Rajasthan Election: वो सीट जहां गहलोत की महिला मंत्री को वसुंधरा के करीबी से चुनौती, BJP भंवर फंसी!
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Rajasthan Election: वो सीट जहां गहलोत की महिला मंत्री को वसुंधरा के करीबी से चुनौती, BJP भंवर फंसी!

Bansur Alwar Vidhansabha Seat: बानसूर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की शकुंतला रावत विधायक है. भाजपा से निष्कासित रोहिताश शर्मा और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश यादव ने इस सीट को दिलचस्प बना रखा है.

Rajasthan Election: वो सीट जहां गहलोत की महिला मंत्री को वसुंधरा के करीबी से चुनौती, BJP भंवर फंसी!

Bansur Alwar Vidhansabha Seat: राजस्थान के अलवर का बानसूर विधानसभा क्षेत्र कई मायनों में कांग्रेस और भाजपा के लिए अहम है. इस सीट से मौजूदा वक्त में कांग्रेस की शकुंतला रावत विधायक है. शकुंतला रावत मौजूदा वक्त में गहलोत मंत्रिमंडल में औद्योगिक मंत्रालय जैसा अहम जिम्मा संभाल रही हैं. वहीं भाजपा से निष्कासित रोहिताश शर्मा और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश यादव ने इस सीट को दिलचस्प बना रखा है.

खासियत

बानसूर विधानसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड बानसूर के पहले विधायक बद्री प्रसाद शर्मा के नाम है, बद्री प्रसाद शर्मा ने पहला चुनाव 1951 में लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 1957, 1965 का उप चुनाव, 1967, 1972 और 1980 में भी विधायक चुने गए. इसके बाद तीन बार जीत का रिकॉर्ड जगत सिंह दायमा और रोहिताश शर्मा के नाम रहा है. वहीं इस सीट से मौजूदा विधायक शकुंतला रावत मोदी लहर में भी जीतने में कामयाब रही थी.

जातीय समीकरण

बानसूर विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी गुर्जर समुदाय की है, जबकि इसके बाद यादव और राजपूत मतदाताओं की संख्या अत्यधिक है. इस सीट पर जीत और हार प्रमुख तौर पर यही तीन जातियां तय करती हैं.

2023 का विधानसभा चुनाव

2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से 15 दावेदार सामने आए हैं. हालांकि इसमें सबसे मजबूत दावेदार यहां से मौजूदा विधायक शकुंतला रावत है. वहीं बीजेपी में भी टिकट दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त है. पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़ चुके देवी सिंह शेखावत भी भाजपा से टिकट मांग रहे हैं, तो वहीं अगर पार्टी से निष्कासित पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा की पार्टी में वापसी होती है तो वह भी एक मजबूत दावेदार साबित होंगे. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश यादव भी एक बार फिर चुनाव में अपनी किस्मत आसमाने के लिए तैयार हैं.

बानसूर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1951

1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बद्री प्रसाद गुप्ता को चुनावी मैदान में उतरा तो वहीं कृषकार लोक पार्टी से मानसिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में बानसूर की जनता का साथ बद्री प्रसाद को मिला और उन्होंने 9,727 मतों से जीत हासिल की और उसके साथ ही बद्री प्रसाद बानसूर से पहले विधायक चुने गए.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1957

1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बद्री प्रसाद गुप्ता पर एक बार फिर विश्वास जताया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर नारायण सिंह से उन्हें सबसे कड़ी टक्कर मिली. हालांकि चुनाव में बद्री प्रसाद एक तरफा जीत हासिल करने में कामयाब हुए और उन्हें 11,175 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर बद्री प्रसाद गुप्ता पर ही दांव खेला तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार सतीश शर्मा बने. इस चुनाव में सतीश शर्मा ने बद्री प्रसाद गुप्ता को पटखनी दे दी और 18,397 मतों के साथ जीत हासिल की, जबकि बद्री प्रसाद गुप्ता 12,148 मत ही हासिल कर सके.

उपचुनाव 1965

1965 में बानसूर में विधानसभा चुनाव कराने पड़े. कांग्रेस ने एक बार फिर बद्री प्रसाद गुप्ता पर ही दांव चला तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार रामजीलाल से कड़ी टक्कर मिली. चुनावी नतीजे आए तो बद्री प्रसाद गुप्ता एक बार फिर एकतरफा जीत हासिल करने में कामयाब हुए और उन्हें 20,065 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ जबकि रामजीलाल 10,712 मत ही हासिल कर सके.

चौथा विधानसभा चुनाव 1967

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बद्री प्रसाद का टिकट काटकर रामजीलाल को उम्मीदवार बनाया तो बद्री प्रसाद बगावत पर उतर आए और निर्दलीय ही पर्चा भर दिया. इस चुनाव में बद्री प्रसाद एक बार फिर बानसूर के किंग साबित हुए और उन्हें 13,248 मत मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार 8,907 मत ही हासिल कर सके और उसके साथ ही बद्री प्रसाद की एक बार फिर जीत हुई.

पांचवा विधानसभा चुनाव 1972

1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी गलती सुधारी और बद्री प्रसाद को एक बार फिर टिकट दिया तो उन्हें विश्व हिंदू परिषद से रामकरण सिंह की ओर से चुनौती मिली. इस चुनाव में रामकरण सिंह 19,756 मत हासिल करने में कामयाब हुए. हालांकि उनका यह समर्थन उन्हें जीत नहीं दिल पाया और बद्री प्रसाद 20,724 मतों के साथ एक बार फिर जीतने में कामयाब हुए.

छठा विधानसभा चुनाव 1977

1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें और बढ़ गई थी. कांग्रेस ने भौंरा को टिकट दिया तो जनता पार्टी की ओर से हरि सिंह यादव चुनावी मैदान में उतरे. वहीं राम कंवर और रामजीलाल समेत कुल 6 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में जनता पार्टी के हरि सिंह यादव जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 19,986 मत हासिल हुए जबकि कांग्रेस उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे और निर्दलीय उम्मीदवार राम कंवर दूसरे और रामजीलाल तीसरे स्थान पर रहे.

सातवां विधानसभा चुनाव 1980

1980 के विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने बद्री प्रसाद को टिकट दिया तो वहीं जनता पार्टी सेकुलर की ओर से जगत सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में जगत सिंह 15,107 मत हासिल करने में कामयाब हुए तो वहीं कांग्रेस के बद्री प्रसाद 16,639 मतों के साथ विजयी हुए.

आठवां विधानसभा चुनाव 1985

1985 के विधानसभा चुनाव में जगत सिंह दायमा को लोकदल ने टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से रोहिताश शर्मा चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रोहिताश शर्मा को 21,077 मत हासिल हुए तो वहीं जगत सिंह दायमा 22,904 मतों से विजई हुए.

9वां विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला जगत सिंह दायमा बनाम रोहिताश शर्मा था. हालांकि इस चुनाव में जगत सिंह को जनता दल ने टिकट दिया, जबकि रोहिताश शर्मा कांग्रेस से एक बार फिर टिकट लाने में कामयाब हुए. इस चुनाव में रोहिताश शर्मा को 31,061 मत हासिल हुए तो वहीं जगत सिंह दायमा 43,158 मतों के साथ विजयी हुए.

दसवां विधानसभा चुनाव 1993

1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रोहिताश शर्मा का टिकट काटा और कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में रमा पायलट के सामने रोहिताश शर्मा बगावत पर उतर आए और उन्होंने निर्दलीय ही पर्चा भर दिया. चुनावी नतीजे आए तो रोहिताश शर्मा दो बार चुनावी शिकस्त पाने के बाद विजयी हुए और उन्हें 54,123 मत हासिल हुए जबकि रमा पायलट 29,437 मत ही हासिल कर सकीं.

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11वां विधानसभा चुनाव 1998

1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राम सिंह यादव को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से रोहिताश शर्मा चुनावी मैदान में उतरे, जबकि जगत सिंह दायमा बसपा का टिकट लेकर आए. इस चुनाव में जगत सिंह दायमा की जीत हुई और उन्हें 30,799 मत हासिल हुए जबकि रोहिताश शर्मा 30,361 पदों के साथ दूसरे और राम सिंह यादव 16,982 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.

उपचुनाव 2002

2002 में एक बार फिर बानसूर में उपचुनाव हुए. इस चुनाव में बीजेपी ने रोहिताश शर्मा को ही टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से सरदार राम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में सरदार राम को  44,632 मत मिले तो वहीं रोहिताश शर्मा 47,241 मतों से विजयी हुए.

12वां विधानसभा चुनाव 2003

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और महिपाल सिंह यादव को टिकट दिया, जबकि भाजपा की ओर से एक बार फिर रोहिताश शर्मा चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में रोहिताश शर्मा को 36,070 मत हासिल हुए तो वहीं कांग्रेस के महिपाल सिंह यादव 41,701 मतों के साथ विजई हुए.

13वां विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव में परिसीमन के चलते स्थितियां बदल चुकी थी. इस चुनाव में बीजेपी ने फिर से रोहिताश शर्मा को ही टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस की ओर से शकुंतला रावत चुनावी मैदान में उतरी. इस चुनाव में शकुंतला रावत को 28,382 मत मिले तो वहीं 41,361 मतों के साथ रोहिताश शर्मा एक बार फिर चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

14वां विधानसभा चुनाव 2013

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से फिर शकुंतला रावत को ही टिकट मिला तो वहीं बीजेपी से रोहिताश शर्मा एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रोहिताश शर्मा मोदी लहर पर सवार थे, लेकिन इसके बावजूद जीतने में कामयाब ना हो सके और शकुंतला रावत 71,328 मतों से विजई हुई.

15वां विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में शकुंतला रावत को कांग्रेस ने फिर से चुनावी मैदान में उतरा तो वहीं भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदला और मोहित यादव को टिकट दिया जबकि निर्दलीय के तौर पर देवी सिंह शेखावत चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुकेश यादव ने चुनाव में उतरकर मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश की. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो शकुंतला रावत 17,920 मतों के साथ बड़े अंतर के साथ जितने में कामयाब हुई, जबकि देवी सिंह शेखावत दूसरे बीजेपी के मोहित यादव तीसरे और समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे मुकेश यादव चौथे स्थान पर रहे. हालांकि चुनाव में बसपा और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसी कई अन्य पार्टियों भी चुनावी मैदान में थी, लेकिन उन्हें नोटा से भी कम मत हासिल हुए.

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