Bhilwara Devnarayan Gaushala: भीलवाड़ा के कोटडी कस्बे की देवनारायण गोशाला ने आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ाया और ये फैसला सही भी रहा. आपको बता दें कि देसी गाय के गोबर से बनी राखियों की खूब चर्चा है.गुजरात और पुणे से ऑर्डर मिल रहे हैं.
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Bhilwara Devnarayan Gaushala: भीलवाड़ा के कोटडी कस्बे की देवनारायण गोशाला ने आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ाए हैं.देसी गाय के गोबर से बनी राखियों की खूब चर्चा है.गोशाला में पिछले एक महीने से देसी गायों के गोबर से स्वदेशी इको फ्रेंडली फैंसी राखियां बनाई जा रही हैं.यह राखियां काफी आकर्षक हैं. रक्षाबंधन नजदीक होने से जिले में ही नहीं बल्कि कई शहरों में इनकी डिमांड है.
राजस्थान के अलवर, कोटा, ब्यावर के साथ गुजरात व पुणे से भी ऑर्डर मिले हैं.यहां सप्लाई दे चुके हैं. रक्षाबंधन तक 10 हजार राखियां तैयार करने का लक्ष्य है.गोमय पांच राखियों का एक पैकेट 50 रुपए का है.
चित्तौड़ प्रांत गो सेवा संयोजक भंवर लाल भांबी ने बताया अखिल भारतीय स्तर पर होने वाली बैठकों में नवाचार पर चर्चा हुई. गोशाला को स्वावलंबी बनाने के लिए गाय के गोबर से राखियां बनाना 25 जुलाई से शुरू किया. शुरुआत दो मजदूरों के साथ की मांग बढ़ने पर अब गौशाला में एक दर्जन कारीगर राखियां बना रहे हैं.
राखियां बनाने के लिए गोबर, ऊनी धागा, रेशमी फीत व रंग-बिरंगे सितारों का उपयोग किया जा रहा है.बच्चों के लिए राखियां आकर्षण बन रही हैं. प्लास्टिक मुक्त होने के साथ ही यह एंटी रेडिएशन का काम करती हैं. शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। टूटने पर खाद बन जाती है.
गोबर से दीपक, शैंपू, ईंटें,चाबी के छल्ले, खाद और कीटनाशक भी बनाया.
गाय का गोबर से अब तक कंडे ही बनाए जाते रहे हैं.जबकि, गोवर से कई प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं. इनकी फिनिशिंग ऐसी है कि बनने के बाद पता ही नहीं चलता कि ये गोबर से बने हैं, देवनारायण गोशाला ने दीपावली पर गोमय दीपक, शैंपू, साबुन, मंजन, गोअर्क, गोनाइल, बाम, अमृतधारा, गाय के गोबर से ईट निर्माण, चाबी के छल्ले, दरवाजे व खिड़कियों पर लगने वाली बंदनवार बनाए हैं. केंचुआ खाद, कीट नियंत्रक, पौधों की वृद्धि के लिए भीम टॉनिक तैयार किए.
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