Mughal History: भारी हथियारों के मामले में खुद मुगल बादशाह इस शख्स को नहीं दे पाए टक्कर! कांपते थे योद्धा
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Mughal History: भारी हथियारों के मामले में खुद मुगल बादशाह इस शख्स को नहीं दे पाए टक्कर! कांपते थे योद्धा

Mughal Empire: हल्दीघाटी के युद्ध (Battle Of Haldighati) में इस पराक्रमी शख्स की वीरता देखने को मिली थी. 30 साल तक मुगल बादशाह अकबर (Akbar) इस शख्स को बंदी बनाने की कोशिश करता रहा, लेकिन सफल नहीं हो सका.

Mughal History: भारी हथियारों के मामले में खुद मुगल बादशाह इस शख्स को नहीं दे पाए टक्कर! कांपते थे योद्धा

Battle Of Haldighati: मुगलों (Mughals) ने यूं तो 300 से ज्यादा साल तक भारत में शासन किया लेकिन मुगल काल (Mughal Era) में एक ऐसा शख्स भी था जिससे बहादुर से बहादुर योद्धा भी कांपते थे. इस शख्स के पास सबसे भारी भाला था. भाले के अलावा उसके शरीर पर जितने भी हथियार होते थे उनका कुल वजन 200 किलोग्राम से ज्यादा होता था. दिलचस्प बात है कि दूसरे योद्धा तो दूर खुद मुगल बादशाह अकबर (Akbar) भी इस वीर शख्स को भारी हथियारों से लड़ने के मामले में टक्कर नहीं दे पाए. ये वो शख्स था जिसने मुगलों के सामने झुकना कबूल नहीं किया. राज्य छोड़कर जंगलों में भटका. सेना खड़ी की और फिर मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया.

इस साहसी के दुश्मन भी थे कायल

बता दें कि मुगल काल के इस वीर शख्स को जब मुगल बादशाह अकबर की तरफ से हाथ मिलाने का पैगाम आया था तो उसने साफ मना कर दिया था. कहते हैं कि इस वीर शख्स को बंदी बनाने का अकबर और उसकी मुगल सेना ने कई बार प्रयास किया था लेकिन वह कभी कामयाब नहीं हो पाया था. दुश्मन भी इस वीर शख्स के साहस के कायल थे.

कौन था ऐसा पराक्रमी?

जान लें कि ये वीर और साहसी योद्धा कोई और नहीं बल्कि महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) थे. महाराणा प्रताप युद्ध में भारी हथियारों का इस्तेमाल करते थे. बताया जाता है कि महाराणा प्रताप अपने शरीर पर करीब 208 किलोग्राम के हथियारों का वजन लेकर लड़ते थे. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलोग्राम था. उनकी छाती का जो कवच था उसका वजन 72 किलोग्राम था.

मुगलों से लड़ा हल्दीघाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप के भाले, ढाल, कवच और दो तलवारों का वजन जोड़कर करीब 208 किलोग्राम होता था. जानकारी के मुताबिक, महाराणा प्रताप की लंबाई लगभग 7 फीट 5 इंच थी. महाराणा प्रताप वो योद्धा थे जो मुगलों से कभी नहीं डरे. उन्होंने घास की रोटी खाईं लेकिन कभी मुगलों से समझौता नहीं किया. 1576 में हुए हल्दीघाटी के युद्ध में उन्होंने 85 हजार सैनिकों की मुगलों की विशाल सेना के आगे अपनी महज 20 हजार सैनिकों की फौज उतार दी थी और कड़ी टक्कर दी थी.

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