छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ रियासत के गोड राजा नरेश चंद्र सिंह एक लोकप्रिय जन आदिवासी नेता थे. उनके पिता राजा बहादुर जवाहर सिंह जी एक कुशल प्रशासक एवं जनप्रिय शासक थे. आजादी से पहले कांग्रेस के नेतृत्व मे चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन मे सक्रिय नेताओं के बीच एक सहयोगी के रूप मे देखे जाते थे.
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श्रीपाल यादव/रायगढ़ : 15 अगस्त को देश अपनी आजादी का 75वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है. ऐसे में जिले के सारंगढ़ राज परिवार का इस आजादी में योगदान अहम रहा है. सारंगढ़ राजपरिवार के इतिहास की अगर बात किया जाए तो यशस्वी राजा व मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मंत्री एवं प्रदेश के एकमात्र आदिवासी मुख्यमंत्री राजा नरेश चंद्र जी के योगदान बहुमूल्य रहा है. एक राजा होते हुए भी अंग्रेजों के खिलाफ जाकर स्वतंत्रता सेनानियों को शरण देने से लेकर आजादी के बाद भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारियां संभाली थी.
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आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ रियासत के गोड राजा नरेश चंद्र सिंह एक लोकप्रिय जन आदिवासी नेता थे. उनके पिता राजा बहादुर जवाहर सिंह जी एक कुशल प्रशासक एवं जनप्रिय शासक थे. आजादी से पहले कांग्रेस के नेतृत्व मे चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन मे सक्रिय नेताओं के बीच एक सहयोगी के रूप मे देखे जाते थे. दूर-दूर तक बिना पुल और सड़क नहीं होने के कारण आज़ादी-पूर्व के दिनों में सारंगढ़ भौगोलिक रूप से लगभग पहुंच विहीन माना जाता था. इस स्थिति का लाभ उठा कर आज़ादी के आंदोलन के दौरान अनेक बड़े नेता अंग्रेजी सरकार के वारंट से बचकर अपना काम जारी रखने के लिये सारंगढ़ राजा के द्वारा उपलब्ध कराए गये महल को अपनी शरण-स्थली के रूप मे उपयोग करते थे.
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बने पहले आदिवासी मुख्यमंत्री
1946 को राजा जवाहर सिंह की मृत्यु होने के बाद उनके बेटे राजा नरेश चंद्र सिंह को सारंगढ़ रियासत का राजा बनाया गया. 1 जनवरी 1948 के दिन सारंगढ़ राज्य को भारत मे विलीन करने के लिये दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए और भारतीय संघ में विलय हो गए. जिसके बाद उनके राजनेता और आदिवासी मुख्यमंत्री तक का सफर शुरू हो गया. राजा नरेश चंद्र सिंह जी 17 वर्ष तक विधायक रहे और 15 वर्ष तक जन संसाधन मंत्री, विद्युत मंत्री, पीडब्ल्यूडी मंत्री से लेकर 13 दिन के मुख्यमंत्री जैसे बड़े पदों को संभाला. सन 1948 -49 में सारंगढ़ से मनोनीत विधायक चुने गए. वहीं राजा नरेशचन्द्र सिंह सन 1951-52 मे सम्पन्न देश के प्रथम आम चुनाव मे सारंगढ़ से विधायक चुने गए एवं मध्यप्रदेश मंत्रीमंडल में उन्हे लोक निर्माण विभाग तथा बिजली विभाग का मंत्री बनाया गया. मध्यप्रदेश विद्युत मंडल की स्थापना उन्हीं के मार्ग निर्देशन में हुई.
60 एकड़ जमीन दान दे दी
राजा नरेश चंद्र सिंह के दामाद प्रवेश मिश्रा ने बताया कि1954 में उनके व्यक्तिगत निमंत्रण पर भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी सारंगढ़ पधारे. राजा साहब के आग्रह पर राष्ट्रपति ने सारंगढ़ मे एक कृषि विद्यालय की नींव रखी. इस विद्यालय में छात्रों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देने के लिए राजा साहब ने अपनी 60 एकड़ निजी भूमि दान में दिया. क्षेत्र में कृषि के प्रोत्साहन के लिए सारंगढ़ के पास अमेठी नामक गांव में कृषि विभाग के एक प्रदर्शन फार्म की स्थापना की तथा इसके लिए अपनी सौ एकड़ से अधिक निजी भूमि दान में दिया. 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण की सरकार गिरी तो 13 मार्च 1969 को विधायकों के समर्थन मिलने पर वे मध्य प्रदेश के 13 दिन के मुख्यमंत्री बनाए गए. सरल स्वभाव के राजा साहब ने तत्कालीन राजनैतिक दांव-पेंच के खेल महसूस नहीं कर पाए और न केवल मुख्यमंत्री पद से ही बल्कि विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया और सारंगढ़ वापस आ गये. बाद पुसौर विधानसभा क्षेत्र मे हुए उपचुनाव मे जनता ने उनकी पत्नी रानी ललिता देवी को निर्विरोध चुन कर विधानसभा मे भेजा.
राजनीतिक और शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्य किए
सारंगढ़ के राज परिवार से जुड़े और सारंगढ़ के पूर्व जनपद सदस्य रहे अरुण यादव बताते हैं कि सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र जी के द्वारा राजनीतिक और शिक्षा के क्षेत्र में कई कार्य किए गए हैं. उन्होंने बताया कि वह हमेशा सारंगढ़ के हित के लिए ही बात किया करते थे. वे जनप्रतिनिधि और अधिकारियों से हमेशा कहा करते थे कि जनता की सेवा करना है ना कि अपना जेब नहीं भरना है. वे जब अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब सारंगढ़ के लिए गौरव का विषय था. सारंगढ़ वर्तमान में जिला बनने जा रहा है. अगर नरेश चंद्र जी होते तो शायद इसे पहले सारंगढ़ जिला बन चुका होता.