रायसेन के मां हिंगलाज मंदिर में है पीरबाबा की समाधि! पाकिस्तान से है नाता
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रायसेन के मां हिंगलाज मंदिर में है पीरबाबा की समाधि! पाकिस्तान से है नाता

मंदिर को लेकर एक कहानी प्रचलित है. बताया जाता है कि बाड़ी के नवाब की बेगम कुदेशिया ने एक बार मां हिंगलाज को प्रसाद स्वरूप मांस भेजा लेकिन वह मांस मां की कृपा से मिठाई में बदल गया.

रायसेन के मां हिंगलाज मंदिर में है पीरबाबा की समाधि! पाकिस्तान से है नाता

राज किशोर/रायसेनः मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में हिंगलाज माता का मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इस मंदिर परिसर में धर्म की दीवार कमजोर हो जाती है और आस्था सब पर भारी दिखती है. दरअसल हिंगलाज माता के मंदिर की जमीन मुस्लिम शासक ने दान दी थी और इस मंदिर में पीरबाबा की दरगाह भी मौजूद है. यही वजह है कि यह मंदिर लोगों की श्रद्धा का अहम केंद्र है. 

पाकिस्तान से है नाता
बता दें कि दुनियाभर में हिंगलाज माता की दो शक्ति पीठ हैं. इनमें से एक पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है और दूसरी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बाड़ी में मौजूद है. इस मंदिर का निर्माण 500 साल पहले 16वीं शताब्दी में महात्मा भगवानदास ने कराया था. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि हिंगलाज माता एक बार महात्मा भगवानदास के सपनों में आईं थी और महात्मा भगवानदास को कहा था कि वह उन्हें भारत ले जाएं. जिसके बाद महात्मा भगवानदास ने उस समय अखंड भारत के बलूचिस्तान से हिंगलाज माता मंदिर की ज्योति को लाने का प्रण किया. रायसेन का बाड़ी इलाका उस वक्त घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा था. यहां तपस्वी तप करते थे. महात्मा भगवानदास ने ज्योति स्वरूप मां हिंगलाज को उनकी मूर्ति के सामने स्थापित किया.कहा जाता है कि ज्योति मूर्ति में समाहित हो गई और यह स्थान हिंगलाज शक्तिपीठ कहलाया. 

हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल
मंदिर को लेकर एक कहानी प्रचलित है. बताया जाता है कि बाड़ी के नवाब की बेगम कुदेशिया ने एक बार मां हिंगलाज को प्रसाद स्वरूप मांस भेजा लेकिन वह मांस मां की कृपा से मिठाई में बदल गया. इससे प्रभावित होकर कुदेशिया बेगम ने हिंगलाज माता के मंदिर को 65 एकड़ जमीन दान दे दी थी. इस मंदिर में मां हिंगलाज की ज्योति अनवरत जल रही है. यह मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. यहां मंदिर परिसर में महात्मा भगवानदास और पीरबाबा, दोनों की समाधि है. यहां संस्कृत पाठशाला है और यज्ञशाला भी है. 

नवरात्रि के दौरान मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. भक्त यहां दूर दूर से झंडा लेकर आते हैं और भक्तों को नारियल, फल-फूल, बेलपत्र अर्पित करते हैं. मंदिर परिसर में महात्मा भगवानदास के साथ 2 अन्य संतों की समाधि बनी हुई है. यहां महात्मा जी की धूनी भी जलती रहती है.

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