2 बार वोटिंग के बाद लोकसभा में आया 'एक देश एक कानून' बिल, जानिए क्यों बेचैन है विपक्ष?
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2 बार वोटिंग के बाद लोकसभा में आया 'एक देश एक कानून' बिल, जानिए क्यों बेचैन है विपक्ष?

One Nationa One Election Bill: एक देश एक चुनाव से जुड़ा बिल मंगलवार को संसद में पेश किया गया. जिसे दो बार वोटिंग के बाद स्वीकर कर लिया गया है. हालांकि विपक्ष ने बिल पेश होने से पहले ही विरोध करना शुरू कर दिया. कांग्रेस, सपा, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना समेत तमाम पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया. जानिए इन पार्टियों बिल को लेकर क्या कहा?

2 बार वोटिंग के बाद लोकसभा में आया 'एक देश एक कानून' बिल, जानिए क्यों बेचैन है विपक्ष?

One Nationa One Election Bill: 'वन नेशनल-वन इलेक्शन' यानी 'एक देश एक चुनाव' कराने से संबंधित बिल मंगलवार को संसद के निचले सदन में पेश कर दिया गया है. कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने यह बिल लोकसभा में पेश किया है. बिल को लेकर लोकसभा में दो बार वोटिंग हुई. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग और उसके बाद कागज की पर्चियों की गिनती के बाद, 269 सदस्यों के पक्ष में और 198 के विरोध में विधेयक पेश किए गए. यह पहली बार था जब नए संसद भवन में लोकसभा में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया. बाद में कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक के लिए एक घंटे से अधिक समय के लिए स्थगित कर दी गई.

हालांकि विपक्ष इस बिल के विरोध पर अड़ा हुआ है. बिल पेश होने से पहले ही विपक्षी पार्टियों (कांग्रेस टीएमसी और आदि) ने इस बिल के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया था. विपक्षी पार्टियां इस बोल को संविधान विरोधी बताते हुए कई तरह की बातें कर रही हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर विपक्ष किन दलीलों की बुनियाद पर इस बिल का विरोध कर रहा है. साथ ही कुछ नेता इस बिल को पहले जेपीसी के पार चर्चा के भेजने की बात कर रहे हैं. जेपीसी से संबंधित बात रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कैबिनेट में चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने इस बिल को जेपीसी के पास भेजने की बात कही थी. 

'JPC के पास भेजना चाहते थे पीएम मोदी'

शाह ने कहा, जब एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को मंजूरी के लिए कैबिनेट में लाया गया था, तो पीएम मोदी ने कहा था कि इसे विस्तृत चर्चा के लिए जेपीसी के पास भेजा जाना चाहिए. अगर कानून मंत्री इस बिल को जेपीसी के पास भेजने के लिए तैयार हैं, तो इसे पेश करने पर चर्चा समाप्त हो सकती है. शाह की टिप्पणी का समर्थन करते हुए, केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (एमओएस) अर्जुन राम मेघवाल ने प्रस्ताव दिया कि विधेयक पर विस्तृत चर्चा की सुविधा के लिए एक जेपीसी का गठन किया जाना चाहिए. विपक्षी सदस्यों द्वारा उठाए गए बिंदुओं का जवाब देते हुए, मेघवाल ने कहा कि उच्च स्तरीय समिति पहले ही प्रस्ताव पर व्यापक चर्चा कर चुकी है. 

'लोकतंत्र और जवाबदेही को खत्म करना इस बिल का मकसद'

मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कांग्रेस सांसद जय राम रमेश ने कहा कि हम इस बिल का विरोध करेंगे. उन्होंने कहा,'कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को पूरी तरह से और व्यापक रूप से खारिज करती है. हम इसे पेश करने का विरोध करेंगे.' कांग्रेस सांसद ने आगे कहा,'हम इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की मांग करेंगे. हमारा मानना ​​है कि यह असंवैधानिक है और यह मूल ढांचे के खिलाफ है और इसका मकसद इस देश में लोकतंत्र और जवाबदेही को खत्म करना है.'

'सदन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है यह संशोधन'

विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान के बुनियादी पहलू हैं जिसमें संशोधन इस सदन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. उन्होंने कहा कि यह विधेयक बुनियादी ढांचे पर हमला है और इस सदन के विधायी अधिकार क्षेत्र से परे है. उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है और ऐसे में केंद्रीकरण की यह कोशिश पूरी तरह संविधान विरोधी है. उन्होंने आग्रह किया कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए. 

'EC को मिलेगी असीमित असंवैधानिक ताकत'

लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि ये दोनों विधेयक संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर हमला हैं. उनका कहना था कि चुनाव आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निर्धारित हैं और अब उसे बेतहाशा ताकत दी जा रही है. गोगोई ने कहा कि इस बिल से चुनाव आयोग को असंवैधानिक ताकत मिलेगी.

क्या समाजवादी पार्टी की दलील?

बिल का विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने कहा कि दो दिन पहले सत्तापक्ष ने संविधान पर चर्चा के दौरान बड़ी-बड़ी कसमें खाईं और अब दो ही दिन के अंदर संविधान के मूल ढांचे और संघीय ढांचे को खत्म करने के लिए यह विधेयक लाए हैं. उन्होंने दावा किया,'यह संविधान की मूल भावना को खत्म करने की कोशिश है और तानाशाही की तरफ ले जाने वाला कदम है.' समाजवादी पार्टी सदस्य ने कटाक्ष करते हुए कहा कि जो लोग दो राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ नहीं करा पाते हैं, वे पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात कर रहे हैं. यादव ने आगे कहा कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए. 

'केंद्र के अधीन नहीं होती विधानसभाएं'

तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और यह ‘अल्टा वायरस’ है. उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया जा सकता. बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभाएं केंद्र और संसद के अधीनस्थ नहीं होती हैं, यह बात समझने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से संसद को कानून बनाने का अधिकार है, उसी तरह विधानसभाओं को भी कानून बनाने का अधिकार है. 

'कोई भी पार्टी हमेशा सत्ता में नहीं रहती'

तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह राज्य विधानसभाओं की स्वायत्ता छीनने की कोशिश हो रही है. उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहेगा, एक दिन सत्ता बदल जाएगी. बनर्जी ने कहा, 'यह चुनावी सुधार नहीं है, एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए लाया गया है.' 

शिवसेना और IUMAL का तर्क

आईयूएमएल के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले की कोशिश है. शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह बिल संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के कामकाज की भी जांच-परख होनी चाहिए और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जो हुआ, उसे देखते हुए यह जरूरी हो गया है. 

DMK ने कहा जेपीसी को भेजें बिल

द्रमुक नेता टीआर बालू ने सवाल किया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी? इस पर बिरला ने कहा,'मैं अनुमति नहीं देता, सदन अनुमति देता है.ट बालू ने कहा,'मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस बिल को जेपीसी के पास भेजा जाए और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए.'

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