Atiq Ahmed Story: जहां बिछाए जाते थे फूल, वहीं बहा डॉन का खून; जानिए माफिया बन कैसे चढ़ी राजनीति की सीढ़ी
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Atiq Ahmed Story: जहां बिछाए जाते थे फूल, वहीं बहा डॉन का खून; जानिए माफिया बन कैसे चढ़ी राजनीति की सीढ़ी

Atiq Ahmed Story: अतीक अहमद (Atiq Ahmed ) और अशरफ अहमद  (Ashraf Ahmed)की हत्या के बाद यूपी में सनसनी फैल गई है. प्रदेश धारा 144 लागू कर दी गई है. जिस प्रयागराज (pryagraj up) में अतीक ने राजनीति की शुरुआत की वहीं उसे मौत के घाट उतार दिया गया. जानिए अतीक ने कैसे किया जुर्म और राजनीति की दुनिया में अपना विस्तार. 

Atiq Ahmed Story: जहां बिछाए जाते थे फूल, वहीं बहा डॉन का खून; जानिए माफिया बन कैसे चढ़ी राजनीति की सीढ़ी

Atiq Ahmed Shot Dead: अतीक अहमद का नाम आज देश के हर कोने में लिया जा रहा है. उसकी हत्या ने यूपी के इतिहास में एक और अध्याय जोड़ दिया है. पिछले दिनों हुए उमेश पाल हत्याकांड के गवाह की हत्या के बाद अतीक की मुश्किलें बढ़ती चली जा रही थी. बीते दिन उसके बेटे का एनकाउंटर कर दिया गया था और कल रात ताबड़तोड़ फायरिंग करके अतीक अहमद (Atiq ahmed killed) और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई.

अतीक (Atiq ahmed political conection) की हत्या उसी प्रयागराज में हुई जहां पर किसी जमाने में अतीक के नाम की तूती बोलती थी. अतीक के इशारों पर राजनीति से लेकर क्राइम तक का सफर होता था. एक वक्त था जब प्रयागराज (इलाहाबाद) में अतीक के आगमन पर डीजे बजाए जाते थे, जिन सड़कों से वो गुजरता था उस पर फूल बिछाए जाते थे ,लेकिन समय के बदलते चक्र में जंजीरों से बंधे हुए अतीक के हाथ को उन्हीं सड़कों पर मौत के घाट उतार दिया गया.

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अतीक तय करता था वजूद
एक दौर था जब अतीक का आतंक सतावें आसमान पर था. उसे सत्ता का पूरा साहस मिला हुआ था. हत्या के कई मुकदमों के बावजूद भी प्रयागराज की सरजमीं पर उसी के इशारे पर चुनाव में जीत औऱ हार होती थी. इलाहाबाद में चुनाव लड़ने से पहले अतीक की मंजूरी जरूरी थी. वरना अंजाम वही होता था जो बिना अनुमति के चुनाव लड़ने वाले लोगों के साथ हुआ. अतीक के करियर की शुरुआत इलाहाबाद से हुई और उसकी मौत प्रयागराज में हुई. कैसे जरायाम की दुनिया से संसद तक पहुंचा अतीक जानिए.

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जुर्म की दुनिया में कदम
अतीक अहमद मात्र 16 साल की उम्र में ही जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया था. उसके ऊपर हत्या का पहला मुकदमा साल 1979 में दर्ज किया गया था. इसके बाद वो लगातार जुर्म की दुनिया में अपना कद बढ़ाता चला गया. कहा जाता है कि उसे तत्कालीन राजनेताओं का संरक्षण भी प्राप्त था. इसके बाद अतीक लगातार हत्या अपहरण जमीन की खरीद फरोख्त में अपने पैर जमाता चला गया. इलाहाबाद को इसका केंद्र बनाया. जिसके बाद अतीक के ऊपर एक के बाद एक हत्या अपहरण जैसे 100 से  ज्यादा मुकदमें दर्ज किए गए थे. उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट विधायक राजू पाल की हत्याकांड था जिसके बाद उसके बुरे दिन शुरु हो गए थे.

ऐसे शुरु की थी राजनीतिक पारी 
ये बात साल 1989 की है अतीक की छबि बाहुबलियों में होने लगी थी. उसके नाम का सिक्का प्रयागराज से सटे हुए आस पास के जिलों में चलने लगा था. बताया जाता है कि एमपी के बार्डर तक उसकी हनक चलती थी. इसी बीच वो जयराम की दुनिया से राजनीति में कदम रख दिया और इसी साल बाहुबली चांद बाबा के खिलाफ इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और विजेता हुआ, इसके बाद इसी विधानसभा से उसने जीत की हैट्रिक लगा दी. इसके बाद यूपी के नेताओं में उसकी धाक जमने लगी अब उसके अपराधों को राजनीतिक संरक्षण और ज्यादा मिलने लगा. बढ़ते हुए कद को देखते हुए साल 1996 में अतीक को समाजवादी पार्टी ने अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया और वह विजेता हुआ.

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साल 2002 में अपना दल से भी उसने चुनाव जीता था. इसके बाद साल 2004 में वो यूपी के फूलपुर संसदीय सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और अपने बाहुबल की बदौलत जीत हासिल की. पर 2014 लोकसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा और भाजपा सरकार बनते ही उसके रसूख पर आंच आने लगी और जिस प्रयागराज में उसकी बदौलत नेता बनते बिगड़ते थे वहीं पर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

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