Maharashtra Political Crisis: बालासाहेब ठाकरे ने मुसलमानों को एंटी नेशनल बताया था. उन्होंने एक समारोह में मुसलमानों को 'हरा जहर' कहा था. बालासाहेब ने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ भी ‘पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ' अभियान चलाया था.
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Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र के मंत्री और शिवसेना के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की पार्टी को मुश्किल में खड़ा कर दिया है. शिंदे ने बगावती तेवर अपनाकर महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया है. शिवसेना से बगावत करने के बाद शिंदे ने खुद को सच्चा शिवसैनिक बताया. उन्होंने कहा कि वह बालासाहेब के पक्के शिवसैनिक हैं.
बगावती तेवर अपनाने के बाद शिंदे का पहला ट्वीट था- हम बालासाहेब के पक्के शिवसैनिक हैं. सत्ता के लिए कभी धोखा नहीं दिया और न कभी देंगे. शिंदे के ट्वीट के जवाब में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि जैसी शिवसेना बालासाहेब के समय थी, वैसी ही अब भी है. इसके बाद से ठाकरे गुट और शिंदे गुट के नेताओं में खुद को असली शिवसैनिक बताने की होड़ मची है.
60 के दशक में शिवसेना का हुआ गठन
शिवसेना सिर्फ पार्टी नहीं है, महाराष्ट्र के लोगों के लिए वह एक इमोशन है. 60 के दशक में इस पार्टी की शुरुआत हुई. मराठी लोगों के लिए बालासाहेब ठाकरे की पार्टी ने लड़ाई लड़ी. 60 के दशक में मुंबई में बड़े कारोबार पर गुजरातियों का कब्जा था. वहीं छोटे कारोबार में दक्षिण भारतीयों और मुस्लिमों की हिस्सेदारी ज्यादा थी. इसी समय एंट्री होती है बालासाहेब ठाकरे की. बालासाहेब मराठियों की आवाज उठाते हैं और 1966 में शिवसेना का गठन करते हैं.
मुंबई में उस समय मराठियों की आबादी लगभग 43% थी, लेकिन नौकरियाों में उनकी संख्या कम थी. उधर, 14 फीसदी आबादी वाले गुजरातियों का यहां बड़े बिजनेस के क्षेत्र में बोलबाला था. वहीं छोटे कारोबारों और नौकरियों में 9% की आबादी वाले दक्षिण भारतीयों का दबदबा था.
उस दौर में नौकरियों का अभाव था और बालासाहेब ठाकरे ने 1966 के मेनिफेस्टो में दावा किया कि दक्षिण भारतीय लोग मराठियों की नौकरियां छीन रहे हैं. उन्होंने मराठी बोलने वाले स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया.
दक्षिण भारतीयों के खिलाफ चलाया था अभियान
बालासाहेब ने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ ‘पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ' अभियान चलाया था. ठाकरे तमिल भाषा का उपहास करते हुए उन्हें ‘यंडुगुंडू’ कहते थे. बालासाहेब अपनी पत्रिका मार्मिक के हर अंक में उन दक्षिण भारतीय लोगों के नाम छापा करते थे जो मुंबई में नौकरी कर रहे थे और जिनकी वजह से स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल पा रही थी.
बालासाहेब ठाकरे का कहना था कि महाराष्ट्र में वहां के युवाओं के हितों की रक्षा सबसे जरूरी काम है. ठाकरे ने संगठन बनाने के लिए हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे मुंबई के हर इलाके में स्थानीय दबंग युवा शिवसेना में शामिल होने लगे. एक गॉडफॉदर की तरह बाल ठाकरे हर झगड़े सुलझाने लगे.
धीरे-धीरे मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में शिवसेना का प्रदर्शन बेहतर हो रहा था, लेकिन पार्टी को बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी. इसके बाद ठाकरे ने मराठी मानुस के साथ कट्टर हिंदुत्व की विचाराधारा अपनाई. 80 और 90 के दशक में शिवसेना को इसका फायदा भी मिला.
मुंबई के विलेपार्ले विधानसभा सीट के लिए दिसंबर 1987 में हुए उपचुनाव में पहली बार शिवसेना ने हिंदुत्व का प्रचार किया. पहली बार 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं' ये घोषणा चुनावी अखाड़े में की गई. इस चुनाव में एक्टर मिथुन चक्रवर्ती और नाना पाटेकर ने शिवसेना के उम्मीदवार का प्रचार किया था. इस चुनाव में हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के बाद चुनाव आयोग ने ठाकरे से 6 साल के लिए मतदान का अधिकार छीन लिया था.
मुसलमानों को बताया था एंटी नेशनल
2006 में शिवसेना के 40वें स्थापना दिवस पर बाल ठाकरे ने मुसलमानों को एंटी नेशनल बताया था. साथ ही सोनिया गांधी के आर्म्ड फोर्सेज में मुस्लिमों के लिए आरक्षण के प्रस्ताव का विरोध किया था. उन्होंने एक समारोह में मुसलमानों को 'हरा जहर' कहा था. बालासाहेब ठाकरे के इस भाषण के दौरान उद्धव ठाकरे के साथ पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे.
बालासाहेब ठाकरे के समय में महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना-बीजेपी साथ थीं. चुनावों में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में ही रही. 1989 के लोकसभा चुनाव के पहले पहली बार BJP और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ. 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीटों पर लड़ी और 52 पर जीत हासिल की, जबकि BJP ने 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों पर जीत हासिल की. उस वक्त शिवसेना के मनोहर जोशी विपक्ष के नेता बने.
1995 में BJP-शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा. शिवसेना ने 73, तो BJP ने 65 सीटों पर कब्जा किया. बालासाहेब ठाकरे ने फॉर्मूला दिया था कि जिस पार्टी के पास ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसका होगा. इसी आधार पर मनोहर जोशी को CM की कुर्सी मिली और BJP के गोपीनाथ मुंडे को डिप्टी CM की.
2004 के चुनाव में शिवसेना को 62 और BJP को 54 सीटों पर जीत मिलीं. 2009 में दोनों पार्टियों की सीटें कम हुईं, लेकिन BJP को पहली बार शिवसेना से ज्यादा सीटें हासिल हुईं. BJP ने इस दौरान 46 सीटें और शिवसेना ने 45 सीटें जीतीं.
2014 के चुनाव में 1989 के बाद पहली बार दोनों पार्टियों ने अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए. बालासाहेब ठाकरे भी अब नहीं थे. सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी शिवसेना को BJP से आधी सीटें मिलीं. BJP ने 122 सीटों पर जीत हासिल की और शिवसेना ने 63 सीटों पर. हालांकि, बाद में शिवसेना BJP की देवेंद्र फडणवीस सरकार में शामिल हो गई.
2019 का चुनाव दोनों पार्टियां साथ लड़ीं. बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं. मुख्यमंत्री को लेकर दोनों पार्टियों में विवाद हो गया. बीजेपी चाहती थी कि देवेंद्र फडणवीस सीएम बनें, लेकिन शिवसेना को ये मंजूर नहीं था. बीजेपी भी पीछे नहीं हटी, फिर क्या शिवसेना ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया. उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए. ढाई साल से वह इस पद पर हैं. लेकिन अब उसी कुर्सी पर एकनाथ शिंदे के कारण तलवार लटक रही है.