Holi 2023: MP के इस गांव में होली की रात को रहता है सन्नाटा, जानिए वजह
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Holi 2023: MP के इस गांव में होली की रात को रहता है सन्नाटा, जानिए वजह

Holi Festival 2023: आज हम आपको रंगों के पवित्र त्यौहार पर मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां होलिका दहन के नाम पर लोगों के बीच में दहशत का माहौल रहता है. यहां करीब सैकड़ों सालों से आज तक होलिका दहन नहीं किया गया है. 

Holi  2023: MP के इस गांव में होली की रात को रहता है सन्नाटा, जानिए वजह

Holi Festival 2023: फाल्गुम माह की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन (holika dahan) के बाद अगले दिन रंगों के महापर्व होली का त्यौहार मनाया जाता है. बीते सोमवार की रात को होलिका दहन किया गया और आज यानी 08 मार्च मंगलवार को होली का त्यौहार मनाया जा रहा है. होलिका दहन की रात को हर गांव, चौराहों और गली मौहल्लों में जश्न का माहौल रहता है. लेकिन आज हम आपको मध्य प्रदेश के सागर (sagar) जिले के एक ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां होलिका दहन की रात को सन्नाटा रहता है. यहां ग्रामीणों की मान्यता है कि होलिका दहन करने से गांव की रक्षक देवी नाराज हो जाएंगी.

जानिए क्या है मान्यता 
दरअसल हम बात कर रहे हैं सागर जिले से 65 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत चिरचिरा के आदिवासी बाहुल्य गांव हथखोह की. यहां के रहवासी बताते हैं कि कई साल पहले गांव में होली के दिन भीषण आग लग गई थी. जिसे ग्रामीण बताते हैं कि झारखंडी माता से विनती के बाद बुझाया गया. ऐसा बताया जाता है कि झारखंडी माता ने उन्हें चुनौती दिया कि आज के बाद से कभी गांव में होलिका दहन नहीं होना चाहिए. तभी से इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है और इस दिन रात को सन्नाता पसरा रहता है.

गांव में नहीं जलाई जाती है होलिका
ग्रामीणों की मानें तो इस गांव ग्रामीण को कई पीढ़ियां होलिका दहन नहीं देखी है. ग्रामीण बताते हैं कि सालों पहले गांव के लोग होलिका दहन की तैयारी की. होलिका दहन के लिए लोग वहां गएं. लेकिन घर नहीं लौट पाएं और उनके झोपड़ियों में आग लग गई. रहवासी बताते हैं कि आग कैसे लगी, इसका तो नहीं पता चला लेकिन आग लगातार विकराल रूप ले रही थी. लोग बुझाने का प्रयास करते रहें, लेकिन आग ने पूरे गांव को चपेट में ले लिया. 

जब आग ग्रामीणों के काबू में नहीं रहा तो वे देवीय शक्ति का सहारा लेने लगें. और जंगल में विराजी मां झारखंडी के दरबार में विनती करने लगें कि हे मां आप आग बुझा दो नहीं तो हमारा गांव जल कर खाक हो जाएगा. ग्रामीणों की प्राथना पर झारखंडी माता ने उनकी अर्जी स्वीकार करते हुए आग बुझाने के लिए ग्रामीणों के सामने शर्त रखा कि आज के बाद कभी होलिका दहन मत करना. जिस पर ग्रामीण राजी हो गए और झारखंडी माता ने आग को बुझा दिया. तभी से इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जात है. गांव के लोग पड़ोस के गांव में होलिका दहन देखने जाते हैं. गांव के ग्रामीण होली खेलने से पहले झारखंडी माता को रंग-अबीर लगाते हैं उसके बाद एक दूसरे को रंग अबीर लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं. 

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