Nawabi Footwear: लखनऊ के दो भाई दिलावर हुसैन और अजहर हुसैन जिनकी पीढ़ी नवाबों के दौर में चांदी के जूते और जूतियां बनती थी, आज भी दोनों भाई पुराने लखनऊ के चौक इलाके में दुकान में चांदी की जूतियां और जूते बनाते हैं. उनकी तीन पीढ़ियों ने इसी काम में हैं.
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Lucknow Silver Shoes: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाबों का शहर यूं ही नहीं कहा जाता है. यह अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए टी प्रसिद्ध है ही, यहां की गलियों में आज भी नवाबी दौर की झलक दिखाई देती है. इसी नवाबी विरासत को संभालते हुए लखनऊ के दिलावर हुसैन और अजहर हुसैन का परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से चांदी के जूते और जूतियां बना रहा है. पुराने लखनऊ के चौक इलाके में उनकी दुकान इस कला की एक अनमोल धरोहर है. उनके अनुसार, उनके परदादा नवाबों के लिए यह काम करते थे, और आज भी वे इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.
दरसअल, जी मीडिया की टीम जब चौक इलाके में दिलावर हुसैन की दुकान पहुंची, तो उन्होंने चांदी के जूते बनाते हुए बताया कि आज यह कला धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. नई पीढ़ी इसमें रुचि नहीं ले रही, क्योंकि इसमें मेहनत बहुत है और आमदनी कम. हालांकि, चांदी के जूते और जूतियों का चलन शादियों और विशेष मौकों पर अब भी जारी है. नवाबी शौकीन और आधुनिक ग्राहकों के लिए ये जूतियां खास आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं.
चांदी की जूतियां बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल और मेहनतभरी है. पहले इसका फ्रेम तैयार किया जाता है, फिर चांदी के पतरे को गर्म करके मनचाहा डिज़ाइन दिया जाता है. इसके बाद इस पर हीरे-जवाहरात लगाए जाते हैं, जिससे इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. इनकी कीमत ₹5000 से शुरू होकर ₹35000 या उससे भी ज्यादा तक जाती है, जो ग्राहक की पसंद और मांग पर निर्भर करती है.
दिलावर हुसैन के भाई अजहर हुसैन बताते हैं कि उनकी दुकान पर विशेष रूप से दूल्हा-दुल्हन के लिए चांदी के जूते और चप्पल तैयार किए जाते हैं. इसके अलावा, कुछ लोग इसे निवेश के रूप में भी खरीदते हैं. उनका कहना है कि चांदी के जूते न केवल पहनने में शाही अहसास देते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर इन्हें बेचकर पैसे भी हासिल किए जा सकते हैं.
लखनऊ के इस विशेष काम के प्रति लोगों का रुझान धीरे-धीरे बढ़ रहा है. दिलावर और अजहर के अनुसार, उनकी दुकान पर देशभर से लोग आते हैं. चांदी के जूते-चप्पलों की बारीक कारीगरी और उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे खास बनाती है. नवाबी दौर की इस अनूठी कला को जिन्दा रखने का यह प्रयास लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का एक बेहतरीन उदाहरण है. लखनऊ से जी मीडिया का इनपुट Photo: AI