मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटबैंक प्रभावी भूमिका में है. राज्य में आदिवासी वोटबैंक करीब 22 फीसदी है. राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक सीधे असर डालता है. इन 87 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं.
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प्रमोद शर्मा/भोपालः शिवराज सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने अपने एक बयान में बड़ा दावा किया है. भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी आदिवासी सीट नहीं मिलेगी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता खंडित हो चुकी है और इसका सबूत राष्ट्रपति चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग है.
भूपेंद्र सिंह ने दावा किया है कि आदिवासी अब कांग्रेस के साथ नहीं हैं. आदिवासी अब कांग्रेस में नहीं रहना चाहते हैं. कांग्रेस के आदिवासी विधायक भाजपा समर्थित उम्मीदवार को वोट कर रहे हैं. इससे विपक्षी एकता खंडित हो गई है. भूपेंद्र सिंह ने दावा किया कि 2023 के चुनाव में कांग्रेस को एक भी आदिवासी सीट नहीं मिलेगी.
बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव में कई विपक्षी विधायकों और सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की और भाजपा समर्थित द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया है. जिसके बाद विपक्षी एकता पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं.
बीजेपी को फायदा मिलने की उम्मीद
मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटबैंक प्रभावी भूमिका में है. राज्य में आदिवासी वोटबैंक करीब 22 फीसदी है. राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 87 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक सीधे असर डालता है. इन 87 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इस तरह एमपी में आदिवासी वोटबैंक ही सत्ता की कुंजी माना जाता है. अब बीजेपी द्वारा आदिवासी वर्ग से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया गया है. ऐसे में बीजेपी को आगामी चुनाव में इसका फायदा मिलने की उम्मीद है. खासकर एमपी में जहां आदिवासी मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल 87 सीटों में से 59 पर जीत दर्ज की थी. जिसके बाद सत्ता पर बीजेपी काबिज हुई थी. हालांकि 2018 के चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा और बीजेपी 87 विधानसभा सीटों में से 34 पर ही जीत हासिल कर सकी. अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर फिर से इन आदिवासी सीटों पर जीत हासिल करने पर रहेगी.