Mainpuri Bypoll: मैनपुरी में न हाथ का साथ, न हाथी की सवारी, क्या इस बारी इनका वोट पड़ेगा सब पर भारी!
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Mainpuri Bypoll: मैनपुरी में न हाथ का साथ, न हाथी की सवारी, क्या इस बारी इनका वोट पड़ेगा सब पर भारी!

Election 2022: राजनीतिक पंडितों की मानें तो मैनपुरी के चुनाव जातीय आधार पर ही लड़े गए हैं. उपचुनाव में भी मुद्दों या लहर से इतर सपा और भाजपा दोनों की निगाह जातीय समीकरण पर ही है. सपा का जोर जहां यादव, मुस्लिम के अलावा अन्य जातियों में सेंधमारी करने का है, तो बीजेपी ने भी इस पर ध्यान दिया है.

डिंपल यादव और रघुनाथ शाक्य

Mainpuri Bypoll Date: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मौत के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव 5 दिसंबर को होगा. सपा की गढ़ माने जानी वाली इस सीट पर मुलायम की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सपा प्रत्याशी हैं, जबकि बीजेपी की ओर से रघुनाथ शाक्य के मैदान में आने से यहां मुकाबला रोचक हो गया है. पर इस बार मैदान में कांग्रेस और बीएसपी के होने से दलित वोटर निर्णायक भूमिका में होंगे.

1996 में पहली बार जीते थे मुलायम सिंह यादव

मैनपुरी सीट से वर्ष 1996 में पहली बार सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे और जीत हासिल की थी. इसके बाद यहां सपा को कोई हरा नहीं सका. राजनीतिक पंडितों की मानें तो मैनपुरी के चुनाव जातीय आधार पर ही लड़े गए हैं. उपचुनाव में भी मुद्दों या लहर से इतर सपा और भाजपा दोनों की निगाह जातीय समीकरण पर ही है. सपा का जोर जहां यादव, मुस्लिम के अलावा अन्य जातियों में सेंधमारी करने का है, तो वहीं भाजपा ने शाक्य प्रत्याशी उतार कर दूर की गोटी फेंकी है. भाजपा की कोशिश शाक्य प्रत्याशी के सहारे क्षत्रिय, ब्राह्मण, लोधी और वैश्य वोट बैंक के साथ चुनावी वैतरणी पार करने की है.

बसपा ने हमेशा किया है अच्छा प्रदर्शन

अगर चुनावी आंकड़ों को देखें तो मैनपुरी में बसपा ने कई लोकसभा चुनाव लड़े, उसे जीत भले ही न मिली हो लेकिन उसका प्रदर्शन हमेशा अच्छा रहा है. अपने कोर वोटर की बदौलत वह दो नंबर पर भी रह चुकी है. इस उपचुनाव में बसपा भाग नहीं ले रही है, ऐसे में अब सपा और बीजेपी की नजर बसपा के कोर वोट बैंक पर है. जिस दल-प्रत्याशी को बसपा का वोट मिलेगा, उसका जीतना तय माना जा रहा है.

2009 में भी बसपा ने दलित वोट पर ही दी थी टक्कर

अगर वर्ष 2009 की बात करें तो लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा को दलित वोट के बल पर ही टक्कर दी थी. हालांकि उसे जीत नहीं मिल पाई, लेकिन बसपा प्रत्याशी विनय शाक्य को 2.19 लाख वोट मिले थे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी डॉ. संघमित्रा मौर्य ने 1.42 लाख वोट मुलायम के गढ़ में हासिल किए थे. 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन के कारण लोकसभा चुनाव मैनपुरी सीट पर नहीं लड़ा. 2019 यहां से सपा संरक्षक मुलायम सिंह 5,24,926 वोट पाकर चुनाव जीते थे. इतना अधिक वोट उस स्थित में मिला था जब सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे और भाजपा उम्मीदवार करीब 94 हजार वोट से हारा था. आज की स्थिति में जब बसपा और कांग्रेस चुनावी आखाड़े से बाहर हैं उस समय ऊंट किस करवट बैठेगा यह निश्चित ही दलित वोट तय करेगा.

एक्सपर्ट भी मानते हैं इस फैक्टर को

स्थानीय विश्लेषकों की मानें तो भाजपा जानती है कि दलित वोटर के सहारे नैया पार हो सकती है. इसी कारण उसने इस वोट बैंक को रिझाने के लिए सरकार के मंत्री असीम अरुण और सांसद रामशंकर कठेरिया को लगाया है. इसके साथ दलित वर्ग अन्य कई नेता भी इस वोट बैंक पर सेंधमारी के लिए लगे हैं. भाजपा के महामंत्री संगठन धर्मपाल खुद इस सीट पर फोकस कर रहे हैं. वह खुद इस सीट के लिए दो बार जा चुके हैं और बूथ लेवल तक मीटिंग कर चुके हैं. इसके अलावा हर छोटा बड़ा कार्यकर्ता पूरी ताकत से जुटा है.

सपा भी जुटी है दलित वोट बैंक साधन में

उधर सपा ने भी दलित वोट बैंक और शाक्य बिरादरी के वोटरों को रिझाने के लिए बसपा से आए कई बड़े नेता को मैदान में उतारा है, जो घूम-घूम कर सपा के पक्ष में माहौल बना सकें. मुस्लिम और यादव (एमवाई) के साथ दलित वोट बैंक को साधे रखने पर पार्टी का जोर है. दलित नेताओं को गांव-गांव डेरा डालने का निर्देश दिया गया है, लेकिन एक पुराने चले आ रहे मुहावरे की मानें तो दलित वोटर यादव के साथ जाने में संकोच करता है. अगर इस बार भी ऐसा होता है तो सपा के लिए काफी मुश्किल हो सकती है.

आंकड़ों से समझिए पूरा खेल

अगर राजनीतिक दलों के आंकड़ों को मानें तो पूरे लोकसभा एरिया में तकरीबन 17 लाख वोटर हैं. यादव मतदाता करीब 4.30 लाख हैं, जबकि शाक्य 2.80 लाख है. इसके बाद दलित वोट करीब 1.80 लाख हैं. दो लाख से ज्यादा ठाकुर, एक लाख 20 हजार ब्राम्हण हैं. एक लाख लोधी, 60 हजार मुस्लिम, 70 हजार वैश्य हैं. परिणाम कुछ भी हो लेकिन मुकाबला बड़ा रोचक होने वाला है.

जाटव वोट सबसे ज्यादा निर्णायक

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि मैनपुरी के उपचुनाव में इस बार सपा भाजपा की सीधी लड़ाई है. जातियों के समीकरण के हिसाब से देखें तो कोई किसी से कम नहीं है. सपा मुलायम की विरासत को बचाने के लिए लड़ रही है, तो भाजपा सीट जीतकर बढ़त लेना चाहती है. भाजपा जानती है कि अगर मैनपुरी सीट उनकी झोली में आ गई तो आने वाले समय में उनकी राह और भी आसान होगी. द्विवेदी कहते हैं कि यहां के समीकरण को देखें तो जाटव वोट निर्णायक भूमिका में है. इसीलिए दोनों दल इन्हे रिझाने में लगे हैं.

(इनपुट- IANS)

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