Republic Day 2024 : राजस्थान के धौलपुर जिले के छोटे से कस्बे बाड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान में पीछे नहीं रहा है. धौलपुर बाड़ी के तीन स्वतंत्रता सेनानी, छोटी-सी उम्र में अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे.
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Republic Day 2024 : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...ऐसे में 26 जनवरी गणतंत्र दिवस हो या 15 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस. ऐसे में इन अवसरों पर देश को आजादी दिलाने वाले वीर सेनानियों को जरूर याद किया जाता है और इनका जिक्र भी होता है.
आज देश उन्नति के शिखर पर अग्रसर है लेकिन देश की आजादी में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भूलता जा रहा है लेकिन देश की आजादी हो या आजादी के बाद संविधान की स्थापना का पर्व गणतंत्र दिवस.
हर अवसर पर ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जाना चाहिए. देश में बहुत से स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं जिनके बलिदान की बदौलत ही आज हम स्वतंत्र भारत में और उन्नत भारत में लगातार शिखर के मार्ग पर अग्रसर है.
पूरे देश में धौलपुर जिले के छोटे से कस्बे बाड़ी भी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान में पीछे नहीं रहा है. ऐसे में 75 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर बाड़ी सहित जिले के लोगों को ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से परिचय और इतिहास की जानकारी भी होनी चाहिए.
इसको लेकर हमने पंचायत समिति के शहीद स्मारक पर लिखे इन सेनानियों के नामो को लेकर जब उनके गांव में जाकर जानकारी करनी चाही तो आजाद हिंद फौज और चंद्रशेखर आजाद के साथ काम करने वाले दो वीर स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी मिली.
साथ में रहल गांव के स्वतंत्रता सेनानी टुंडाराम पुत्र जगराम के परिजनों से भी संपर्क करने का प्रयास किया. बाड़ी के सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी मजबूत सिंह उर्फ मंगल सिंह पुत्र पहाड़ सिंह को लेकर जब जानकारी की गई तो शहर के बुजुर्ग शिक्षक एवं मजबूत सिंह के संपर्क में रहे देवीप्रसाद दुबे ने बताया कि मजबूत सिंह महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के गुप्तचर संस्था में काम करते थे और गुप्त सूचनाओं को चंद्रशेखर तक पहुंचाते थे.
ऐसे में जानकारी मिलने पर अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार कर लिया और उन्नाव की जेल में डाल दिया. जहां करीब 2 वर्ष तक उनको कठोर सजा दी गई लेकिन उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने की अपनी हठ को नहीं छोड़ा. बाद में जब देश आजाद हुआ तो उनको स्वतंत्रता सेनानी बनाया गया.
मजबूत सिंह मुख्य रूप से दतिया एमपी के रहने वाले थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे बाड़ी आ गए और डांग के कुदिन्ना में संत पंचम गिरी बाबा के शिष्य बन गए. इस दौरान उनका नाम मंगल सिंह उर्फ मंगल बाबा हो गया. इस दौरान वे आध्यात्मिक की और चले गए और सन 1975 में जब देश में आपातकाल लगा तो आरएसएस से जुड़े शिक्षक और अन्य लोगों को जेल में डाल दिया गया.
इस दौरान वे देवी प्रसाद दुबे और अन्य लोग उनके संपर्क में आए. इस पर उन्होंने सरकार द्वारा दी गई उनकी अपनी पंचम गिरी की बगिया को बच्चों की पढ़ाई के लिए दान करने का संकल्प ले लिया और शहर के कुछ समाजसेवियों को उक्त बगिया का भार सौंप दिया.
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आज मजबूत सिंह उर्फ मंगल सिंह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके इतिहास को आमजन तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है. जिनकी बगिया में आज आदर्श विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल चल रहा है और उनका चबूतरा एवं स्मारक भी बना हुआ है.
वहीं दूसरी ओर बाड़ी शहर के करेरुआ गांव निवासी सरदार चंदन सिंह पुत्र बेला सिंह के परिजनों से जब उनके संदर्भ में जानकारी की गई तो उन्होंने बताया कि उनके बुजुर्ग बताते हैं कि उनके बाबा सरदार चंदन सिंह सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हुए और रंगून एवं वर्मा की लड़ाईया में उन्होंने हिस्सा लिया.
उन्हें लड़ाई के दौरान मृत घोषित कर दिया गया. इस दौरान वे अपने कुछ साथियो के साथ 5 महीने तक जंगलों में भटकते रहे और घास,पत्ती खाकर अपना जीवन यापन किया. बाद में जब युद्ध शांत हुआ और दोनों देशों के बीच संधि हुई तो उन्हें भारत लाया गया.
इस दौरान उनके परिवरीजन उन्हें मृत मान चुके थे तो अंतिम अरदास भी कर चुके थे लेकिन बाद में जब पुलिस की सिपाहियों ने आकर गांव में उनके बुजुर्गों को उनके जिन्दा होने की जानकारी दी तो पूरे परिवार सहित गांव में खुशी का ठिकाना नहीं रहा और सरदार चंदन सिंह को बैंडबाजो के साथ गांव में लाया गया.
इस दौरान चंदन सिंह को आजाद हिंद फौज के साथ भारत की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े होने के चलते स्वतंत्रता सेनानी दो पेंशन दी गई. आज चंदन सिंह की नवीन पीढ़ी के परि जनों का कहना है कि सरदार चंदन सिंह ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना बहुत कुछ किया.
बाड़ी के रहल गांव निवासी तीसरे स्वंतत्रता सेनानी टुंडाराम पुत्र जगराम गुर्जर के परिजनों से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. फिर भी हम तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को सलाम करते हैं और प्रयास यही रहेगा कि ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन गाथाएं जीवन भर गाई जाए और कम से कम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर अवश्य उन्हें याद किया जाए.