में भी ऐसा ही कुछ होगा.

गुजरात के फ़ैसले से राजस्थान में बीजेपी नेताओं के चेहरे खिलें

बीजेपी के इस ऐलान का सबसे बड़ा असर तो राजस्थान में देखा जा सकता है. गुजरात के पड़ौसी राज्य में अभी तक कमल निशान और मोदी के चेहरे पर चुनाव में जाने की बात कर रही पार्टी के नेताओं में इस बात की आस जगी है कि अगर गुजरात और हिमाचल में पार्टी किसी चेहरे को पूर्व घोषित करते हुए चुनाव में जा सकती है तो राजस्थान में ऐसा क्यों नहीं हो सकता. बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि राजस्थान में भी चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ने से फायदा होगा.

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राजस्थान बीजेपी में कई चेहरे हैं दावेदार

दरअसल राजस्थान में भी पार्टी के कई नेता खुद को मुख्यमन्त्री पद के लिए भावी दावेदार मान रहे हैं तो कई नेताओं के समर्थक अपनी पसंद का नारा लगाते हुए अपने नेता को भावी मुख्यमन्त्री के रूप में देखने की मंशा जताते रहे हैं. राजस्थान बीजेपी में इस अनार के कई बीमार हैं. पार्टी में आठ से दस चेहरे ऐसे हैं जो मुख्यमन्त्री पद की दौड़ में शामिल हैं. हालांकि इनमें से अधिकांश यह भी जानते हैं कि अब प्रदेश की बड़ी कुर्सी के मामले में बीजेपी का कोई भी फ़ैसला सिर्फ और सिर्फ दिल्ली दरबार की मंशा पर ही निर्भर करता है.

उत्तर प्रदेश-हिमाचल-गुजरात के समान है. राजस्थान या उनसे अलग राजस्थान बीजेपी में भी नेता हिमाचल और गुजरात में हुए फ़ैसलों को लेकर उत्साहित तो हैं और उन्हें यह आस है कि राजस्थान में भी पार्टी ऐसा कोई फ़ैसला करेगी. लेकिन साथ ही कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि राजस्थान की स्थिति उत्तर प्रदेश-हिमाचल और गुजरात से कुछ अलग है. दरअसल इस पक्ष के लोगों का तर्क यह है कि मौजूदा चुनाव और इससे पहले के जिन चुनावों में पार्टी ने सीएम का चेहरा घोषित किया उनमें से अधिकांश ऐसे राज्य थे, जहां बीजेपी पहले से ही सत्ता में थी. ऐसे में मौजूदा मुख्यमन्त्री को सीएम नहीं बनाने की बात कहने पर वोटर्स के बीचे गलत मैसेज जा सकता था.

हालांकि चेहरा घोषित करने से क्या नुकसान हो सकता है. इस पर इन लोगों के पास ज्यादा तर्क नहीं है. हां, इतना ज़रूर कहा जाता है कि कोई एक चेहरा आगे करने पर कुर्सी के दूसरे दावेदार पार्टी को कमज़ोर कर सकते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि अगर कुछ दावेदारों द्वारा चुनाव में पार्टी को कमज़ोर करने की आशंका है, तो फिर संगठन कहा हैं और दूसरा सवाल यह कि अगर संगठन है तो फिर कुछ लोगों द्वारा पार्टी को कमज़ोर किये जाने की आशंका क्यों है?

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